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Nikita Vishnoi

Drama

4.9  

Nikita Vishnoi

Drama

बेख़बर रास्ते

बेख़बर रास्ते

5 mins
628


गाँव से शहर की दूरी लगभग 40 km थी,इतनी देर मेरी सायकिल बिना रुके चल दे तब तो बड़ी बात होगी,शहर में विकास आ ही जाएगा मुझे लेने के लिए ...फिर मेरी साइकिल कहा रखूंगा,कही गुम हो गयी तो ...इसके सिवाय तो मेरा बस एक शराबी बाप है जो शराब की मस्ती में इतना खोया हुआ रहता है कि, उसे हर दिन, हर शाम एक महफ़िल ही लगती है कोई फिक्र ही नही उन्हें मेरी,न मेरे भुखेपन का अहसास ...

गहरी चिंता में डूबा हुआ सूरज नदी के किनारे कंकरों से पानी मे उछाल पैदा कर रहा था औऱ हर एक कंकर पानी मे जैसे ही गिरता सूरज अगला कंकर,पत्थर बीनने में लग जाता जैसे उसने आज दृढ़ प्रतिज्ञा की है कि वह नदी को कंकरों से आच्छादित कर देगा,, उसे सोचते हुए कब सुबह से शाम हो गई वो खुद आश्चर्य की सीमा में बंध गया,घबराया हुआ उठा झट से साइकिल की ओर दौड़ा तू ठीक तो है न,मैं तुझे धूप में ही छोड़कर चला गया था मुझे माफ़ कर देना यार (कितना सुखद अपनापन जैसे निर्जीवता और सजीवता का एक एक करके भावपल्लवन होने लगा था ).....अपनी साईकिल के प्रति सूरज बहुत वफ़ादार था उसे अपना जिगरी दोस्त मानता था।घण्टो उससे बतियाता था उसको नदी के पानी से नहलाता था और तौलिया लेकर साईकिल के भीगे बदन को आहिस्ते से साफ करता था जैसे कोई अपने बच्चे की परवरिश करता है उसी तरह सूरज भी साईकिल की देखरेख करता।समय अपनी क्रमिक रफ़्तार पर था ....सूरज भी अपनी भविष्य की योजनाओं को लेकर चिंतित व क्लांत था,वो गांव से बाहर जाना चाहता था किंतु उसे बाहर जाने का कोई विकल्प नही मिल पा रहा था,बापू से बोलूंगा तो बिगड़ेंगे मुझ पर इससे बेहतर है कि मैं खुद ही कोई तरकीब निकालूं,सुबह से शाम हाथ से फ़िसलती हुई रेत के समान निकल रहा था,वो सोच रहा था कि अपनी साईकिल को लेकर भी तो वो गांव से शहर जा सकता है न,पर फिर क्यूं एक बार फिर विषाद की घड़ी में सूरज डूब गया अभी तो उसके उदय होने की बारी थी।

दरअसल बात थोड़ी हास्यास्पद हैं सूरज अपनी साईकिल से बहुत प्यार करता था उसे डर कुछ यूं था कि "अगर वो अपनी साईकिल को शहर में ले गया तो उसकी जान से भी ज्यादा कीमती साईकिल का कोई अपहरण करके ले गया तो "

क्या होगा उसकी(साईकिल)के साथ,किसी ने बद्तमीज़ी कर दी तो सूरज अपने आपको कभी माफ नही करेगा,बेचारा सूरज बस इसी लिए थोड़ा व्यथित था।

की साईकिल की आबरू न मिटने पाए (है न थोड़ा हास्यास्पद परन्तु यहाँ सूरज के प्रेम की दिव्य उम्मीद थी वो साईकिल जो उसे, उसकी माँ ने मरणोपूर्व दिलवाई थी वो भी अपने कंगन बेचकर जिसे नानाजी ने उन्हें दिए थे 4 कंगन थे जिसमें से सूरज के शराबी बाप ने अपनी नशे की लत में बिकवा दिए परन्तु 3 कंगन ही माँ ने दिए थे,वो एक कंगन सूरज के वात्सल्य प्रेम के लिए समर्पित होना चाहता था

जो उसे साईकिल की अनमोल सौगात के रूप में मिला,सूरज तब से आजतक अपनी अर्धांगिनी साईकिल के साथ रहने लगा उसका ख़्याल रखने लगा ....क्योंकि वो जब अपनी साईकिल के साथ होता तो उसे एक खोयी हुई निधि को पाने जैसा प्रतीत होता वो एक दूसरे की ताकत बन चुके थे।

एक गांव से दूसरे गांव सूरज मजदूरी के लिए जाता था लेकिन मजदूरी का काम उसे रास नही आ रहा था वह संशोधन परिवर्तन में विश्वास करता था अतएव उसने सोचा कि अब गांव से शहर की ओर पलायन करना उचित रहेगा

अब तो उसने अपने बचपन के दोस्त विकास को खत लिखा उखड़ी हुई हिंदी जो कुछ धुंधली सी दिख रही थी उसने कारीगर काका (चाचा) के बेटे से पता पूछकर उसे खत में अपने शहर आने और प्रिय साईकिल की व्यथा लिख दी एक हफ्ते में डाकिया आया और सूरज को थमाते हुए बोला कि विकास ने तुझे कल 11 बजे तक सेठाणी मार्ग पर शहर में उपस्थित रहने का पैगाम भेजा है सूरज खुशी से झूमता हुआ साईकिल को झप्पी दे रहा था सूरज ने बडे ही तेवर में साईकिल से कहा,बोला था न तुझे शहर ले चलूंगा अब तो खुश है न तू मेरी प्यारी साईकिल।

अगली सुबह सूरज भोर के 4 बजे ही जाग गया और अपनी साईकिल को तैयार करने लगा नशेड़ी बाप की तो उसे कतई भी फिक्र नही थी क्यूंकि वो अपनी दवादारू में ही इतने व्यस्त थे कि उन्हें खुद के सिवा कोई दिखता ही नही था।फिर भी बेटा था मन कैसे माने उसका,साहू काका से बोल कर आया कि बापू का ध्यान रखे उन्हें दो वक्त का भोजन दे दे वो शहर से आकर कुछ मालगुजारी भत्ता दे देगा।साहू काका तो वैसे भी बहुत दानी व्यक्ति थे बहुत लोगो की मदद करते ही थे उन्हें ये भी स्वीकार लिया और नशेड़ी बाप को भी अपने घर मे शरण दे दी।

सूरज 4 बजे ही निकल चुका था अपनी साईकिल के साथ उसकी तो खुशी के ठिकाने ही नही थे एक झोला जिसमे कुछ बिजली के उपकरण कुछ मेकेनिकल औजार थे सूरज काम की ही तलाश में ही पहुँच रहा था 10 बजे तक सूरज शहर में प्रस्थान कर चुका था और सेठाणी मार्ग पर विकास भी मिल गया था,दोनों एक दूसरे को गले लगाकर स्नेह के गहरे समुंदर में गोता लगा रहे थे क्यूंकि दोनों की स्थिति ही एक दूसरे के समरूप थी विकास तो अनाथ था पर वो अपने ऊपर विश्वनाथ का हाथ मानता था उसकी त्वरित समझ न आने वाली बातों में गूढ़ रहस्य छिपा रहता था जिसे समझ पाना अध्यात्म के विचित्र दर्शन के जैसा था,

अभी भी इस खटारा साईकिल के साथ आया तू विकास हास्य से सनी चुटकी लेते हुए ..

ये खटारा नही है ये तो मेरी जान है जिसे मेरी माँ ने मुझे दिलवाई थी,ये ही तो मेरी अपनी सगी है जो हर वक्त मेरा साथ देती है हमारी दोनों की ताकत की तो तू बात ही मत करियो विकास, हम एकता और ताकत की मिसाल में एक और एक ग्यारह है ...सूरज ने रौब झाड़ते हुए बोला

गहरा तंज सुनकर विकास भी अब शांत कदम से आगे बढ़ रहा था।विकास भी अब सूरज और उसके साईकिल के निश्छल प्रेम को समझ चुका था।चल देख ये है वो ऑफिस जहाँ मेकेनिकल काम की टिरेनिंग देते है अब आज से तू भी मेरे साथ यही काम करेगा.... सूरज खुशी खुशी शहर की हवा में रग बस चुका था उसकी साईकिल के प्रति आस्था सदैव बनी रही और अब तो जब 12 वर्ष शहर में बीत चुके थे उसके,वो नामी मेकेनिकल ऑफिसर बन चुका था ये उसकी मेहनत और समय पर लिए गए सटीक फैसले का ही परिणाम था जो एक और एक ग्यारह में सतत तब्दील होता जा रहा था।


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