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Tulsi Tiwari

Others

2.5  

Tulsi Tiwari

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मेरी उड़ान

मेरी उड़ान

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270


थोड़ी ही देर में लंगड़ू डाक्टर छाता ओढ़े पहुँच गये। बगल में दवा का झोला भी था। उन्होंने घाव धोकर साफ धोती का टुकड़ा कस कर बांध दिया। दर्द की एक गोली दे दी और परमेसर को बाप के लिए हल्दी गुड़ के साथ एक गिलास दूध देने की हिदायत देकर चले गये। ना उन्होंने कुछ मांगा न इन्होंने कुछ दिया।

दूसरे दिन शंभु को थोड़ा अराम लगा था । पानी गिरना भी बंद हो गया था रोटी खाकर वह दालान में लेटा यही सोच रहा था कि जानवरों से कैसे छुट्टी मिले कि बिसना हरिजन नहीं-नहीं तो पचास जानवरों के झुंड को दौड़ाते हुए पसीने से लथपथ रास्ते से गुजरा ।

’’ आरे का होइ गवा हो बिसन! ऐ एतना गोरू कहाँ से आय गयें।’’ वह काँखते कराहते पूछ बैठा। बिना पूछे जी कैसे मानता उसका।

’’ आरे! चा .... सम्मै बजरी चरि लिहिन सारे ऽ..... तुम्हरौ गई जौन बची रही दुइ चार थान।’’ वह आगे दौड़ गया। शंभु माथा पकड़ कर बैठ गया।

’’अब का खइहें गोरू हे भगवान?’’

पहले जब गोरक्षा कानून नहीं बना था तब तो वह भी सरकार की लानत- मलानत करता था। एक बार जब मोहर्रम पर चोरी’ चोरी गाय मारी गई थी तब हत्यारों को मारने वाली भीड़ में वह भी शामिल था। तब तो बीमार बूढ़े या बाँझ पशुओं को नेटुआ लोग ले जाते थे। किसान क्या जाने क्यों खरीदते हैं ये लोग ऐसे पशुओं को? वह तो समझदार होने पर पता लगा कि मांस के लिए इन्हें कसाई के हाथ बेच देते हैं नेटुए ।

उसने भी अपनी दादी को देखा था पड़वों को बेचते हुए लेकिन बैल तो खेती के काम आते थे और गाय तैतीस करोड़ देवताओं से बड़ी देवी थी इसलिए इनकी ऐसी दुर्गति नहीं देखी। खेती का मशीनीकरण क्या हुआ सब कुछ उल्टा -पुल्टा हो गया। मौसम के साथ न चलो तो खेत बोये कैसे जायेगे ? फिर साल भर में थोड़े दिन ही तो जोताई मड़ाई होती है उतने के लिए बैलों को साल भर बांध कर खिलाना बहुत घाटे का सौदा है। पहले जब हाथों से कटाई होती थी तब कई बार काट कर खेतों में रखी फसल भी कभी बानी बरस जाने से तो कभी आँधी झक्कड़ से बेहाथ हो जाया करती थी। अब हारवेस्टर मशीन से हफ्तों का काम घंटों में हो जाता है किंतु पैरा भूषा खेत में ही फैलता जाता है जिसे समेटना खरीदने से महंगा पड़ जाता हैं अब किस बूते कोई दरवाज़े पर गाय बांधे? बच्चे सारे पढ़ने जाने लगे, बहुएं पढ़ी-लिखी आने लगी, उन्हें तो घास छिलने से डरा कर स्कूल भेजा जाता था अब क्यों घास छिलें? पहले की औरतें चैका-बासन करके, कलेवा बना कर खाँची खुरपी लेकर चली जाती थीं सरेह में। मेंड़ों की दीवारों पर यदि एक अंगूल की भी घास नजर आ जाती वे अपनी धारदार खुरपी से छिल कर कायदे से अपनी खाँची में रख लेतीं सूर्य सिर पर आते न आते खाँची जब भर जाती तब जालाब में धोकर सवयं भी नहाती हुई घर लौटतीं। गँड़ासी से बारीक-बारीक काटकर अनाज के भूंसे में आटे के साथ मिला कर जब जानवर के आगे डाला जाता तब वे झूम कर सिग कान हिलाते हुए भर-भर गाल चबाने लगते तब दिल को इतनी राहत मिलती जैसे स्वयं देशी घी के मालपूए खाये जा रहे हों । अब कहाँ? अब तो लोग मैगी खाकर ऐसे इतराते हैं जैसे किसन जी माखन खाकर इतराते थे। समय ही बदल गया भाई! अब तो जाहीं बिध राखें राम ताहीं विधि रहिए। शंभु को ऐसा लग रहा था जैसे उसके पेट का हिस्सा एकदम खाली हो गया हो। उसने नजरें उठाईं तो छेदी यादव उसकी ओर आता दिखा । उसे बहुत अच्छा लगा। उसने उसे हाथ थाम कर अपने पास ही बैठा लिया।

’’ दर्द कैसा है भइया?

’’ अरे हमार छोड़ो ! बिसना बतावत रहा कि बजरी गोरू चर गये अब का खवाई भइया उजरका, करियका के? सहर जाई के दुइ पइसा कमाइत तो इ हाल कई दिहिन ससुर, अब मरैं भूखन!’’ शंभु ने जैसे अपनी जीवन नैइया छोड़ दी मझधार में ।

’’ जिसने मुँह दिया है आहार भी वही देगा भैया, हम ग्राहक लेकर आयेंगे कल रात में, अंधेरा पाख है, किसी को कुछ पता नहीं चलना चाहिए नहीं तो सब पछिया लेंगे हमारा भी बेचवा दो हमारा भी बेचवा दो। चार पैसे मिल जायेंगे तो कुछ दिन के लिए सहारा बन जायेंगे। छेदी उसके कान में फुसफुसाया।

’’ भइया कतौ कुछ गड़बड़ त न होई जाई सारन के संघे?’’ शंभु के मन में उनके वध की आशंका ने सिर उठाया।

’’ तुम देखत तो रहो, इनका कुछ न होई ।’’

’’ हम सरकार के का कहि, अउर मनई के बिचार के का कहि? आरे अनाज बचाओ भाई, पै चारा भी तो बचाओ। गाय बैल बचाओ पै फसल भी तो बचाओ! अपने जानवर खुले छोड़ना कउन सी भलमनसी है? अरे भाई हम तो आखिन से देखा है कि टरक मा भरि-भरि के गोरू आन गाँव म उतार के भाग जात हैं लोगन, अइसे उनहूँ के गाँव मा उतारा जात है। पहिले कवनो इंतज़ाम करै का चाहत रहा।’’

’’सब इंतज़ाम हो रहा है भइया। देख नहीं रहे हो सभी गाँवों में चारागार वाली ज़मीन बेजा कब्जा से खाली कराई जा रही है। वहाँ जानवरों के लिए सब प्रबंध किये जा रहे हैं। जानवरों के लिए चारा-पानी दवाई आदि की व्यवस्था की जा रही है फिर भी सड़क पर जानवरों के झुंड दिख रहे हैं क्योंकि गौशाला की जिम्मेदारी सरकार ने जिन लोगों को दी है वे विदेशी नस्ल की गायों वाली अपनी नीजी डेयरी खोल ले रहे हैं सरकारी चारे से उनकी डेयरी चलती है और देशी गायें भूखी प्यासी बीमार संमूहिक मौत मरने को मजबूर हैं। जो भाग निकलती हैं वे बेघर बार मारी-मारी फिर रहीं हैं अब बताओ सरकार का करै?’’

’’ अरे!अउर कुछ न करै तो किसानन का बैल गाड़ी ही बनाकर दे-दे, कम से कम बैलों का पेट तो भरेगा।’’

’’ तो का सरकार ने मना किया है कि बैलगाड़ी कोई मत रखे? वह तो आदमी अपना समय बचाने के लिए नये जमाने की गाड़ी पर चलता है।’’ छेदी से बात करके शंभु का मन हल्का हो गया। साथ ही बैलों को बेचवाने की बात कह कर मन में उत्साह भी जगा दिया था उसने।

’’ठीक कहत हो भाई कवनौ बदलाव आवै शुरू में थोड़ी परेशानी अउतै है। माल खाने वाले न जाने कहाँ लुकाय रहत हैं, कवनो जोजना आई नहीं कि चोटहिया जलेबी पर जइसे माछी झूमै, ओही तरह छापि लेत हैं। जब तक मनई कुछ समझै बूझै सगरी मलाई उनके पेट मा।

’’ अब का किया जाय हम लोगन की सिधाइ ही तो हमारी दुश्मन बन जाती है। ’’

इन लोगों की आवाज सुन कर परमेसर की माँ चाय का गिलास लिए आ गई । इन लोगों को बातचीत में मशगुल देख कर चाय सामने दीवार की पाढ़ पर रख कर चली गई ।

चाय पीने के बाद जब छेदी चलने लगा तब फिर से बोल पडा़ शंभु-’’ ऐ भाई एनका अइसन जगह दिहो जहाँ खाय-पीये का आराम होय ं मोरे चारा होवत त कभौं न टरतेवं खुटा से ।’’

’’ अब मोह माया छोड़ दो, सबके पालनहार राम हैं। इनकी जिन्दगी लिखी होगी तो कौन मार सकता है और अगर पूर गया होगा तो कौन बचा सकता है।’’ कहते कहते वह अपनी साइकिल उठा कर चला गया।

दिन भर शंभु कल्पनाओं में जीता रहा- करियका उजरका के जाने की बात सोच-सोच कर कभी आँखें नम होती कभी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति की संभावना जगती और मन प्रसन्न हो उठता। उसने परमेसर की अम्मा को कुछ नहीं बताया। एक तो पेट में पानी नहीं पचता कह ही देगी किसी न किसी से और दूसरे मुँह बनायेगी। शाम के समय बैठा-बैठा वह उन्हें देखता रहा। दोनो को उसी ने लोका था । करियका की माँ मर गई जब साँप के काटने से तब शीशी से दूध पिला कर पाला था इसे, आज बेचना पड़ रहा है । पहले वह अपने खेत में सब्जी लगाता था उसके घास-पात से ही दोनों अघाये रहते थे। अब आवारा पशुओं के चलते सब कुछ छोड़कर शहर में मजदूरी करने जाता है । लड़का तो मोबाइल लिए फिरता रहता है कहीं पा गया तो तंबाखू गुटका खा लेता है नहीं तो अपने जैसों के साथ रात से बिहान और बिहान से रात करता रहता है । महतारी का दुलारा है कुछ कहो तो लड़ने लगती है लड़का अभी हुआ ही कितने दिन का जौन तुमका कमाकर नहीं दई रहा है ? ओकर कौर गिने की जरूरत नहीं है तुमका।’’ वह इसीलिए परमेसरा से ज्यादा बैलों केा मानता है। बेजुबान हैं इसीलिए तो कुछ बोल नहीं पा रहे हैं, वैसे आदमी से ज्यादा ही समझते हैं तभी तो उस दिन उजरका भाग आया रासते से। ’’ उसने अपने घावों की ओर देखा,वे टीस रहे थे।

वह जल्दी ही खा पीकर अपनी खाट पर लेट गया। उस रात जल्दी ही खाना -पीना निपट गया। बरसाती रात बिजली का भी भरोसा नही,ं पांच मिनट जली पाँच घंटे बुझी रही । कहने को तो है कि सुपाउला एक बिकसित गाँव है बिजली पानी अस्पताल की सुविधा है।

जब ट्रक के रुकने की आवाज आई तब चारों ओर सन्नाटा छा चुका था। बुंदाबांदी शुरू हो गई थी और बिजली गुल थी । कुत्ते अलबत्ता भांैकने लगे। पता नहीं कैसे फिर शांत भी हो गये। शंभु लाठी टेक कर उठा। छेदी के साथ दो आदमी आये दाढ़ी बढ़ी और मूंछे साफ । उन्होंने कुर्ते पाजामें पहन रखे थे। मोबाइल की टार्च के उजाले में उन्होंने शंभु के हाथ में कुछ रूपये थमाये ’’ आराम से गिन लेना पूरे आठ हजार हैं। ’’

अपनी तरफ बढ़ते देख कर दोनों भभरा कर उठ खड़े हुए। उनमें से एक ने न जाने उन्हें क्या खिलाया किवे आराम से उसके साथ चल दिये। कुछ दूर पर एक टीले से लगा कर ट्रक खड़ी थी। लकड़ी का एक पटरा ट्रक के डाले से लेकर ज़मीन पर जमाया गया। उस पर उन दोनो को चढ़ा लिया गया। जब गाड़ी चल पड़ी तब शायद उन्हे कुछ समझ में आया । वे ऐसे डकराने लगे जैसे कसाई उनका गला रेत रहा हो।

’’ हाय रे ! मेार करियका उजरका ! शंभु भांकार छोड़ कर रो पड़ा। जैसे ही उसे लगा कि इस तरह कोई उठ सकता है उसने अपने मुँह में अपना अंगोछा भर लिया।

’’ जाकर आराम करो भइया, भगवान जो करेगा अच्छा ही करेगा। ’’ उसे उसकी खाट तक पहुँचा कर छेदी अपनी साइकिल के पास तक चला गया। अंधेरे के कारण शंभु को उसकी छाया भर प्रतीत हो रही थी।

’’ हलो! हलो! आप मेरी आवाज़ सुन रहे हैं नऽ....? ’’

’’ यहाँ से गाड़ी निकल चुकी है गाड़ी का नंबर यू. पी. 11 2288 है पूरी भरी है गाय बैल बछड़े हैं।’’

’’ हाँ! देख लीजिएगा! ’’

’’ हाँ ! बनइला पुल पर ठीक रहेगा !’’

’’ आपके रहते चिंता की क्या बात है जय श्रीराम!’’

वह धीरे-धीरे अंधेरे में गुम हो गया।

एक तो उचटी नींद, दूसरे उन दोनो को बेच देने का अपराध बोध, शंभु मुर्गे की बांग के बाद सो सका था। आज काम भी क्या था देर तक सोता रह गया। कब सुबह हुई , धूप निकली ,बादल छाये और पानी गिरने लगा। परमेसर की अम्मा ने उसे जगाया ’’ उठो तो जी देखि लौ अपने बइलन के बदमाशी न जाने कैसे पगहा तोराय लिहिन और केकर-केकर खेत नास कई के आये हैं , अबहीं ओरहन अउतै होई, पगहा कवनो छोरि लिहिस सुपउला मा चोरन के तौ राजै है।’’

’’अरे !करियका! उजरका ! वह चौंक कर उठ बैठा। वे दोनो मुँह लटकाये अपने थान पर खड़े थे उनकी पीठ पर पिटाई के निशान थे। उनकी आँखों से पानी बह रहा था। शंभु लाठी के सहारे चल कर उनके पास तक गया। उनकी पीठ पर हाथ फेरता उन्हें दुलराता उनकी पीठ पर पड़े डंडे के निशान पर हाथ फेरता वह रो पड़ा ’’ हमरे कारन तुम मार खाये हो। हमहीं लालची पापी हैं, हमका माफ़ कई देना। ’’

’’ ये परमेसरा के अम्मा! हई धरु त संभारि के, छेदी के रूपया ह उनके फेरई के बा। ’’

 

  



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