लघुकथा - बदलता हुआ मौसम
लघुकथा - बदलता हुआ मौसम
दीदी प्लीज १० दिन और रुक जाइए न, प्लीज दीदी, नम आँखों से मुद्रा, कौमुदी के गले लगते हुए अनुनय विनय कर रही थी| परन्तु कौमुदी केवल इतनी ही छुट्टी लेकर आई थी तो अब आगे रहना सम्भव नहीं था। एयरपोर्ट के लिए रवाना हुई टैक्सी को मायूस होकर हाथ हिलाते हुए भारी मन से मुद्रा कमरे में आ गई और अपने जीवन के गुणा भाग करने लग गई। जब एक महीने पहले सास ने बताया था कि छुट्टियाँ शुरू होने वाली है और ननद अपने बच्चों के साथ १५ दिन के लिए रहने के लिए आएगी, यही सोच सोच कर मुद्रा परेशान हो रही थी।
एक तो इतनी कड़क सास और ऊपर से ननद, करेला और नीम चढ़ा।
जैसे ही कौमुदी घर में आई, घर चहकने लगा था। दोनों बच्चे भी मामा मामी, व नानी के पीछे ही लगे रहते। घर का काम भी मुद्रा से पहले कौमुदी कर देती। नई-नई डिशेज़ बनाना हो या कोई बाहर का काम। चुस्ती फुर्ती वाली कौमुदी घण्टों का काम मिनटों में समेट देती।
सास कई बार बड़बड़ाती कि बहू से 'यह नहीं होता', 'वह नहीं होता' तब कौमुदी माँ का हाथ अपने हाथ में लेकर कहती, "माँ पाँचों अंगुलियाँ बराबर नहीं होती। भगवान हर इंसान को अलग-अलग बुद्धि, रूप-सौंदर्य, गुण और क्षमताओं से नवाज़ता है। हमें कभी भी एक इंसान की दूसरे से तुलना नहीं करनी चाहिए। जो जैसा है उसे उसकी क्षमताओं व गुणों को पहचान कर ही प्रेम और सम्मान देना चाहिए। भाभी अभी घर में नई है। पाँच-सात साल निकलेंगे वहाँ तक अपनी ज़िम्मेदारियाँ बखूबी निभाने लग जाएगी।"
धीरे-धीरे सासु माँ भी मुद्रा को स्नेह देने लगी और यह १५ दिन पलक झपकते ही बीत गए।
आज कौमुदी के जाने का वक़्त हो गया था और मुद्रा इस प्यार व स्नेह को जितना समेट सकती है, समेटने में लगी हुई थी क्योंकि अब मौसम बदल चुका था।