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आख़िरी मुक़ाम

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"तुम जाओ, बाबा। कितनी मर्तबा कहा, जब तक ऊपर से ऑर्डर नहीं आ जाता, तुम उसे दफ़ना नहीं सकते।" मुर्दाघर के गार्ड ने उसे लगभग झिड़कते हुए कहा। पिछले कुछ दिनों में गार्ड कई बार उसे देख चुका था। धंसी हुई आँखों और सूखे ठूंठ-से अधमरे बदन का वह आदमी शायद पैदाइशी बूढ़ा था। कपड़ों के नाम पर नाड़े से बाँधी हुई एक ढीली पतलून थी, जो बस पैबन्दकारी की बदौलत इज़्ज़त ढकने का काम दे रही थी। जाने कितने सावन देख चुकी थी उसकी धंसी हुई आँखें!

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