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Saumya Jyotsna

Inspirational

0.8  

Saumya Jyotsna

Inspirational

एक उपाय कन्यादान.. दान

एक उपाय कन्यादान.. दान

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शादी के मंत्र पूरे वातावरण में गुंजायमान थे| मैं वहीँ कोने में बैठी अपनी सहेली की शादी देख रही थी| मनभावन मंडप, मानों कोई सुंदर बाग हो| मेरी आँखें खुली थीं| शरीर भी प्रत्यक्ष रूप से वहीँ था पर मेरे दिमाग में पुरानी बातें कौंध रही थी|

बात कुछ पांच साल पहले की है| हमारे घर में बहुत परेशानियाँ थी| पापा का एक्सीडेंट हो गया| भाई की तबीयत बिगड़ गई| माँ भी भीतर से बहुत कमज़ोर हो गई| मैंने और मेरी छोटी बाहन ने हीं सबकुछ संभाला| मनोदशा तो हमारी भी ख़राब थी,पर अगर सभी की हालत एक जैसी हो जाती तब घर चलना बहुत मुश्किल हो जाता| सो,हमने हिम्मत कर के सब कुछ संभाला| बाकि नाते-रिश्तेदार आते, और अपनी बातों से और डराकर चले जाते| हमारा परिवार सदैव “कर्म करो फल की इच्छा मत करो” वाले सिद्धांत पर चलने वाला था| गीता का सार हमारे परिवार का सिद्धांत रहा है| पर कहते हैं न जब मुश्किलों का पहाड़ टूटता है तब इंसान हर एक ज़ोर आजमाईश, उपाय सब करने को तैयार हो जाता है| हमारे एक रिश्तेदार आए थे, जिन्होंने मेरी माँ को कहा,”लगता है शनि-मंगल का प्रकोप है| हो सकता है राहु –केतू की भी युति हो| बहुत भयानक समय लग रहा, ऐसा न हो कि किसी को अपने साथ हीं ले जाए”| माँ इन बातों को सुनकर सुन्न हो गई| मानों स्वयं ग्रहों का प्रकोप चलकर हमारे पास आया हो| माँ ने पंडित जी को बुलाकर सबकी कुंडली दिखाई| पंडित जी ने न जाने कौन-कौन से रत्न, जड़ें, जौ-दान, छाया-दान इत्यादि बताए| इतने दान करने के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ| दवाई और डॉक्टर के फ़ीस पर तो रूपए खर्च हुए हीं, ये पंडित जी ने भी खूब कमाई की मानों शनि-मंगल आदि ग्रह किसी को नुकसान देकर दूसरे का फ़ायदा करा रहें हो| जैसी उनकी कोई मिली - भगत हो| जब स्थिति में कोई भी बदलाव नहीं हुआ तब उनका ( पंडित जी) अंतिम उपाय था ” कन्यादान” अर्थात मेरी शादी| शादी में लाखों रूपए खर्च होते हैं और वैसे भी मैं कोई “वस्तु” तो थी नहीं जो सभी दान के साथ मेरा भी दान हो जाए| मुझे तो शादी भी नहीं करनी थी| दान तो निर्जीव वस्तुओं के होते हैं| ये कन्यादान क्या होता है...... दान.... | हमने माँ को बहुत समझाया कि इन सब चीजों से दूरी ही भली है| ये न जाने और कौन-कौन से उपाय,दान और टोटके बता दें|

        आखिरकार हमारी परीक्षा की घड़ी खत्म हुई| पापा के सेहत भी अब सुधरने लगी और भाई की भी| पुन: घर में खुशियाँ आने लगीं| सब कुछ ठीक हो गया, पर तबसे मुझे “कन्यादान” शब्द से चिढ़ हो गई| लड़कियां भी इंसान होतीं हैं, कोई वस्तु नहीं जिनका दान हो| पुरानी परंपराऐ और कुछ पुराने शब्द भी अब हमें बदलने होंगे| तबसे मैं सभी को इस शब्द को बदलने के लिए प्रेरित कर रही हूँ|

        पंडित जी,” “कन्यादान” नहीं स्वेच्छा से जाना स्वीकार करतीं हैं”| ये बोलिए | तभी मेरे कान में मेरी सहेली की आवाज़ आई और मैं यादों से बाहर, और मेरे चेहरे पर थी, एक संतोषप्रद मुस्कान|


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