केमिकल मेहन्दी
केमिकल मेहन्दी
पिस कर रह गई थी मेहन्दी की तरह उसके रंगों का मजा कोई और ही ले रहा था "पर ये क्या ? इतना छल कपट कि मेरा कोई मोल ही नहीं, कभी ये घर मेरी सौंधी-सी महक से ही महकता था आज उस घर में ही मेरी ये हालत !" स्थितियों ने उसे विरोधी बना दिया विरोधाभास कब और कैसे शुरू हुआ और कब खत्म होगा, नहीं जानती थी।
नई बहू के कदमों में उसे फिर अपनी चाल दिखी पर उसे ये अहसास भी हुआ मेहन्दी-सी पिसकर भी ये अपनों पर रंग न चढ़ा पायेगी क्योंकि उसके घर में पढे़ लिखों की नहीं, कूटनीति शास्त्र ज्ञानियों की फौज ने डेरा जो जमा रखा था।
"मेरी बहू के जिन्दगी की मेहनत की मेहन्दी रंग लाये, काश इसे भी कोई कूटनीति शास्त्र पढ़ा दे एक और नारी की जीवित चिता मैं न देख पाऊँगी काश सब गुण नई केमिकल मेहन्दी से दे पाती इसे।" सास एक निर्णय ले चुकी थी "इस काश को बदलना है अब बस, मेरी बेटी अपना जीवन मेरी तरह न जियेगी उसके रंग कैमिकल मेहन्दी की तरह रंगीन मैं खुद करुँगी।"