मन की उड़ान
मन की उड़ान
गीतू, मीना की किसी बात पर पेट पकड़ कर हँसे जा रही थी तभी माँ की आवाज उसके कानों में पड़ी,
" क्या ऐसे खीं खीं करके हँस रही हो, लड़की जात हो थोड़ा धीरे हँसो।"
गीतू एकदम से चुप हो गयी। तभी पापा के आते ही वह दौड़ती हुई जाकर उनके सीने से लग गयी।
"अरे, यह क्या कर रही हो, हर समय लड़कों की तरह उछल-कूद करती रहती हो, चलो दूर हटो।"
गीतू सहम कर पीछे हट गयी।
"चल जा छत पर जाकर चिड़ियों को दाना दे आ, और हाँ, पिंजरा मत खोलना.. वे उड़ जायेंगी।"
माँ का आदेश पाकर गीतू बेमन से छत पर गयी। चिड़ियाँ चहचहा रही थीं। उसने पिंजरे के पास जाकर जोर की डाँट लगायी, जिस तरह से माँ उसे हँसने-बोलने पर डाँटती थी। लेकिन दूसरे ही पल उसने कुछ सोचते हुए पिंजरे का गेट खोल दिया।
और उन्हें आकाश में पंख फैलाये उड़ते हुए दूर तक देखती रही।