खोखले रिश्ते
खोखले रिश्ते
बेटी नीरू कल रात विदा हो अपनी ससुराल चली गई, घर से सब मेहमानों को विदा कर रागिनी थक कर बालकनी में आकर बैठ गई।यह उसकी सबसे प्रिय जगह है, रंगबिरंगे फूलों से सजी बालकनी में चाय पीकर उसकी थकान भी उतर गई। बेटा आयुष पास आकर बैठ गया - माँ तुमने दीदी से बात कर ली थी क्या, उस बारे में।
"हाँ बेटा मैंने दामाद राज से भी बात कर ली थी और मैंने निर्णय भी ले लिया है, क्या करना है अब मुझे।"
बेटे ने कहा "माँ मैं तुम्हारे हर निर्णय में साथ ही खड़ा हूँ।"
बेटे के जाने के बाद रागिनी अपनी जिंदगी के बारे में सोचने लगी ---क्या हो गया है आयुष के पापा को पिछले पाँच वर्षों से वह सब कुछ जान कर भी अनजान बनी रही, रोहित (उसका पति) का अपने ऑफिस की सहकर्मी किसी रीना नाम की लड़की से अफेयर चल रहा था, ऑफिस के काम के बहाने से वह उसके साथ गुलछर्रे उड़ा रहा था, अक्सर शहर से बाहर रहने लगा, घर भी कई कई दिन नहीं आता, कई बार रागिनी ने समझाने की कोशिश की, जवान बच्चों का वास्ता दिया, पर सब बेकार रागिनी ने अपने बच्चों को भी बता दिया कि अब इस रिश्ते से मुक्त हो जाने में ही सबकी भलाई है।
रागिनी मैं काम से बाहर जा रहा हूँ - रोहित की आवाज से रागिनी उठ खड़ी हुई।
"रोहित आज मेरा एक फैसला सुन कर जाओ "उसके इतना कहते ही रोहित --तुम घर छोड़ कर जाना चाहती हो तो जा सकती हो, मुझे अब समझाने की कोशिश भी ना करना।"
रागिनी -"घर मैं नहीं, तुम छोड़ कर जाओगे, तुम्हारे साथ खोखले रिश्तों को निभाना अब मेरे लिए मुमकिन नहीं, रही बात घर की तो ये घर मेरे पिता ने मुझे दिया था इसीलिए अब तुम अपना सामान लेकर यहाँ से जा सकते हो, मैं अपने बच्चों के साथ खुश रह लूंगी,और ये हमारा फैसला है कि तुम अब हमारे साथ नहीं रह सकते"।
रोहित किंकर्तव्यविमूढ़ रह गया और रागिनी खोखले रिश्तों के भार से मुक्त हो खुद को हल्का महसूस कर रही थी।