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नई नानी

नई नानी

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आज बहुत दिन हो चुका है, मैने नानी से भेंट नहीं किया। चूँकि कुछ काम से नानी-गांव के पास आना हुआ, तो नानी की यादें मुझे उनकी तरफ खींचने लगी। मुश्किल से 7-8 किलोमीटर का रास्ता होगा, इसलिए बिना देरी किये टूटी-फूटी रास्तों से झूला-झूलते हुए चल पड़ा। सड़कों पर कहीं गड्ढा, कहीं पानी का जमाव, तो कहीं सड़क ही गायब थी। भला हो इस मोटरसाइकिल का जिसने मुझे घर तक पहुँचने में सड़कों से विजय दिलाई।

नानी-गांव में सबसे अनमोल चीज है कुछ, तो वो है- नानी। अब मैं घर तक पहुँच चुका था, मेरी नजरें नानी को तलाशने लगी थी। दूर से आती हुई एक महिला दिखी। उनके सिर पर घास का बोझा था, चेहरा घास से ढका हुआ था। फिर मेरी नजर उनकी साड़ी पर हाथ से बने तारा के बड़ी-सी डिजाइन पर पड़ा।

“नानी”,मेरे मुँह से आवाज़ निकल पड़ी। मैं दौड़ कर नानी के पास पहुँचकर उनके चरण स्पर्श किया और उनके सिर से बोझा उतारकर अपने सिर ले लिया।

“सदा खुश रहो”, नानी मुस्कुराते हुए आशीर्वाद दी लेकिन अगले पल ही बोल पड़ी, “आ गयी तुझे नानी की याद। और तेरा फ़ोन क्यों नहीं लग रहा है?”

नानी की प्यारी डाँट सुनकर मैंने बोला, “मैंने अपना सिम-कार्ड बदल लिया।“

“हर महीने, तू नम्बर क्यों बदल लेता है।“

“छः महीने बाद तो बदला हुँ, नानी।“

“चपेट खायेगा तू, अभी तीन महीने पहले भी बदला है।“

“अच्छा नानी, एक बात बताओ, आप सिर पर घास लेकर देख कैसे लेती हो? ढके हुए चेहरे से मुझे तो कुछ दिखाई नहीं दे रहा है।“

हमलोग बात करते हुए आंगन तक पहुँच गए। सबसे पहले मैंने भड़ी-भड़कम घास नीचे रखा। वहां मामी सब्जी छिल रही थी, और एक चचेरी नानी बैठी हुई थी, जिनका आंख सूजा हुआ था। मैंने दोनों के पैर छुए।

“राजू, जाओ, नई नानी जो आयी है उनके भी पैर छू आओ।“, सब्जी बगल में रखती हुई मामी बोली।

“नई नानी?”, आश्चर्यचकित होकर मैंने मामी से पूछा।

“चाचा जी को बेटा नहीं हो रहा था इनसे। बेटे के लिए नई चाची लाएं हैं।“, मामी ने प्रतिउत्तर दिया।

“बेटे के लिए। हद होती है अंधविश्वास की भी…”, मैंने झल्लाकर बोला।

“चलो नाना और नई नानी से भी मिल लेना।“, मेरा हाथ पकड़ते हुए नानी बोली।

मेरे चचेरे नाना का घर बगल में ही था बस एक दीवाल थी बीच में, इसलिए घूम कर जाना पड़ा। नाना जी कुर्सी पर बैठकर चाय पी रहे थे। नानी और मुझे देखकर उठ खड़े हुए और मुस्कान बिखेरते हुए थोड़ा आगे तक आये।

“आओ भाभी, सही समय पर आयी हो। अभी ही चाय बना है।“, नानी को नाना जी ने कहा।

उनकी हाथों की मेहंदी अभी भी पूरी तरह से लाल थी और नेल-पॉलिश की तो बात ही क्या!

“नाना जी आप तो बिल्कुल चमक रहें हैं।“, मैंने नाना जी की शारीरिक स्थिति बताई।

“अरे, राजू। बैठो कुर्सी पर। तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है?”, मेरी ओर देखते हुए उन्होंने कहा।

हम तीनों वहाँ रखी कुर्सी पर बैठ गए।

“सुमिता दो चाय लाना।“, नाना जी ने अपने बेटी को आवाज़ लगायी।

“आपलोगों की आशीर्वाद से ठीक-ठाक चल रही है पढ़ाई।“, मैंने नाना जी को उत्तर दिया।

“और बताओ, बाकी सब कैसा चल रहा है?”,

“ बाकी सब तो ठीक है। आप बताइए?”

“मेरा तो पता ही होगा तुमको।“

“हाँ, अभी-अभी पता चला। आपलोग इस उम्र में शादी करने लगे, तो हम बच्चे तो कुँवारे ही रह जाएंगे, नाना जी!”

“क्या बताऊँ राजू, तुमको तो पता ही होगा मैंने कोई शौक़ से शादी नहीं किया। वो तो सब लोग बोलने लगे कि दूसरी शादी कर लो, तभी तुमको बेटा होगा। वंश आगे बढ़ता रहे, इसलिए मुझे करना पड़ा।“

“हमारे समाज में कुछ भी होता है, तो औरत ही जिम्मेवार होती है। बेटा के लिए…आपको पता है नाना जी, किसी औरत को बेटा होता है या बेटी, इसकी जिम्मेवारी उसके पति की होती है नाकि पत्नी की। अगर आपको बेटा होना होगा, तो एक औरत से ही हो जाएगा वरना पचास से भी नहीं होगा।“

“अच्छा…ये बात तो मुझे पता भी नहीं था।“

“तो अब बताइए कि बेटा के लिए आप दोनों में से दूसरी शादी किन्हें करनी चाहिए, आपको या नानी को?”


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