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आलसी ब्राह्मण

आलसी ब्राह्मण

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आलसी ब्राह्मण एक समय की बात है। एक ब्राह्मण अपनी पत्नी व दो बच्चों के साथ रहता था। वह सवेरे उठता कुएँ के पास जाकर स्नान करता, खाना खाता फिर सो जाता। वह बहुत ही आलसी था।। उसके पास बड़ा सा खेत था। उसमें सभी प्रकार की फसल उगती थी। उसका परिवार सुखी था। एक दिन सोये हुए ब्राह्मण को उसकी पत्नी उठाते हुए कहती है कि उठिए और जाकर खेतों की तरफ हो आइए और फसल को पानी दे आना। पत्नी के काफी प्रयास करने पर उसके न उठने पर वह खीज कर स्वयं ही खेतों को पानी देने खेतों की तरफ चल पड़ती है। इधर कुछ देर बाद घर में बच्चे खेल-खेल में उधम मचाना आरंभ कर देते हैं। इस शोर से ब्राह्मण की नींद खुल जाती है और वह भी उनके साथ खेलने लग जाता हैं। इधर ब्राह्मण की पत्नी खेतों को पानी देकर घर वापस लौट रही थी तब रास्ते में उसे एक साधु दिखाई देते है। वह उन्हें प्रणाम कर घर आकर भोजन कर तृप्त होने की इच्छा को प्रकट करती है। साधु भी उसकी बात मान लेते है और उसके साथ घर आते है। इधर पत्नी अपने पति को नींद से जाग कर अपने बच्चों के साथ खेलते देखकर प्रसन्न हो जाती है और अपने पति का साधु से परिचय कराती है। दोनों उस साधु की बहुत सेवा करते हैं ,साधु को स्वादिष्ट भोजन करा कर तृप्त करते हैं । इनकी सेवा भाव से साधु खुश होकर ब्राह्मण से इच्छा माँगने को कहते है। तब ब्राह्मण इच्छा माँगते हुए कहते है कि मुझे कोई भी काम खुद ना करना पड़े। कोई हो जो मेरा सारा काम कर दे। तब साधु उसकी इच्छा पूरी करते हुए कहते है कि मैं तुम्हें ऐसी इच्छा पूर्ति का वर देता हूँ लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि उसे सदैव काम में व्यस्त रखें नहीं तो वह तुम्हें खा जायेगा। ऐसा कह कर वे चले जाते है। थोड़ी ही देर मे उस ब्राह्मण के सामने एक बड़ा राक्षस आकर खड़ा हो जाता है। पहले तो उसे देख ब्राह्मण डर जाता है लेकिन फिर अपने आप को संभाल कर कहता है कि जाकर खेतों में पानी दे आना। यह सुन राक्षस वहाँ से चला जाता है। अब ब्राह्मण खुश और निश्चित था कि उसे कोई काम नहीं करना पड़ेगा। कुछ ही समय पश्चात राक्षस वहाँ आता है और कहता है कि उसे काम बताये वरना वह ब्राह्मण को खा जायेगा। ब्राह्मण उसे दूसरा काम देते हुए कहता है कि जाकर खेत जोत आओ। यह सुन राक्षस वहाँ से चला जाता है। ब्राह्मण चैन की साँस लेते हुए कहता है कि अब इसे आने मे देरी होगी मैं आराम से भोजन करूँगा कहकर अपने बच्चों के साथ बैठकर भोजन करने लगता है। कुछ ही समय पश्चात वह राक्षस फिर से वहाँ आता है और ब्राह्मण से काम बताने को कहता है। ब्राह्मण घबरा जाता है और सोचने लगता है कि इसे क्या काम दूँ। राक्षस उससे कहता है कि अगर वह काम नही बताया तो वह उसे खा लेगा। तब ब्राह्मण घबरा जाता है चिढ़ कर कहता है कि हमेशा काम काम क्या कह रहे हो, आओ मेरे सिर पर बैठकर तबला बजाओ। राक्षस खुश होकर ब्राह्मण के सिर पर तबला बजाने लगता है। इधर ब्राह्मण सिर दर्द के मारे घबरा जाता है। इसकी यह हालत देख पत्नी कहती है कि अगर आप मेरी बात मानोगे तो मैं इसे आपसे दूर करने के लिए काम बताती हूँ। ब्राह्मण दर्द के मारे कहारते हुए कहता है कि जल्दी बताओ वरना यह मेरा सर ही फोड़ देगा। तब पत्नी उसे कहती है कि अगर आप अपना काम स्वयं कर आलस छोड़ दोगे तो मैं उसे आपसे दूर रखूंगी, तब ब्राह्मण उसकी बात मान लेता है। पत्नी उस राक्षस को रोकते हुए कहती है कि मैं तुम्हें एक काम बताने वाली हूँ । अपना जो मोती कुत्ता है जाकर उसकी पूँछ जो टेढ़ी है वह सीधी कर दो। यह सुन राक्षस वहाँ से चला जाता है। ब्राह्मण की हालत देख पत्नी ठहाका मार हँसने लगती है। कहा जाता है कि हमें कभी आलसी नहीं होना है। अपना काम स्वयं करना है।


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