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अलाव की आग

अलाव की आग

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दिसम्बर की कंपकपा देने वाली सर्दी,चारो तरफ सन्नाटा,सभी लोग अपने अपने घरो में रजाई ,लिहाफ़ में दुबके ,पर गीता और गन्नू इतनी ठंड मे आग तापते बैठे है।गन्नू बहुत खुश है आज।सुबह जब वो काम पर निकला ,नहीं जानता था की लक्ष्मी देवी की उस पर इस तरह कृपा हो जायेगी।जिस सेठ के यहाँ वो काम करता था।वे अपनी हवेली के पीछे का हिस्सा मजदूरो से साफ करवा रहे थे।गन्नू भी काम पर लगा था।हवेली के पिछले हिस्से मे पूरा कबाड़ था।टुटे लोहा लंगड़,दीमक चाटी तखत,पलंग की लकड़िया,रिसाले,और भी जाने क्या क्या।सुबह से रात हो गई।सबसे आखिर मे एक बोरा बचा था।अंदर क्या भरा था किसी को नहीं मालूम।और मजदूर मजदूरी लेकर जा चुके थे।बस गन्नू और सेठ ही वहाँ पर थे।गन्नू बोला--सेठ जी बोरा खोले?सेठ बहुत थक गया था।बोला--अरे कबाड़ा ही होगा।मत खोल,और फैलारा फैल जाएगा ।बाहर निकाल दे इसे।इसे भी कल कचरे की गाड़ी मे और सामान के साथ रखवा देँगे।गन्नू को जाने क्या सुझी बोला-न हो सेठ जी ये बोरा हमे दे दो।बोरा मजबूत है।हमारे बिछावन के काम आ जाएगा,,और अंदर का कचरा जला कर आग ताप लेंगे"।

सेठ हँस पड़ा दरियादिली दिखाते हुए बोला--ले जा, तू भी क्या याद करेगा।

गन्नू बोरा ले आया।गन्नू और उसकी बड़ी बहिन गीता ने बोरे का सामान निकाला ।कुछ कागज,पुराने फटे कपड़े,चिन्दीया,छोटे छोटे लोहे के टूकड़े,ताला चाभी के गुच्छे,पुरानी गद्दे की रुई।दोनो भाई बहिन कौतुहल से निकाल निकाल कर देख रहे थे।गीता बोली-बोरा अच्छा है इस पर कथरी डाल तू सोना तुझे ठंड नही लगेगी।तेरे को सर्दी जल्दी पकड़ती है न।कुछ सामान रद्दी मे बेच देंगे।थोड़े पैसे मिल जाएंगे।बाकी जला कर हाथ तापेंगे ।दो दिन तो ठंड से बचे रहेंगे।"गन्नू को बहिन के चेहरे पर खुशी देख अच्छा लगा।भले ही वो खुशी दो दिन की ही क्यो न हो।थोड़े कचरे को उठा उसने जलती लकड़ियों पर डाला,आग तेजी से जलने लगी,।भाई बहिन आग के पास की गरमी लेने बैठ गए।आग की आंच उन्हे बहुत सुकून दे रही थी।आज लक्ष्मी जी की कृपा हो गई ,डनलप के गद्दे को मात देता बोरा,कबाड़ बेचने से मिलने वाली थोड़ी सी रकम की बहुत सी खुशी और कचरे से मिल जायेगी दो दिन की गर्माहट।इतनी खुशी कम है क्या।

अलाव की आंच मे लाल गुलाबी होते दोनो के चेहरे जीवन से तृप्त दिख रहे थे।इससे ज्यादा और क्या चाहिये।कुबेर अलाव की आग मे जल रहा था।।



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