नाविदित लेखिका
नाविदित लेखिका
''अरे वाह आप तो बहुत अच्छा लिखती हैं।" एक प्रकाशक ने चाटुकार भरे अंदाज में कहा।
"शुक्रिया सर।" नवोदित लेखिका ने कहा। आज हौसलाअफजाई हुई तो बहुत अच्छा लगा।
"कौन कौन सी पत्रिकाओं में छपी हैं तुम्हारी गज़ल और कवितायें?"
"अभी तो कहीं नहीं सर बस कोशिश कर रही हूँ।नवोदित लेखिका ने उत्साह को थोड़ा संयत करते हुए कहा। दिल तो बल्लियों उछल रहा था। मन में सोचा कि अब घरवालों को दिखाऊँगी कि देखो मेरा लेखन कितना उम्दा है?
"अरे मैं एक मैगजीन के चीफ एडिटर को जानता हूँ अगर आप कहें तो बात करूँ?"
"जी सर बहुत शुक्रिया आपका।"
"बुरा न मानो तो एक बात कहूँ?"
"जी सर।"
"तुम देखने में बहुत खूबसूरत हो।" नवोदित लेखिका झेंप गयी।
"अरे बुरा न मानियेगा... अपनी एक खूबसूरत सी तस्वीर इस नंबर पर पोस्ट कर दीजिये।"
"जी सर।"
"तस्वीर ऐसी दीजियेगा कि बस आग लगा दे और सभी तस्वीरें फीकी पड़ जायें...!"
"सर कौन-सी रचना सेंड करूँ?"
"अरे कोई सी भी भेज दीजियेगा बस तस्वीर तुम्हारी अच्छी होनी चाहिए।" उसने लापरवाही से कहा।
"सर फिर भी देख लीजिये...!"
"अरे नहीं कोई भी चलेगी बस तस्वीर...
"जी।" और कथित प्रकाशक ऑफ़लाइन हो गया। नवोदित लेखिका की समझ में ही नहीं आ रहा था कि उसकी रचना जिसे वह आत्मा से लिखती है ज्यादा अच्छी है या उसकी तस्वीर जो क्षण भंगुर है।