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कश्मकश [ भाग 1 ]

कश्मकश [ भाग 1 ]

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रिया को घर पँहुचने की जल्दी थी। रात के ग्यारह बज चुके थे जब वह रेलवे स्टेशन पँहुची। वह बी.ए की छात्रा थी। कल सुबह उसके काॅलेज मे नृत्य प्रतियोगिता थी जिसमे वह भी भाग ले रही थी। किन्तु इस समय वह सिर्फ घर पँहुचने के सिवा और कुछ नहीं सोच पा रही थी। रात के सन्नाटे मे उस सुनसान स्टेशन पर उसे डर लग रहा था। वह चौथे प्लेटफाम की ओर बढ़ रही थी। अचानक दो मज़बूत हाथों ने उसे पीछे से दबोचा। उसने चीखने की कोशिश की किन्तु एक हाथ ने रूमाल से उसका मुँह और नाक कस कर दबा दिया। रिया ने अपने आप को छुड़ाने की जी तोड़ कोशिश की पर वे हाथ जिनमें वह जकड़ी हुई थी, अठारह साल की रिया से कहीं ज़्यादा ताकतवर थे। कुछ क्षणों में ही रिया को चक्कर आने लगा। स्टेशन की बत्तियाँ उसे धुन्धली दिखाई देने लगी। शायद उस रूमाल मे कोई नशीला पदार्थ था जिसके कारण रिया धीरे - धीरे बेहोश होती जा रही थी। उन बाँहो ने उसे कसकर पकड़ा न होता तो वह गिर पड़ती। ये देखकर कि अब रिया बेहोश हो चुकी है, उस दरिन्दे ने रिया को उठाकर अपने कन्धे पर डाल दिया। पर रिया पूरी तरह से अभी बेहोश नहीं हुई थी। नशे की हालत में होने की वजह से रिया उसका चेहरा ठीक से तो देख नहीं पाई पर उसे मालूम हो रहा था कि वो रिया को उठा कर स्टेशन के बाहर ले जा रहा था। उसने वहाँ खड़ी एक कार का दरवाज़ा खोला और रिया को पीछे की सीट पर लिटा दिया। वह धीरे से रिया की ओर बढ़ा। रिया अपने आप को उस दरिन्दे का शिकार बनने से बचाना चाहती थी पर नशे ने उसे इतना बेसुध कर दिया था कि वह हिल भी नहीं पा रही थी। उसने अपने सख्त हाथों से रिया के गाल थपथपाए। शायद वह तसल्ली करना चाहता था कि रिया पूरी तरह से बेहोश है। हालांकि वह पूरी तरह से बेहोश तो नहीं थी पर वह नशीला पदार्थ धीरे - धीरे उसे अपने आग़ोश मे ज़रूर ले रहा था। रिया की ओर से कोई प्रतिक्रिया न पाकर वह उठा और अपने मोबाइल से किसी को फोन करने लगा।

"मिस्टर सेहगल, अपनी बेटी की सलामती चाहते हो तो मेरे अगले कॉल का इन्तज़ार करो।"

सुन कर रिया चकित हो गयी। उसके पिता का नाम तो रामचरण गुप्ता है। उस किडनेपर ने फिर किसी को कॉल किया और कहा,

"बाॅस, लड़की मेरे पास है। हाँ बाॅस, ठीक तरह से देख लिया है। लड़की को उठाने से पहले उसे क्लोरोफोम सुँघा कर बेहोश कर दिया है। अब उसे काफ़ी देर तक होश नहीं आएगा। आप डरो मत बाॅस, अब होश आ भी गया तो क्या ? बच्ची ही तो है ! कहाँ हम पहलवानो के चँगुल से अपने आप को छुड़ा पाएगी। एक डोज़ और दे देंगे, और क्या !"

पल - पल ख़ुद पर हावी होती बेहोशी से जूझती हुई रिया ये सब सुन रही थी। इससे पहले कि वह वापस आता रिया ने धीरे से कार का दरवाज़ा खोला। बाहर घना जंगल था। वह किसी तरह जंगल की ओर भागी। कुछ दूर ही गई होगी कि तभी किसी ने उसे पीछे से पकड़ा और ज़मीन पर लिटा दिया। ये वही जल्लाद था। उसने अपने कोट की पाॅकेट से सुई निकाली और पेन्ट की पाॅकेट से किसी दवा कि शीशी निकाली। उसने सुई में दवा भरी और रिया की बाँह को कसकर पकड़ लिया। रिया ने पूरा ज़ोर लगाकर अपनी बाँह छुड़ाने की कोशिश की पर उस दानव की ताकत के आगे वह कमसिन लड़की बेबस थी। उसने रिया की बाँह को ज़मीन पर कसकर दबाया और उसे इन्जेक्शन दे दिया। पीड़ा के मारे रिया चीख उठी और उस दर्दनाक चीख से पूरा जंगल गूँज उठा। कुछ क्षणों में ही उस पर एक अजब - सी ख़ुमारी छा गई जिसने दर्द ही नहीं बल्कि हर एहसास को मिटा दिया।

"अब तुम्हें घण्टों तक होश नहीं आएगा, बेबी।"

वह सुई को जंगल में फेंकते हुए बोला,

"चुपचाप सो जाओ। यही तुम्हारे लिए अच्छा है, वरना तुम्हें बस में करने के और भी तरीके हैं।"

उस दिन पूरे चाँद की रात थी। यौवन की चाँदनी में नहायी रिया भी अप्सराओं - सी सुन्दर थी। वह कुछ देर रिया के अपार सौन्दर्य को टकटकी बाँधे देखता रहा। फ़िर उसने ज़मीन पर बेबस पड़ी रिया को उठाया और कन्धे पर डालकर कार की ओर चल पड़ा। धीरे - धीरे बाहर का अँधेरा रिया की सुध - बुध पर छाने लगा। वह जाल मे फँसी मछली की तरह विवश थी परन्तु वह तो उनकी तरह छटपटा भी नहीं सकती थी। पिछली सीट पर गहरी बेहोशी में पड़ी रिया को लेकर वह कार तेज़ी से सुनसान सड़क पर दौड़ने लगी। 


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