घुटन
घुटन
नन्हे बच्चों की शैतानियाँ पर मोहित हो कर “तू तो हमारे बाबा का बाबा है“ कहते हुये बुजुर्ग बाबा के चेहरे पर जो खुशी आती थी उसका बखान कोई शब्दों में नहीं कर सकता था।बच्चो के साथ खेलते हुये रिटायरमेण्ट के बाद वाला समय बुजुर्ग बाबा का हँसी खुशी से गुजर रहा था। बच्चों की सुरक्षा को लेकर उन्हे किसी बाहरी व्यक्ति पर जरा भी विश्वास न था। बच्चों के थोड़ा बड़े होनें पर उन्हे विद्यालय ले जाने की ज़िम्मेदारी बेटो को सौंप रखी थी और विद्यालय से वो स्वयं ही ले कर आते थे। बच्चों के संग रहते हुये सदा सक्रिय रहनें की वजह से वो इस उम्र में भी चुस्त दुरुस्त थे।
समय गुजरनें के साथ नन्हे पोते बड़े हो कर पढाई के सिलसिले में दूर चले गये उधर बुजुर्ग बाबा का ख़ालीपन बढ गया। बच्चों के बिना खाली घर उन्हे काटने को दौड़ता था।एक दिन पुरानें परिचितों से मिलने की इच्छा बलवती होने पर अकेले ही घर से निकल पड़े।
किसी तेज वाहन की टक्कर से जो वो गिरे तो फिर वो बिस्तर से उठ नहीं पाये। निष्क्रिय अंगों के साथ बिस्तर पर पड़े हुये उनको अब जो घुटन होती थी वह किसी सजायाफ्ता क़ैदी से कम न थी।