सलूजा आंटी
सलूजा आंटी
रॉबिन एयरपोर्ट से सीधे सलूजा आंटी से मिलने के लिए जा रहा था। सलूजा आंटी ही थीं जिन्होंने अनाथ रॉबिन की शिक्षा की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ली थी। बात इतनी ही नहीं थी। वह हर साल उसकी चैरिटी में जाकर उसका जन्मदिन बड़ी धूमधाम से मनाती थीं। उसे और उसके अनाथालय के सभी बच्चों में तोहफे बांटती थीं।
रॉबिन को अपने माता पिता के बारे में कुछ भी नहीं पता था। उसके लिए जो कुछ भी थीं सलूजा आंटी थीं। जब भी कभी वह बीमार पड़ता था और उसे किसी के प्यार भरे स्पर्श की आवश्यकता होती तो वह सलूजा आंटी को अपने सिरहाने पाता था।
सलूजा आंटी के कारण ही वह पढ़ लिख सका। पिछले पाँच सालों से अमेरिका में था। जब वह अमेरिका जा रहा था तब सलूजा आंटी ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा था कि खूब तरक्की करो। उनका आशीर्वाद फला भी था। वह एक अमेरिकन फाइनांशियल बैंक का प्रेसिडेंट था। दो महीने के बाद वह जेसिका से शादी करने वाला था। इसलिए शादी से पहले सलूजा आंटी का आशीर्वाद लेने भारत आया था।
टैक्सी सलूजा आंटी के घर पर आकर रुकी। पैसे चुका कर वह घर के भीतर गया। आंटी के गार्डन में अब पहले जैसी रौनक नहीं थी। जिन पौधों की सेवा वह बड़े प्यार से करती थीं, बिना सही देखभाल के मुर्झा गए थे।
रॉबिन को बहुत अजीब सा लगा। उसने कॉलबेल दबाई। दरवाज़ा खुला तो सामने एक अंजान औरत खड़ी थी।
"कहिए किससे मिलना है ?"
"जी मेरा नाम रॉबिन डिसूज़ा है। मैं श्रीमती पद्मा सलूजा से मिलने आया हूँ।"
नाम सुनकर उस औरत के चेहरे पर एक मुस्कान खिल उठी।
"रॉबिन....कम इन....."
उस औरत ने रॉबिन को बैठाते हुए कहा।
"मैं सरला हूँ। तुम्हारी सलूजा आंटी की छोटी बहन। वह अक्सर तुम्हारे बारे में बात करती हैं।"
सरला की बात सुनकर रॉबिन को अच्छा लगा।
"आंटी हैं कहाँ ?"
"मेरे साथ अंदर आओ।"
सरला ने उसे अपने पीछे आने को कहा। वह उसे लेकर एक कमरे में गई। रॉबिन ने देखा कि बिस्तर पर सलूजा आंटी लेटी हैं। वह बहुत बीमार व कमज़ोर लग रही थीं।
सलूजा आंटी ने कुछ देर तक ध्यान से रॉबिन के चेहरे को देखा। फिर उनके चेहरे पर एक चमक आ गई।
"रॉबिन.... तुम कब आए ?"
उन्होंने अपनी बहन से उठ कर बैठने की इच्छा जताई। सरला ने उन्हें तकियों का सहारा देकर बैठा दिया। रॉबिन ने पूँछा।
"क्या हो गया आंटी ? आप इतनी बीमार हैं ?"
रॉबिन का सवाल सुनकर आंटी की आँखों में आंसू आ गए। रॉबिन उन्हें चुप कराने लगा। सरला ने बताया कि साल भर पहले वह फिसल कर गिर गई थीं। तबसे ये हाल है। अब वही उनकी देखभाल करती हैं।
सरला रॉबिन के लिए चाय नाश्ते का इंतज़ाम करने चली गईं। रॉबिन सलूजा आंटी से बात करने लगा। आंटी उससे उसके जीवन के बारे में बहुत कुछ पूँछ रही थीं। नौकरी कैसी चल रही है, खाना कौन बनाता है, अपना घर ले लिया कि नहीं। रॉबिन भी उन्हें हर सवाल का जवाब तफ्सील से दे रहा था।
जब रॉबिन ने उन्हें बताया कि वह जेसिका से शादी करने वाला है तो जैसे वह अपनी बीमारी को भूल ही गईं। उन्होंने बांहे फैला कर रॉबिन को गले लगा लिया। उसे आशीर्वाद देते हुए बोलीं।
"भगवान तुमको और जेसिका को सदा खुश रखे।"
सरला ने आकर बताया कि नाश्ता तैयार हो गया है। वह लेकर आ रही हैं। रॉबिन ने कहा कि वो तीनों लोग बाहर बैठ कर नाश्ता करेंगे। उसने सलूजा आंटी को सहारा देकर व्हीलचेयर पर बिठाया और बाहर गार्डन में ले आया।
नाश्ता करते हुए सलूजा आंटी की नज़र अपने पौधों पर पड़ी तो वह उदास हो गईं। रॉबिन से बोलीं।
"देखो मेरे पौधे भी मेरी तरह मुर्झा गए हैं।"
उनकी बात सुनकर सरला ने कहा।
"दीदी ऐसा क्यों कहती हो। डॉक्टर ने कहा है ना कि तुमने ही जीने की कोशिश छोड़ दी है। वरना तुम्हें कोई बीमारी नहीं है।"
उनकी बात सुनकर रॉबिन ने सलूजा आंटी से पूँछा।
"ऐसा क्यों है आंटी ? आपने तो मुझे जीना सिखाया। अब आपने क्यों जीना छोड़ दिया।"
"किसके लिए जिऊँ ? तुम्हारे अंकल तो बहुत पहले चले गए थे। एक बेटी थी। भगवान ने उसे भी अपने पास बुला लिया।"
रॉबिन को सुनकर धक्का लगा। आंटी की बेटी अनन्या भी हर साल उसके जन्मदिन पर उनके साथ आती थी।
सरला ने कहा।
"अनन्या के जाने के बाद से दीदी टूट गईं। अब बस गुमसुम सी रहती हैं।"
रॉबिन को बहुत बुरा लगा। जिनके कारण उसकी ज़िंदगी में खुशियां थीं, आज वही दुखी थीं। वह जानता था कि वह उनके लिए अधिक कुछ नहीं कर सकता। पर उसने तय कर लिया कि आज पूरा दिन वह सलूजा आंटी के साथ बिताएगा। उन्हें खुश रखने की कोशिश करेगा।
उसने सलूजा आंटी से कहा।
"आंटी आज पूरे दिन हम सिर्फ खुश रहेंगे। पहले मैं आपके लिए लंच बनाऊँगा। फिर हम तीनों लोग घूमने जाएंगे।"
रॉबिन एप्रेन पहन कर किचन में लंच बना रहा था। सरला उसकी मदद कर रही थीं। सलूजा आंटी बड़े उत्साह से उन्हें निर्देश दे रही थीं कि मसाला कैसे तैयार करना है। किस चीज़ को कितनी आंच पर कितना पकाना है।
तीनों ने मिलकर हंसी खुशी लंच किया। जब सरला और रॉबिन टेबल साफ कर रहे थे तो सरला ने कहा।
"शुक्रिया रॉबिन.... तुम आए तो आज बहुत दिनों के बाद दीदी इतनी खुश नज़र आ रही हैं।"
रॉबिन ने नैपकिन से हाथ पोंछते हुए कहा।
"उन्होंने मुझे जो दिया है उसके आगे तो ये कुछ भी नहीं है।"
लंच के बाद रॉबिन ने टैक्सी मंगाई और तीनों बाहर घूमने गए। रॉबिन ने सलूजा आंटी और उनकी बहन के लिए कई तोहफे खरीदे।
जब तीनों लौट कर आए तो रॉबिन के जाने का समय हो गया था। चलते समय सलूजा आंटी ने उसे एक कंगन देते हुए कहा।
"यह अनन्या के लिए था। पर अब मेरी दूसरी बेटी जेसिका को दे देना।"
"दे दूँगा आंटी। पर आपको वादा करना होगा। अगले साल जब मैं जेसिका को लेकर आऊँगा तो आप दरवाज़े पर उसका स्वागत करेंगी।"
"तुमने मुझे जीने की वजह दे दी है। मैं आरती उतार कर बहू की तरह उसका स्वागत करूँगी।"
रॉबिन चला गया। सलूजा आंटी उसी पल से उसके लौट कर आने की राह देखने लगीं।