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आख्रिर कब

आख्रिर कब

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पिछले कुछ दिनों से लगातार पुरूषों की कुत्सित मानसिकता के घृणित कृत्‍यों की खबरें पढ़-पढ़कर छवि का मन वितृष्‍णा से भर उठा था। १२ साल की मासूम का दुष्‍कृत्‍य के ९ माह बाद मां बनना, कोचिंग से लौटती २० साल की बिटिया के साथ सामूहिक दुराचार, १० साल की नादान को चाकलेट का लालच दिखाकर ५-6 माह तक दैहिक शोषण, ना जानें क्‍यों अपनी नन्‍हीं बिटिया की सुरक्षा को लेकर छवि की रूह अंदर तक कांप सी उठती थी ।

वैसे तो छवि रोज़ाना लंच टाइम में सिमरन को स्‍कूल की वैन से उतारकर अपने साथ घर लाती और लंच के बाद वापस ऑफिस जाते समय सिमरन को दरवाजा अंदर से बंद रखने की सख्‍त हिदायत भी देती, साथ ही यह कहना नहीं भूलती कि उसके और पापा के अलावा किसी के लिए भी दरवाजा मत खोलना। फिर भी सिमरन को घर पर अकेले छोड़कर ऑफिस हुए उसके मन में अनेक आशंकाएं उमड़ती घुमड़ती।

ऐसे ही एक दिन लंच टाइम में छवि सिमरन को घर पर छोड़कर वापस ऑफिस पहॅुची और घंटे भर बाद ही उसके भाई ने फोन करके कहा कि जल्‍दी घर आ जाओ, सिमरन दरवाजा नहीं खोल रहीं हैं, मैं आधे घंटे से बाहर खड़ा हॅू।

सुनकर सिमरन घबरा गयी, और अपने टेबल का काम वैसा ही छोड़, अपने बॉस को बताकर जल्‍दी से स्‍कूटी से घर की ओर भागी। घर पहॅुची तो देखा सिमरन हाथ में जूस का गिलास लिए खिड़की से टुकुर – टुकुर बाहर निहार रहीं थी।

छवि ने गुस्‍से भरे स्‍वर में पूछा, टसिमरन, मामा बाहर खड़े हैं इतनी देर से, दरवाज़ा क्‍यों नहीं खोला।

'मां, आपने ही तो कहा था कि आपके और पापा के अलावा कोई भी आये, दरवाजा मत खोलना' सिमरन बोली

आंखों में अनेक प्रश्‍न लिए मैं अपने भाई की ओर देखती रही। आखिर अपनी नन्‍हीं कलियों की सुरक्षा को लेकर, माता-पिता की इस मज़बूरी का अंत होगा, कब , आखिर कब।


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