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"बर्थ डे गिफ्ट"

"बर्थ डे गिफ्ट"

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कुछ दिनों से अपने पापा से नाराज़ सी थी रुस में रहने वाली अनाया।

अनाया के मम्मी रूस की ही नागरिक है पर अनाया के पापा आज से कुछ २० साल पहले यू.पी के वृन्दावन से रूस आये थे ।अपने सपनों की तलाश में ।इस देश ने उन्हें वो सब दिया तो जरूर जो वो चाहते थे पर अपनी माँ से दूरी की ख़लिश दिल सें कभी कम नहीं होती थी।

बहुत बड़ा व्यापार था अनाया के पापा का रूस में पर व्यापार को सँभाल कर आगे बढ़ाने के जुनून में वो सिर्फ़ बीस सालों में दो ही बार भारत जा पाये थे। अपनों की दूरी की कमी को कम करने के लिऐ वो अक्सर अनाया सें वृन्दावन की बातें किया करते थे।इसलिये बिना वृन्दावन गये वहाँ के कोने कोने को जान गयी थी अनाया ।या फिर यह कहें कि प्यार हो गया था अनाया को वृन्दावन की गलियों से।

स्काईप के जरिये वैसे तो अनाया अपने दधियाल में सबको ही जानती थी पर इस बार वो अपना बर्थ डे अपनी दादी के साथ मनाना चाहती थी।आज एक बार फिर अपना पुराना सवाल लिऐ अपने पापा के सामनें खड़ी थी अनाया

"पापा आपने बताया नहीं क्या गिफ्ट दे रहें है आप मुझे मेरे बर्थ डे पर "।

अनाया की बात पर फोन पर मेल करने में बिजी पापा ने सर उठा कर अनाया से पूछा ।

क्या चाहियें मेरे बेटे को ,जानती हो ना दुनिया में ऐसी कोई चीज नहीं जो आपके पापा आपको ना दे सकें।

पापा की बात सुन अनमनी हो गयी अनाया और पापा सें बोली।

"एक चीज है पापा आपका वक़्त पिछलें दो सालों से मैं आपको बोल रही हूँ मुझे दादी के पास वृन्दावन जाना है।मुझे वो कदम्ब का वृक्ष देखना है जिसकी कहानी आपने ना जाने कितनी बार मुझे सुनाई है।पर आपके पास अपने बिजनेस सें ज्यादा कुछ भी ज़रूरी नहीं है मैं भी नहीं ।

गुस्से में अपने पापा को अकेला छोड़ कमरें में जाकर बन्द हो गई थी अनाया।

अकेले रह गये अनाया के पापा आज अपने बीस सालों के नफ़े नुकसान में खो गये थे।

दो दिन बाद अनाया का बर्थडे था पर घर में कोई भी हलचल ना होने सें बहुत उदास थी अनाया।

अचानक उसे अपने कमरे में आहट का अहसास हुआ।
पीछे अनाया के पापा खड़े थे।

"जल्दी से अपनी आइज क्लोज करो ।"

मुस्कुरा कर बोले थे अनाया के पापा ।

पापा की बात पर बच्चों की तरह ख़ुश होकर आँखे बन्द कर ली दी बीस साल की अनाया नें ।

अनाया के पापा ने एक लिफ़ाफा अनाया के हाथ में रखते हुऐ उसे आइज ओपन करने के लिए बोला।

लिफ़ाफा खोलते ही ख़ुशी से उछल पड़ी थी अनाया उस लिफ़ाफे में तीन टिकट थे भारत के

जल्दी ही अपनी पैकिंग कम्पीलट कर अपने मॉम डैड के साथ एयरपोर्ट जा रही थी अनाया ।

पूरे रास्ते अनाया यही सोचती रही कि भारत में दादी के पास वृन्दावन जा कर क्या क्या करना है पर सबसे पहले जो काम करना है वो यह कि पापा को वृन्दावन में ज्यादा से ज्यादा दिन रोकना है जाने फिर कब लौट कर आना हो काश मैं हमेशा के लिए वहाँ रह पाती बड़ी हसरत से अनाया ने सोचा।

वृन्दावन के एक एक घाट जैसे अनाया को अपने पास बुला रहे थे कभी वो चीर घाट पर ख़ुद को कदम्ब के पेड़ के नीचे खड़ा पाती ।तो कभी कालियादमन घाट के बारे मे सोचती रह जाती ।इसी सोच विचार में दादी की चौखट पर जा पहुँची  थी अनाया.......

अनाया और उसके मम्मी पापा को आया देख दादी की ख़ुशी का तो कोई ठिकाना ही ना था।

आननफ़ानन ही सब घर वालों ने मिलकर अनाया के बर्थ डे पार्टी की तैयारी कर ली थी।

शाम को जब अनाया केक काटने लगी ।तो पापा ने आकर एक और लिफ़ाफा अनाया को पकड़ा कर बोले।

यह रहा तुम्हारा एक और बर्थ डे गिफ्ट

बेसब्री से उस लिफ़ाफे को जब अनाया ने खोला तो एक पल के लिए तो हैरान ही रह गयी अनाया।

वापसी का टिकट था उसमें वो भी दो दिन बाद का परेशान सी अनाया ने एक बार फिर टिकट को चेक किया ।पर यह क्या सिर्फ एक टिकट वो भी पापा का क्या पापा दादी को छोड़ कर जा रहें है इतनी जल्दी ?? अभी तो हमें आऐ एक पूरा दिन भी नहीं हुआ था। अनाया ने परेशान होकर सोचा।

अनाया के चेहरे पर परेशानी देख कर मुस्कुरा कर बोले अनाया के पापा ।

"जा रहा हूँ मै बेटा पर लौट कर आने के लिऐ वो भी हमेशा के लिऐ। 
जानती हो राज्य सरकार की कोशिशों से अब यू.पी में बिजनेस करना पहले के मुकाबले बहुत आसान हो गया है ।बहुत हो गया अब नहीं है हिम्मत मुझमें परदेसी बनने की "

अनाया के पापा की बात सुन ख़ुशी से छलछला गयी थी अनाया की दादी की आँखे और अनाया वो तो ऐसा बर्थ डे गिफ्ट पा कर ख़ुशी से नाच उठी ।

                     उसका दिल भी कहाँ चाहता था राधा-कृष्ण के अमर प्रेम मे रची गलियों को छोड़ कर जाने का।आज तक का सबसे अच्छा बर्थ डे गिफ्ट दिया था अनाया के पापा ने अनाया को।

 


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