आस
आस
आम के बगान ने पड़ोसी लीची के बगान से कहा, “यार...मालिक भी हद्द करते हैं, केवल गर्मी के छुट्टी में बच्चों के साथ आते हैं। कच्चे-पक्के सभी फल खट्टी के हाथों बेच कर, फिर वापस शहर चले जाते हैं, एकबार भी हाल-चाल पूछने हमलोगों के पास नहीं फटकते !
“अरे या...र , फलों के राजा होकर भी तुम बुद्धू जैसे बातें करते हो ! ”
साल भर से आस लगाए ... बीमार, बूढ़े माता-पिता के मन को जो टटोल न सका ...वो बेज़ुबान की भाषा क्या समझेगा !”
“नहीं चाचा, ऐसी बात नहीं है। प्राइवेट नौकरी में छुट्टी भी कम मिलती है, उस पर से गाँव आने में बहुत मशक्कत है ...बस, ट्रेन, ऑटो बदल-बदल कर आना जो पड़ता है।
गाँव आने का नाम सुनते ही...मन भारी हो जाता है।
क्या करे बेचारा... साल में एकबार आकर बेटे होने का फर्ज़ तो पूरा कर ही लेता है !" आम के नन्हें पौध ने गंभीरता से कहा ।
सुनते ही बुजुर्ग पेड़ों की आँखें नम हो गई ..सभी एकटक ऊपर आकाश को निहारने लगे ।