आखरी दिन
आखरी दिन
थकान भरा दिन खत्म होने की कगार पर था। दिमाग पककर एकदम गाजर पाक हो चला था। कॉलेज से निकलने की तैयारी चल रही थी और इंतजार था कब बड़ी सुई 12 पर आये और कब मैं भाग। तभी मेरा दोस्त आया जिसके साथ एक कन्या भी थी।
दिखने मैं एकदम गुमसुम सी। दोस्त ने इंट्रोडक्शन कराते हुए बताया- ये "नेहा" महाराजा अग्रसेन कॉलेज से है। अगले तीन दिन तक इनका जोइंट सेमिनार है। अपने कॉलेज में तो अगले तीन दिन इनसे कोरडीनेट करना है मुझे।
अब अपना तो दिमाग वैसे ही डिप्रेसन मोड में था।
"बढ़िया है भाई कर कोरडीनेट तू भी क्या याद रखेगा।"
ये कहते हुए मैंने नेहा को हलके लिहाज से "हाय" कहा और निकल लिया। मालूम था वो थोड़ा सा बेरुखी का व्यवहार था। मैं अगले दिन कॉलेज पहुँचा तो भाई हमारे कॉलेज में एक गली हुआ करती
गली मतलब लोबी अरे वो यार जिसपे फिसलने वाली टाईल्स लगी होती है। तो में उधर से जा रहा था तभी सामने देखा तो नेहा भी आ रही थी। पता तो था आमने-सामने है फिर भी वो जमीन देखते हुए निकल गयी और मैं पेड़ देखते हुए निकल लिया। फिर एक दो बार ऐसे ही आमना-सामना हुए और इस तरह दो दिन खत्म हो गए।
तो भाई अब शाम को घर बैठा मैं कुछ नहीं कर रहा था तो एकदम से सोच आ गयी। जैसा हमें पता ही है कि कई बार इस तरह के माहौल में चुल्ल सी हो ही जाती है। अब दिमाग और मन के बीच में लड़ाई शुरू हो गयी
मन- क्या बात बहुत रेट बढ़ गए तेरे।
दिमाग- क्या बात बा ?
मन- अरे " हेल्लो - हाय " तो कर लिया कर।
दिमाग- अरे छोड़ यार, क्या रखा है इन चीजों में..?
मन- रखा तो क्या है जान-पहचान हो जायेगी।
दिमाग- अरे छोड़ यार, क्या रखा है इन चीजों में..?
मन- अरे फेसबुक पे रिक्वेस्ट भेज दियो " साले एक आधी लड़की भी होनी चाहिए फ्रेंड लिस्ट में।"
दिमाग- अरे छोड़ यार, क्या रखा है इन चीजों में..?
मन- साले अभी उम्र है दोस्त बनाने की, कर लियो बात।
दिमाग- अरे छोड़ यार, क्या रखा है इन चीजों में..?
मन- भाई एक आधी लड़की दोस्त हो तो मन लगा रहता है।" तेरी खोपड़ी में ये बात घुसती क्यों नहीं।"
दिमाग- अरे छोड यार, क्या रखा है इन चीजों में..?
मन- साले कभी किसी लड़की से बात भी करेगा या ऐसे ही लंडर लोगों में ही बकवास करता हुआ मरेगा।
दिमाग- अरे छोड़ यार, क्या रखा है इन चीजों में..?
मन- मैं साले बात करने की कह रहा हूँ, शादी करने की नहीं।
दिमाग- अरे छोड़ यार, क्या रखा है इन चीजों में..?
मन- भाई कल लास्ट दिन है। उसका जो तेरी न फटती हो तो कर लियो बात, वरना फट्टू तो तू है ही।
दिमाग- अच्छा ..? चल ठीक है ऐसी बात है तो कल करता हूँ बात।" ऐसे कैसे फट्टू कह दिया तुने।"
मन- ये हुई बात।
दिमाग- अब कल देख तेरा भाई क्या करता है।
तो अगले दिन अब मैं नहा-धो के सेंट-वेंट मार के पहुँचा कॉलेज। कहाँ है नेहा, अभी बात करते हैं।
भाई काफी देर तक ढूँढता रहा। आज तो बात होके ही रहेगी। चाहे कुछ हो जाये।
तभी सामने से नेहा आ गयी।
दिमाग- बात कर...।
नेहा और पास आ गयी।
दिमाग- अरे बात कर भाई...
नेहा बराबर आ गयी।
दिमाग- अरे छोड़ यार, क्या रखा है इन चीजों में..?
और चली गयी...
दिमाग- अरे मैं बात करने ही वाला था यार पर....
मन- तू बोल मत...
फिर दिल और दिमाग ने कई दिनों तक बात नहीं की...