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Sajida Akram

Children Stories Inspirational

4.4  

Sajida Akram

Children Stories Inspirational

माटी का मोल

माटी का मोल

2 mins
467


"लीजो संभाल हम अपने संस्कार अपने बच्चों में डालते हैं,

आज अर्थ डे मनाते हैं, खूब शोर शराबा होता है सोशल मीडिया पर ...।"

हमने १५ साल पहले घर ख़रीदा, मैंने अपने डुपलेक्स में छोटे-से बगीचे को तैयार कियाl हमारे पड़ोस में एक भोपाली मियाँ रहते हैं हालांकि हम भी मुस्लिम हैं मगर भोपाल वालों जैसे नहींl हम गाँव के रहने वाले हैं उन लोगों की नज़र में।

उनके यहाँ बगीचे का एरिया बहुत ज्यादा था। कुछ दिन तो हमारी देखा-देखी पेड़-पौधे लगाए पर दोनों जॉब करते थेl उनको प्रकृति से कोई लगाव नहीं थाl अक्सर कहते थे हमें ये झाड़-झंकाड़ पसंद नहीं है। एक दिन उन लोगों ने अपने बगीचे के एरिये के सारे पेड़-पौधों को मज़दूरों से बेरहमी से उखाड़ फैंका और कंस्ट्रक्शन का काम चालू करवा दियाl एक इंच भी जमीन कच्ची नहीं छोड़ी, पूरे घर को चारों तरफ से पैक करवा लियाl उनका कहना था हमारे हर कमरे में ए.सी. रहेंगे। उनका बंगला क्या अंधेरा घुप हो गया। हम दोनों हसबेंड वाईफ को बहुत तकलीफ हुईl ये लोग क्या जाने "माटी का मोल"l हमारे पूरे बगीचे में दो फ्लोर तक बेलें चढ़ी हैं। ४३ डिग्री टैम्प्रेचर में भी कोई बाहर से आ कर बैठता है तो ठंडक महसूस करके बहुत ख़ुश होता हैl बाहर की गर्मी से बेलों की वजह से कितना ठंडा है। आज मेरी नातिन आती हैं तो बस हमें तो नाना-नानी का बगीचा ही पसंद हैl घंटों झूले पर बैठती हैं पौधों में पानी देती हैं।

हमें भी अपनी आने वाली पीढ़ी को प्रकृति को सहेजने की सीख देना चाहिए ...नहीं तो बहुत देर हो जाएगी।

जैसे हम अपने संस्कार देते हैं ऐसे ही प्रकृति को संवारने के लिए नई पीढ़ी को तैयार करना पड़ेगाl आज हर शहरों में कांक्रीट का जंगल खड़ा हो रहा है।


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