मेरा संडे कब आएगा
मेरा संडे कब आएगा
"प्रिया, तुम आज इतनी जल्दी उठ गई, चलो कोई बात नहीं, मैं तो सौरभ को कह कर तुम्हारा ब्रेकफास्ट रूम में ही भिजवाने वाली थी।" सासू माँ ने मुस्कुरा कर कहा।
आज इतवार था, यानी सभी गृहणियों के छुट्टी वाला दिन, 6 दिनों के बाद आने वाला ये दिन कितना सुकून वाला होता है, न वो अलार्म की भगदड़, न बच्चों के लंचबॉक्स की चिंता, न पतिदेव के लिए जल्दी लंच तैयार करने की जिम्मेदारी, न ही बाई से वो रोज की झक झक। बाकी के दिनों में तो वो चकरघिन्नी की तरह इधर से उधर घूमती रहती है।
'बहू मेरी चाय ?'
'प्रिया, मेरा वॉलेट नहीं मिल रहा तुमने देखा क्या ?'
'मम्मी, मुझे आज लंच बॉक्स में परांठा नहीं चाहिए, मुझे आप सैंडविच बना कर डालना।'
'अरे बीबीजी, जल्दी से बर्तन खाली कर के दो, मुझे दो और घरों के काम निपटाने है।'
'बहू, तुम्हारे पापाजी की दवाई का समय हो गया है, उनका जूस तैयार हो गया।'
'हाय राम, वो मशीन में कपड़े डाले हैं, नल कहीं खुला तो नहीं रह गया।'
'मम्मा क्या कर रही हो, जल्दी....मेरी बस निकल जायेगी।'
'भाभी आज मेरी कॉलेज की फ्रेंड्स आएगी, आप कुछ अच्छा सा नाश्ता तैयार कर देना उनके लिए।'
और प्रिया यहाँ से वहाँ सबकी फरमाइशें पूरी करने में लगी रहती। शायद उसने अपने लिए जीना ही छोड़ दिया, सबकी खुशी में ही उसकी खुशी रच बस गयी। उसने भी इसे अपना फर्ज ही समझा, जैसे उसकी माँ करती आई, अब ये जिम्मेदारी उसे भी निभानी है।
मगर एक ख़बर ने उसके जीवन मे एक नई ऊर्जा डाल दी, उसके क्या हज़ारों लाखों गृहणियों के लिए ये खबर किसी सौगात से कम नहीं थी, नोटबन्दी की तरह ही प्रधानमंत्री जी ने ये घोषणा कर दी थी कि रविवार का दिन गृहणियों के लिए अवकाश का दिन रहेगा, पूरे भारत वर्ष में ये नियम कड़ाई से लागू किया जाता है। पूरे देश में इसी खबर के चर्चे रहे। हर न्यूज़ चैनल सिर्फ इसी खबर का प्रसारण कर रहा था।
आखिरकार रविवार का दिन उनके नाम हो ही गया। पिछली रविवार की बात है, प्रिया ने 1 ही दिन में 2 फिल्में देख डाली, सिनेमा का शौक उसको हमेशा था, पर शादी के बाद वो जिम्मेदारियों में इतना उलझ गयी कि टी.वी. ही वो बमुश्किल से देख पाती। अंश के होने के बाद तो उसे अपने और सौरभ के लिए भी समय नहीं मिल पाता।
मगर जब से ये रविवार के छुट्टी की घोषणा हुई है, मानों चमत्कार सा हो गया है। रविवार के दिन वो आराम से उठती है, मम्मी जी ही नाश्ता तैयार करती है, वो आराम से बालकनी में बैठ कर चाय की चुस्कियों का आनंद लेती है। अंश की जिम्मेदारी उसकी बुआ संभालती है।
शादी के बाद कैंडल लाइट डिनर तो एक सपना सा बन गया था, मगर पिछले से पिछले रविवार वो तैयार हो कर अपना सुर्ख लाल रंग का गाउन पहनकर जब सौरभ के साथ डिनर पर गयी तो बेचारा सौरभ उससे अपनी नजरें ही नही हटा पा रहा था।
सहेलियों से मिलने का तो समय ही नहीं मिलता था, मगर अभी ऐसे ही एक रविवार वो अपनी सभी सहेलियों मेघा, दीप्ति, नेहा, नैना, निमिषा सबसे मिली, बरसों बाद उन्होंने बिना घड़ी के काँटों के देखे खूब गप्पें मारी, ऐसा लग रहा था मानो कॉलेज के दिन वापिस आ गए हो, किसी को अपने घर जल्दी जाने की चिंता ही नहीं थी। इससे पहले जब भी मिलते थे लगता था मानों रस्म अदायगी कर रहे हो। सबने इसी तरह मेलजोल बनाये रखने का वादा किया।
जब से ये "रविवार की छुट्टी" की घोषणा हुई है, पूरे देश की महिलाओं ने ये संकल्प ले लिया कि अगली बार हम सिर्फ और सिर्फ इसी पार्टी को वोट देंगे। हर रविवार पूरे शहर में हलचल रहती, शहर छोड़िये पूरे देश में, आखिर एक रविवार ही तो था जिस दिन हर गृहणी अपनी जिम्मेदारियों से आज़ाद थी।
आजाद, आज़ादी का क्या मतलब है अब प्रिया को समझ आ रहा था। अब तो उसे भी संडे का बेसब्री से इंतज़ार रहता था, इससे पहले तो सिर्फ कैलेंडर में तारीख और दिन बदलते थे, मगर उसके लिए तो हर दिन एक समान होता था।प्रिया ने कैलेंडर देखा, शनिवार.... अरे वाह, कल तो रविवार है यानी की उसकी छुट्टी का दिन।
"प्रिया, प्रिया.... उठो, क्या हुआ तुम्हारी तबियत तो ठीक है, उठो आठ बजे गए है, माँ पापा भी चाय का इन्तज़ार कर रहे है। तुम तो हमेशा 6 बजे ही उठ जाती हो।" सौरभ ने प्रिया को उठाते हुए कहा।
"सोने दो न, आज संडे है, मेरी छुट्टी का दिन है।" प्रिया ने अलसाई आवाज़ में कहा।
"क्या, छुट्टी का दिन, क्या बोल रही हो, मुझे समझ नहीं आ रहा ?" सौरभ ने प्रिया को उठाते हुए कहा।
प्रिया ने अपनी आँखें खोली ओर कहा- "आज संडे है ना, आज सब हाउसवाइफ की छुट्टी रहती है, प्रधानमंत्री जी ने तो बताया था टी.वी. पर भूल गए क्या ? आज के दिन हाउसवाइफ कोई काम नहीं करेगी।"
सौरभ ने मुस्कुराते हुए कहा- "मैडम उठ जाओ, लगता है कोई सपना देख रही थी तुम, चलो जल्दी करो, माँ पापा भी तुम्हारे हाथ की चाय का इन्तज़ार कर रहे हैं, पता है ना, तुम्हारे हाथ की चाय पिये बिना पापा का दिन शुरू नहीं होता।"
सौरभ ने मुस्कुराते हुए प्रिया के सिर पर हाथ फेरा और मुस्कुराते हुए कमरे से बाहर चल दिया। प्रिया उठी और ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़े हो कर अपने बाल सही करने लगी तो क्या ये सपना था ? क्या सच में उसका रविवार कभी नहीं आएगा। क्या कोई दिन ऐसा नहीं होगा जो उसकी भी छुट्टी का दिन होगा।
"प्रिया, प्रिया बहू।"
मम्मी जी की आवाज़ से उसकी तंद्रा टूटी और वो किचन की तरफ चाय बनाने चल दी।