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मैं बेवफ़ा तो नहीं

मैं बेवफ़ा तो नहीं

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"यादों की गलियों में कुछ पल की सैर...

हमेशा से तेरे रूह की दरकार, हमेशा से अपने वजूद को तलाशते तेरे रूह के सागर में साहिल को तलाशने की जद्दोजहद, हर बार हाथों में रुसवाई फिर भी हमारे रिश्तों को खुदा की बारगाह में सबसे ऊपर रखा। तुमसे तो कोई रिश्ता भी नहीं था तो फिर तुम मेरी नज़रों में इतनी अज़ीज़ क्यों तुम्हें तो कभी गौर से देखा भी नहीं फिर तुमसे इतनी दिल्लगी क्यों ? तुम्हें देखे एक अरसा हो गया लेकिन आज भी तेरी तस्वीर मेरी आँखों के सामने एक निशानी की तरह। "

अचानक से किसी ने पीछे से कोहनी मारी तो मैं अपनी जादूई दुनिया से हकीकत की दुनिया में उतरा और देखा कि मेरा पुराना दोस्त विकास है। पिछले सफर में याद शहर में मुलाकात हुई थी एक प्रोग्राम में...

याद शहर मेरे ज़िन्दगी के बहुत से अनसुलझे किस्से और कहानीयों की एक बन्द दुकान है जहाँ पहले मेरा आना जाना अक्सर होता था। जहाँ से बहुत से किस्से कहानियों का जन्म होता है। जहाँ कुछ ख्वाहिशें अधूरी रह गयी थीं लेकिन ज़िन्दगी के इस भाग दौड़ में कुछ न कुछ तो छोड़ना पड़ता है। बस याद शहर भी इसी उधेड़बुन में कहीं गुम हो गया, रह गईं तो सिर्फ यादें...

तभी विकास कंधे पर हाथ रखते हुए..

विकास

:- और बता दोस्त कैसा है तूँ और यहाँ लखनऊ कैसे ?

मैं :- दोस्त, मैं तो बिल्कुल ठीक हूं , बस अगली ट्रैन पकड़ के मुम्बई जा रहा हूँ।

विकास

:- अच्छा, यारर अब तूँ याद शहर नहीं आता, क्यों ?

मैं :- कुछ नहीं विकास बस ऐसे ही, वो क्या है न....

( तभी अचानक से गला चोक लेने लगता है आंखों में आँसू आ जाते हैं दिल तो कर रहा था सब कुछ बता दूं लेकिन वक़्त इज़ाज़त नहीं दे रहा था मन अंदर ही अंदर कह रहा था कि क्या फायदा जो बीत गया सो बीत गया, किसी को बता के क्या फायदा...)

विकास

शायद मेरी आँखों के पीछे की तस्वीर समझ चुका था। तभी अनुज ने कहा कि...

विकास

:- अच्छा छोड़ो, अगर तुम्हें कोई परेशानी न हो तो मैं भी तुमहारे साथ हो लूँ, मैं भी मुम्बई ही जा रहा था चूंकि मेरा रिज़र्वेशन कंफर्म नहीं हो पाया है।

मैं :- दोस्त इसमें पूछने की क्या बात साथ में चलेंगे मज़ा आएगा अंदर ही अंदर सोचने लगा कि कुछ पुराने दुख दर्द भी बांट लूंगा।

तभी एलान होता है कि गाड़ी संख्या ****** कुछ ही समय में प्लेटफॉर्म संख्या 1 पर आ रही है ।

मैं उठा और अपना सामान लिए विकास के साथ प्लेटफॉर्म नम्बर 1 की तरफ जाने लगा कुछ ही सम S-7 कोच की तरफ बढ़ा और अपनी सीट पर जा कर समान रख के बैठ गया, विकास भी मेरी सीट पर आकर बैठ गया। फिर वही पुरानी बातें ताज़ा होने लगीं पुरानी यादों का बॉक्स अब धीरे-धीरे खुल रहा था।

तभी विकास ने बातों में ही पूछ द प्रियंका कैसी है ?

प्रियंका कैसी है ? मैंने थोड़ा ज़ोर देते हुए पूछा प्रियंका, कौन प्रियंका ?

विकास

:- अरे वही तुम्हारी कॉलेज वाली दोस्त।

(एक बार बताया था फ़ोन पे)

मैं :- ठीक ही होगी। (दबी-दबी आवाज़ में )

विकास

:- ठीक होगी मतलब ? मतलब तुम उसके कॉन्टैक्ट में नहीं नहीं! मेरी उससे कोई बातचीत नहीं है।

तभी ट्रेन रफ्ता-रफ्ता मंज़िल की तरफ बढ़ने लगती है।

विकास

:- यारर थोड़ा शुरुआत से बताओ तो आखिर यह सब हुआ कैसे ? मतलब तुम मिले कैसे वगैरह-वगैरह...

मैं समझ गया था कि दोस्त है बताना ही पड़ेगा और इसी बहाने मुझे अपनी कहानी सुनाने का मौका मिल गया। बैग से अपनी डायर विकास को अपनी और प्रियंका की कहानी सुनाने लगा।

आप भी सुनिए एक अनकही दास्ताँ...

"कहानी के अंश"

वक़्त से पहले और बिना किस्मत के कोई चीज़ नहीं मिलती।

हम सबने अक्सर किस्से, कहानियों, और लोगों से सुना है। यह मानव निर्मित सिंद्धांत मेरे पर भी लागू होना था। स्कूल में पढ़ते हुए अक्सर सोचा, कुछ हो जाये। लेकिन बिना ऊपर वाले कि मंज़ूरी कहाँ कुछ होना था बल्कि नियति को तो कुछ और ही मंज़ूर था कुछ होना तो बहुत दूर, मेरा के एक बॉयज़ स्कूल में हो गया था जहाँ लड़कियों से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं, वास्ता तो दूर, सोच भी नहीं सकते थे। इंटर तक तो बॉयज़ स्कूल में पढ़ने के बाद मेरा याद यूनिवर्सिटी में हो गया।

बचपन की दबी इच्छा को अब अमली जामा पहनाने का वक़्त आ गया था और मैं यह वक़्त बर्बाद करना नहीं चाहता था। खैर, कॉलेज अब शुरू हो गया था और मेरे दिमाग में वह बात घूमती लेकिन यहाँ भी कोई चारा नहीं लग रहा था। आते जाते अब लगभग एक हफ्ता हो गया था अभी भी कॉलेज में एडमिशन हो रहा था। मुझे तलाश थी मेरे धड़कन की, सांसें तो ले रहा था लेकिन एक कमी थी, कमी शायद और 'तुम' मिलकर 'हम' बनने की थी। मेरे भी अब दोस्त बन रहे थे इसी समय एक दोस्त से पता चलता है कि कोई अपने क्लास में प्रियंका नाम की लड़की आयी है। मेरी धड़कन तो एक दम से रुक गयी, मैं तो सपनों की दुनिया में उड़ने लगा था, बिना देखे यह अहसास पहली बार हुआ था, मैं तो बस अब उसे देखना चाहता था। मैं अपने दोस्तों से विदा लेकर क्लास में गया अभी प्रोफेसर नहीं आये थे। सारी लड़कियों के बीच घिरी हुई प्रियन्का, थोड़ा सा तिरछी नज़र से एक पल के लिए देखा बिलकुल परी की तरह थी। मेरी एक दोस्त ने मुझे उससे मिलाया। मैंने ही अपना हाथ बढ़ा दिया फिर थोड़ी बात हुई बस नाम भर, नाम तो मैं पहले ही जान गया था। उसके बाद हल्की फुल्की बातें रोज़ हो जाया करती। धीरे-धीरे हमारी दोस्ती पहले से अच्छी हो रही थी। दोस्ती, सच कहूँ तो मेरे द्वारा रचा गया एक षड्यंत्र मात्र। मैने तो उसे पहली नज़र में ही पसंद कर लिया था, वह सबसे अलग थी या यूँ कहें कि मेरी नज़रों ने ही उसे और लड़कियों से अलग कर दिया था।

खूबसूरती का बखान क्या करूँ, शब्दों से परिभाषित करना थोड़ा मुश्किल। मेरे मन में ख्याली पुलाव पक रहे थे। मैं अपने मन ही मन रोज़ शतरंज की चाल चलता उसको पटाने के लिए लेकिन कोई भी चाल काम नहीं करती। दोस्ती तो हमारी दिन प्रतिदिन अच्छी हो ही रही थी लेकिन मुहब्बत के रास्ते पर मैं अभी अकेला ही चल रहा था। काफी बार सोचा बोल दूं , तूँ मेरी दोस्त नहीं है तूँ मेरी वो वाली दोस्त है, लेकिन मन में दोस्ती टूट जाने का डर कभी कुछ होने नहीं देता। देखते ही देखते अब मुझे कॉलेज आते जाते आधा साल हो गया था लेकिन मेरी मोहब्बत वाली ट्रेन अभी रुकी हुई थी।

अन्ततः अपनी भावनाओं से तंग आकर मैंने फैसला लिया कि आडिअर प्रियंका,

नाम से भी ज़्यादा प्यारी और उससे भी प्यारी तुम्हारी अदाएं। आज तक कहने की हिम्मत नहीं हुई लेकिन मैं अब और इसे अपने पास नहीं रख सकता। मुझे नहीं पता कि तुम क्या सोचोगी लेकिन मुझे बताना होगा...

प्रियंका, मैं तुम्हें पसन्द करने लगा हूँ तुमसे भी ज़्यादा तुम्हारी आँखों से और उससे भी ज़्यादा तुम्हारी ज़ुल्फ़ों से जब तुम अपनी एक उंगली अपने बालों में डालकर ऊपर की तरफ फेरती ह प्रियंका बेशक मैं तुम्हें पसंद करता हूँ लेकिन मैं तुम्हें प्यार नहीं करता जब तक तुम अपनी तरफ से हां नहीं बोलोगी, क्योंकि अगर तुम वह लड़की नहीं तो फिर तुमसे प्यार करना एक बेवकूफी होगी और उस लड़की से बेवफाई जो शायद मेरी ज़िंदगी में आने वाली ह मैं तुमसे बड़े-बड़े वादे तो नहीं करूंगा, तुम्हारे साथ जीने मरने की कसम भी नहीं खाऊंगा लेकिन तुम्हारा साथ मैं अपनी आखिरी सांस तक दूंगा। मुझे नहीं पता तुम्हारी ज़िन्दगी के बारे में, यह मुमकिन है कि जैसे मैं तुमसे पसन्द करता हूँ, हो सकता है कि वैसे तुम भी शायद किसी को पसंद करती होग मैं तुम्हारी ज़िन्दगी में पहला इंसान हूँ यह तो नहीं पता लेकिन मैं तुम्हारी ज़िन्दगी का आखिरी इंसान बनना चाहता हूँमुझे तुम्हारे जवाब काअनुज

(मैं) तुम्हारा दोस्त लेकिन शायद अब नहीं।

(दोस्ती के बाद मुहब्बत मुमकिन है लेकिन मुहब्बत के बाद दोस्ती नहीं, क्योंकि मरने के बाद किसी को दवा नहीं दी जा सकती।)

बाई !

उसके बाद उसके जवाब का इंतज़ार एकात हफ्ते तक, क्लास भी जाना अब कम कर दिया था क्योंकि क्लास जाने में शर्म महसूस होती थी और डर भी था कि कहीं बेइज़्ज़ती न हो जाए अगर उसने सबको बता दिया होगा तो। वही हुआ जिसका मुझे डर था दो हफ्ते के बाद क्लास गया तो सब लड़कियां मुझे देखकर प्रियंका-प्रियंका चिल्ला रही थीं। मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। चेहरा एकदम लाल हो गया था। शायद प्रियंका ने अपने दोस्तों को बताया होगा और वहीं से बात फैली होगी। उस दिन प्रियंका आयी भी नहीं थी मैं जल्दी से क्लास छोड़कर भाग गया और रूम पर आकर रोने लगा और मन ही मन घुटने भी लगा था अगर उसे मेरा प्रोपोज़ल स्वीकार नहीं था तो मुझे बताती पूरे क्लास में शोर मचाने की क्या ज़रूरत थी। मैंने तय कर लिया था कि अब कॉलेज नहीं जाना है, सुबह शाम गुमसुम, न किसी से बात न हीं किसी से मुलाकात ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरे लिए अब इस दुनिया में कुछ भी बचा ही नहीं है। अब तो शायरों की महफ़िल में भी उठना बैठना हो गया था जहाँ मेरे जैसे न जाने कितने टूटे दिल बैठक करते थे। मेरी पढ़ाई भी कुछ ज़्यादा ही खराब हो रही थी, अगले महीने से एग्जाम होना था अटेंडेंस भी काफी कम थी और एक्ज़ाम में बैठने के लिए मुझे अटेंडेंस चाहिए थी तो मैंने एक बार फिर से क्लास जाने के लिए सोचा और क्लास आने जाने लगा। प्रियंका भी आती लेकिन मैंने अब ध्यान देना ही छोड़ दिया था। "आप सोच रहे होंगे कि इतनी आसानी से उसे नज़रअंदाज़ कैसे कर दिया जिसके लिए मैंने महीननज़रअंदाज़ नहीं किया लेकिन अगर आप मेरी लिखी हुई चिट्ठी ध्यान से पढ़े होंगे तो उसमें मैंने साफ साफ मैं तुम्हें पसंद करता हूं और हमेशा करूँगा लेकिन तुमसे प्यार नहीं कर सकता जब तक तुम्हारा हाँ न हो...

'पहली दफा किसे चोट नहीं लगती' लेकिन मैं अब बिल्कुल ठीक था, थोड़ी बहुत तकलीफ़ होती जब उसको देखता था। लेकिन फिर अपने आपको मना लेता। वक़्त की मंज़ूरी न हो तो कोई भी काम नहीं हो सकता, इसी में मेरी भी स्वीकृति थी।

खैर, अब आते जाते दो हफ्ते हो गए थे प्रियंका भी मेरी तरफ ज़्यादा नहीं कम ही सही देखती एकात बार नज़र भी मिल जाती लेकिन मैं तुरंत हटा लेता, शायद उसको यह पसन्द नहीं आता शायद उसे अपने दोस्त की कमी खल रही थी। लेकिन मैं भी अपने वादों से मजबूर। तकरीबन दो दिन बाद मैं अपने दोस्तों के साथ कैन्टीन में बैठा हुआ था तभी प्रियंका आती है (मैंने उसे दूर से ही देख लिया था इसलिए दूसरी तरफ मूँह करके बैठ गया था) पास आकर बोलती है...

प्रियंका :- अनुज मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है

मैं :- मुझसे क्या बात करना है ? ( भौंहें चढ़ाते हुए)

प्रियंका :- मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बात करना है बोली तो ( (थोड़ा गुस्साते हुए)

मैं :- हाँ, बोलो न क्या बात करना है

प्रियंका :- यहाँ नहीं, चलो यहाँ से कहीं और

(मेरे दोस्त मुझे तिरछी नज़रों से इशारे करते हुए। )

मैं :- वहाँ से उठा और लाइब्रेरी के पीछे गया और बोला बताओ क्या बात करना है ?

प्रियंका :- देखो अनुज कॉलेज में मेरे तुम्हीं अच्छे दोस्त थे और आज मुझसे इतनी दूर क्यों रहते हो ?

मैं :- यह सवाल तुम्हें अपने आप से पूछना चाहिए

प्रियंका :- देखो जो तुमनें खत दिया था वो मेरी दोस्तों के हाथ लग गया था इसी वजह से इतना बवाल हुआ और अनुज मैं क्योंकि मैं रोहन से प्यार करती हूँ तुमसे नहीं....

मेरे तो अंदर ही अंदर घुटन हो रही थी, अब यह रोहन कहाँ से आ गया तभी...

प्रियंका :- अनुज मैंने तुम्हें रोहन के बारे में नहीं बताया क्योंकि मैं इसे पब्लिक नहीं करना चाहती थी। मैं उसे पिछले चार सालों से जानती हूँ और दो साल पहले मैं उससे प्यार करने लगी वह भी मुझे बहुत प्यार करता है...

( उसकी आवाज़ को काटते हुए क्योंकि मैं और नहीं सुनना चाहता था)मैं :- अच्छा है न प्रियंका तुम्हें तुम्हारा प्यार मिल गया है, तुम्हारा प्यार तुम्हें ढूढता हुआ तुम्हारे करीब पहुंच ही गया। तुम्हें याद है उस खत में मैंने लिखा भी था कियह मुमकिन भी है कि तुम भी किसी से प्यार करती हो... भावनाओं पे किसी का जोर नहीं चलता यह कब किस्से जुड़ जाएं क्या पता और अच्छा ही है कि रोहन जैसा प्यार करने वाला लड़का मिला है।

(बोल तो दिया था लेकिन कैसे बोला मुझे खुद नहीं पता।)

प्रियंका :- हाँ वो तो है, रोहन मुझे बहुत प्यार करता है।

मैं :- अच्छा प्रियंका चलता हूँ मुझे कुछ ज़रूरी काम है मैं तुमसे बाद में मिलता हूँ।

उसके बाद मन ही मन अपने आपको कचोटने लगा कि आखिर ऐसी लड़की से दिल्लगी हुई ही क्यों जो मेरी हो ही नहीं सकती थी।मीरा तो भगवान कृष्ण से 800 साल बाद इस दुनिया में आई थी फिर भी भगवान कृष्ण से बेपनाह मोहब्बत करती थीं। वह अक्सर कहती थीं कि मुझे प्यार करने के लिए कृष्ण ने शरीर की ज़रूरत नहीं है उनके अहसास भी तो हैं, उनकी आत्मा भी तो है मैं उसी से प्यार करती हूँ।

शायद मेरी मोहब्बत भी कुछ ऐसी ही थी एक रूहप्रियंका) को पाने के लिए दो इंसान (अनुज और रोहन) कहाँ तक मुमकिन था तो मैंने अपने आप से यह फैसला लिया कि अब मैं प्रियंका को कभी भी पाने की कोशिश नहीं करूंगा अगर वह मेरी है तो ज़रूर मिलेगी।

इसी शायराना अंदाज़ में न जाने कब महीनों गुज़र गए और जनवरी की ठंड हवाओं से खबर मिलती रोहन की मौत हो गयी है याद एक्सप्रेस में जो कि पटरियों के उतर जाने के कारण खाई में गिर थी।

सच कहूँ तो मैं थोड़ा बहुत खुश भी था लेकिन मुझसे किया हुआ मेरा वादा मुझे याद आया कि 'प्रियंका को पाने की कोशिश नहीं करूंगा'

दोस्तों से सुना था कि प्रियंका की हालत बहुत खराब है रोहन के चले जाने से एक दोस्त के नाते हक तो था कि जा के देख आऊँ तो अगले दिन मिला बेचारी बिल्कुल गुमसुम न जाने अपने सपनों में रोहन के साथ कहाँ तक पहुँच चुकी होगी और आज सब चकनाचूर...

तभी

प्रियंका :- अनुज शायद मैं अब ज़्यादा दिन ज़िंदा न रह पाऊँ मुझसे कोई गलती हुई होगी तो माफ कर देना।

( रोते हुए)

मैं :- पागल, तुमसे क्या गलती और तुम कहीं नहीं जा रही हो मैं हूँ न ( दिलासा देते हुए)

उसी टूटी हुई प्रियंका में अपनी तस्वीर देख रहा था। थोड़ी सी धुंधली थी। मैंने सोचा लिया था पहल मैं नहीं करूंगा लेकिन अगर प्रियंका चाहेगी तो मैं उसे अपने आखिरी सांस तक उसे हर खुशी दूंगा ऑयर उसके साथ रहूंगा।

उसके बाद ठंड की छुट्टियों की वजह से मैं घर वापस आ गया था कॉलेज से तभी मेरी नज़र टेबल पर रखे हुए अखबार पर जाती है। सोचा खाली बैठा हूँ थोड़ा पढ़ ही लेता हूँ।

खोलते हुए मेमुख्य पेज पर लिखा था...

याद यूनिवर्सिटी की एक छात्रा की खुदकुशी के कारण मौत

नाम:- प्रियंका, बीकॉम की छात्रा

मौत, प्रियंका की शायद रोहन की मौत को भूल न पाई हो इसी कारण खुदकुशी की होगी।

प्यार, इश्क़, मोहब्बत यह सब अनसुलझे पहलू शायद इसे सुलझाने में ही प्रियंका की मौत हुई होगी। कह नहीं सकते। हकीकत से कोसों दूर।

मैंने फौरन बिना रुके याद यूनिवर्सिटी के लिए रवाना हो गया और जब वहां पहुंचा तो प्रियंका का अंतिम संस्कार हो चुका था। शायद परिवार की इज़्ज़त की वजह से मोहब्बत में की हुई खुदकुशी के कारण प्रियंका के घर वालों ने लाश लेने से मना कर दिया होगा। मैं उसे देख भी नहीं पाशायद मेरी मोहब्बत का इम्तेहान लिया जा रहा हो मुझसे, कोने में खड़े एक पेड़ के नीचे जा कर बैठ गया। अचानक से ज़ोर-ज़ोर से हवा चलने लगी तभी एक पर्चा उड़ते हुए मेरे पास आया शायद नियति को इस पर्चे के बहाने मुझ तक पैगाम भेजना हो। इसी के साथ मेरा किया हुआ वादा कमैं तुमसे (प्रियंका) प्यार नहीं कर सकता जब तक तुम भी अब टूट चुका था। सच मुझे अब प्रियंका से प्यार हो चुका थोड़ा देर ही सही लेकिन हो गपर्चा उठाया उसमें लिखा था...

"मैं इस जन्म में किसी की नहीं हो पाई।"

बस इतनी सी थी यह अधूरी कहानी...

उसके बाद डायरी बन्द करके अपने बस्ते में वापिस रख ली बस कुछ ही समय में मुम्बई स्टेशन आने वाला था।

निकल पड़ा मैं, एक और दास्तान को समेटने के वास्ते, आप तक पहुंचाने के लिए।अगली कहानी तक इंतेज़ार करिएगा, बहुत जल्द आप तक पहुंच जाएगी बस 'फॉलो' वाला बटन दबा दीजिए...।


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