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स्याला प्यार करता है...

स्याला प्यार करता है...

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वो कहता है हमसे प्यार करता है। कितनी बाहियात बात है। उतना ही झूठी बात भी। कहता है मुझे कि वो मुझसे जुड़ने सा लगा है। यह भी कितनी बेकार सी खोखली बात है। पहले भी प्यार कर चुका है। तभी प्रेम विवाह कर चुका है। कहता है कि मुझसे कि मैं उसे अच्छी लगती हूं। वो यह भी कहता है कि मुझसे काफी सारी बातें करना चाहता है। कहता है कि वो मुझे चिट्ठी लिखना चाहता है। लिखता भी है। मैंने तो उसे कई बार कहा बल्कि ताकीद की कि वो मुझे न कुछ लिखे, न ही कुछ पढ़ाए। क्या होगा इस पढ़ने पढ़ाने से। जो मेरे मन में है वही करूंगी।

हप्ता, महीना गुजरा। लेकिन उसकी आदत वहीं की वहीं रही। वो वैसे ही मुझे चाहता रहा। वैसे ही चिट्ठी लिखता रहा। बस अंतर इतना आया कि मैं उसे बस यूं ही उसकी लिखी बातें, भावनाएं पढ़ भर लेती हूं। कुछ कहना चाहूं भी तो कहने की इच्छा नहीं होती। कई दफा उसे समझाने की कोशिश की कि वो मुझे प्यार न करे। न करे मुझसे प्यार। लगाव भी न रखे। लगाव से करीबियत आती है और करीब आएंगे तो दर्द भी होगा।

मैंने उससे कहा कि मैं ऐसी वैसी दूसरी तरह की लड़की नहीं हूं। मेरा घर बहुत पुराने ख़्यालातों वाला है। कब कैसे काट-पीट कर भेज देंगे पता भी नहीं चलेगा। लेकिन वो है कि मानता ही नहीं। एक ही रट लगा रखी है कि वो मुझसे प्यार करता है। कहता तो यह भी है। वो अकसर मुझे याद किया करता है। मगर उसे पता होना चाहिए कि मैं दूसरे तरह की नहीं हूं।

उसे कितनी बार समझाने की कोशिश की कि वो जॉब करने आया है। जॉब करे। खामखाह खुद भी परेशान होगा और मुझे भी करेगा। मगर मानता ही नहीं।

वो कहता है कि आज कल वो मुझे ही सोचता और लिखा करता है। लेकिन मैंने उसे कई बार कहा कि इसका कोई फायदा नहीं। अपनी सीमाएं मालूम हो तो ठीक रहता है। लेकिन वो अक्सर कहा करता है कि हद अनहद के बीच में उसे जीना अच्छा लगता है। मैं तो कहती हूं कि वो अपनी हद में नहीं रहा तो मुझे कुछ कड़े कदम उठाने होंगे।

लेकिन वो है कि मानता नहीं। मेरी अपनी कुछ और प्राथमिकताएं हैं। मुझे कोई और पसंद है। मैं खुद को धोखा नहीं दे सकती। लेकिन वो अक्सर कहता है कि वो मेरे लिए दिक्कतें कभी पैदा नहीं करेगा। मुझे परेशान नहीं करेगा। मैं तो कहती हूं। वो क्या मुझे परेशान करेगा। मैं चाहूं तो उसे सड़क पर ला दूं। मगर ऐसा ही तो नहीं चाहती।

देखते ही देखते कुछ और दिन, महीने बीते। वो वैसे की वैसे ही रहा। कह कर भी नहीं बदला। बदलता भी कैसे। उसकी फितरत ही ऐसी थी। बाद में आकर मुझे तो कोफ्त सी होने लगी थी उससे। उससे बातें करना तक बंद कर चुकी थी। एक तरह से बहिष्कार कर चुकी थी। वो भी कटा कटा सा रहने लगा था। उसे भी समझ में यह बात आ गई थी कि मैं उससे दूरी बनाने लगी हूं। उसने कभी भी उस दूरी को तोड़ना या पाटने की कोशिश नहीं की। उसकी तरफ से कोई ऐसी बात नहीं हुई जिससे यह महसूस हो सके कि वो मुझे किसी भी तरह की हानि पहुंचाना चाहता है। मगर लड़की जो ठहरी। हमेशा लगता कि कहीं वो अकेला देख-पा कर गले न लगा ले। कहीं चूम न ले। मगर मेरा यह ख़याल गलत रहा। कभी उसने अतिक्रमण नहीं की।

पहले कभी कभी कह भी देता कि गले लगाना चाहता हूं। बस गले लगाना है। लेकिन बाद के दिनों में उसके अंदर यह इच्छा भी शायद किसी भय से मर सी गई। मैं चाहती थी कि वो अपनी दुनिया में ही रहे। मेरी दुनिया को बेचैन न करे। हलचल पैदा न करे।

पर, पर मैं भी तो लड़की थी। मुझे कभी इस का एहसास ही नहीं हुआ कि उसने मुझे क्यों अपने लिए चुना। क्यों मुझे अपने करीब लाना चाहता था। जबकि मालूम है कि उसकी पत्नी है। जीवन है। और उस लाइफ में खुश है। मगर वो कहा करता था कि प्यार किसी एक किनारे से बंध कर नहीं रह सकता। प्यार खुलापन, उन्मुक्तता सिखाता है। काफी हद तक तो शायद वो ठीक रहा होगा। लेकिन मेरे लिए यह स्वीकार कर पाना बेहद कठिन था। कठिन था यह मानना भी कि वो कैसे मुझे प्यार कर सकता है। कहीं न कहीं एक जमीन थी जो दरक रही थी।

वो कहा करता कि उसे मैं अच्छी लगती हूं। मुझसे बातें करना उसे अच्छा लगता था। लेकिन वो कौन सी दीवार थी जिसकी वजह से मैं उसे खुला आसमान नहीं दे पाई। मैं कोई गलत नहीं करना चाहती थी। चाहता तो वो भी नहीं था ऐसा कुछ करना जिससे आगे चल कर किसी को भी ग्लानि महसूस हो। फिर मैं सोचती हूं कि वे मुझसे क्या चाहता था।

हालांकि उसने मुझसे कई बार जिक्र किया कि उसे मुझसे क्या चाहिए और क्या नहीं। उसने तो यह भी साफ किया कि वो मुझसे सिर्फ रागात्मक संबंध रखना चाहता है। वो चाहता है कि मैं उसे सिर्फ प्यार भरी निगाह से देखूं और उसे कभी गले लगा लूं। आज जब सोचती हूं तो लगता है कि उसकी उस मांग में कोई खास हर्ज नहीं था। अगर वो सिर्फ मुझे गले लगाना चाहता था तो उसमें कोई मैल तो नहीं था।

एकाध बार कोशिश की कि उसकी इस इच्छा को मैं अपनी भावनाओं और मान्यताओं के बाहर जाकर गले लगा सकूं। लेकिन उसकी भी कमजोरी थी या आदत की फिर वो जल्दी नार्मल नहीं होता था। उसी ख्यालों में डूबा रहता। बातें करता तो उसमें भी पुरानी यादें जज्ब रहा करतीं। मेरा मानना है कि अतीत में अटकी चेतना ठीक नहीं। लेकिन वे था पूरी तरह से अतीत जीवी। मुझे इससे भी दिक्कत होती थी। अगर एक बार कुछ हो गया तो उसे हो जाने दो। फिर बार बार उसी अतीत में जीने का क्या मकसद।

चिट्ठियां लिखता रहा। कविताएं जो मुझ पर ही होतीं लिखता और पढ़ाता रहा। पढ़ाते वक्त उसका चेहरा मेरी ओर ही होता। वो शायद मेरे अंदर की दुनिया में होने वाली हलचलों को पढ़ लेना चाहता था। लेकिन मैंने भी बड़ी साफगोई से अपने मन की भावनाओं को काबू में रखना सीख लिया था।

काफी दिन बीत गए। वो नजर नहीं आया। उसकी पास वाली कुर्सी खाली है। खाली तो कुर्सी ही है। लेकिन उसकी बैठने की आदत। उसका देखने का अंदाज़। अब याद आती हैं। जब वो चला गया। उसके जाने के बाद महसूस होता है कि कुछ पीछे छूट गया। कुछ बातें अधूरी रह गईं। वो कुछ कहना चाहता था अपने आखिरी दिनों में। मगर डर था शायद वो कुछ कहे बिना चला जाये। लौटकर आना तो शायद मुनासिब नहीं। मगर लौटकर आएगा भी तो किस मुंह से। जिस तरह से निकला यहां से ऐसे भी कोई निकलता नहीं होगा। मैंने भी सोचा क्यों न आखिरी मर्तबा अपनी कर लूं। सो मैंने भी अपनी बात रखी। और हो गया हंगामा।

सुना है उसे हेड आफिस से मेल आया था। लिखा था कि कल से आपकी सेवा समाप्त की जाती हैं। रातों रात उसकी जगह खाली हो गई। खाली हो गई उसकी कुर्सी। अब वहां कोई नहीं बैठता। खालीपन कई बार कचोट रहा है। मगर नियति है। इससे कोई बच नहीं सकता।

उसका डेस्कटॉप वैसे ही खुलता है। कुछ की-वर्ड्स बदल गये हैं। कोई और अब उसके डेस्कटॉप को ऑन किया करता है। कभी कभी सोचती हूं कि इंसान को उसकी इज्जत और मान उसका व्यवहार ही तो दिलाता है। उसने शायद अपनी नजरों में ठीक किया हो। मगर मेरी नजरें में ठीक नहीं था। उसने शायद मुझे अपनी जागीर समझने की भूल कर दी हो। इसकी का खामियाजा भुगतना पड़ा उसे।

आज उसके जाने के बाद सोचती हूं कि क्या उसने सही किया? क्या उसका प्यार इसी काबिल था? मगर सोचती हूं कि वो क्या आज भी मुझे उसी शिद्दत से चाहता होगा? और अगर चाहता भी होगा तो क्या फर्क पड़ता है। कम से कम मेरी जिंदगी से तो चला गया। अब वो जहां भी जाए अपनी बला से।

स्याला कहता था प्यार करता है। उसे शायद मालूम नहीं कि लड़की की भावनाओं का कैसे मान दिया जाता है। कैसे किसी की इज्जत की जाती है। अपने आप को तुर्रा समझता था। हर किसी की बातों में हिन्दी की शुद्धता देखता और टोका करता। गोया वही एक महान हिन्दी विद्वान है। मैंने भी कोई धूल नहीं फांके हैं। अच्छा ही हुआ चला गया। वरना रहता तो परेशान ही करता। वैसे तो मैंने भी सोच रखा था कि अगर वो हद पार करेगा तो गोली मार दूंगी। मगर अफसोस कि उसने कभी हद पार नहीं की।

...आज उसका सिस्टम लॉग आउट हो गया। शायद कल से कोई और इस सिस्टम पर काम करेंगे।


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