नई रीत
नई रीत
दुल्हन के जोड़े में सजी छवि सोच रही थी आज ये घर- आँगन छूट जाएगा मुझसे। हर कोई पराया धन कहता रहा मुझे पर माँ-पापा ने कभी नहीं कहा पर दुनियावी दस्तूर के आगे आज वो भी पराए घर भेजने को मजबूर हो गए।
तभी फेरों के लिए बुलावा आया और वहाँ पर हमेशा से कम बोलने वाले छवि के पापा बोल पड़े कि दुनिया के सभी रीति-रिवाज़ तो मैं नहीं बदल सकता। बेटी की शादी तो जरूरी है ताकि उसे एक अच्छा जीवनसाथी मिले जिसके साथ वो ख़ुशियाँ और ग़म बाँट सके।
पर हाँ ये कन्यादान की रस्म मैं नहीं करूँगा।मेरी बेटी है छवि ,कोई निर्जीव वस्तु नहीं जिसे दान में दे दूँ। अब समय आ गया है कि कुछ चीजें बदल दी जाएं।और छवि, मेरी लाडो तुम्हारे 'नये घर' में तुमको ढ़ेरों ख़ुशियाँ और प्यार मिले, मेरा आशीर्वाद है पर हमेशा याद रखना मेरी बात कि ना तो तुम्हारे लिए ये घर भी पराया हुआ है और ना ही कभी तुम इस घर के लिए पराई होगी।"
इस पर वहाँ उपस्थित लोगों में से कुछ ने समर्थन किया तो कुछ ने दबी ज़ुबान से परंपरा के मिट जाने का भय दिखाया। पर छवि के पापा के दृढ़ निश्चय के आगे कोई कुछ बाधा ना डाल सका और विवाह खुशी से संपन्न हुआ।