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Bharti Suryavanshi

Drama Fantasy

5.0  

Bharti Suryavanshi

Drama Fantasy

द गेम

द गेम

24 mins
14.4K


रात के 11:45 बज रहे थे अखिल का जन्मदिन पूरा होने आया था लेकिन उनके दोस्तों का सेलिब्रेशन पूरा होने का नाम ही नहीं ले रहा था। आखिर में मोना ने कहा

"चलो यार...बहुत फन हो गया। क्लब वाले हमें बहार फेंके उससे पहले पार्टी बंद करना ठीक होगा। "

अखिल, संजय, मोना, अंजलि और समीर पांचो गहरे दोस्त थे। अखिल ने आज अपने जन्मदिन की ख़ुशी में सालो बाद कॉलेज फ्रेंड्स के साथ पार्टी की थी। कॉलेज पूरी होने के बाद दोस्तों से मिलना जुलना कम सा हो गया था। सभी लोग अपनी अपनी दुनिया में व्यस्त थे और आज जब इतने सालो बाद मिले तो बातो का सिलसिला रुका ही नहीं। पार्टी के बाद पांचो एक गाड़ी में घर जाने को निकले पर मोना को छोड़ अभी भी बाकी लोग पार्टी मोड से बहार नहीं आये थे।

सुनसान रास्ते पर गाडी तेज़ रफ़्तार से आगे बढ़ रही थी...तभी संजय ने बीच रास्ते पर गाडी रोकने को कहा आसपास वीरान सा जंगल था जो देख मोना चिल्ला पड़ी " यहाँ क्यों कार रुकवा दी ?"

संजय - “इमरजेंसी है।” इतना कह वो कार से फटाफट उतरा और सड़क किनारे हल्का होने खड़ा हो गया।

अंजलि - "यार...ये संजय ना..! थोड़ा अंदर नहीं जा सकता था...बेशर्म।" संजय वापस आया और कार में बैठ गया।

“छी...हाथ तो धो ले...!” अंजलि ने उसे पानी की बोतल देते हुए कहा।

सभी लोग थोड़ा सा नींद में थे। थोड़ी दूर आगे जाते ही उनकी गाडी के सामने घना कोहरा छा गया। अखिल ने गाड़ी रोकने की कोशिश की पर ब्रेक नहीं लगी और कार एक गड्ढे में जा गिरी। पांचो लोग किसी तरह एक एक कर गाडी से बहार निकले किसी को ज़्यादा चोट तो नहीं आयी पर गाडी बंद हो गयी।

संजय - “इस खटारा को यही बंद होना था। ”

अखिल -"बकवास बंद कर। गाडी की क्या गलती है.. देखा नहीं कोहरा था!"

मोना-" गाइस...लड़ो मत.. देखो वो...कुछ दूर घर दिखाई दे रहे है...तो कोई न कोई हेल्प मिल ही जाएगी। हमें जाकर किसी से मदद मांगनी चाहिए। ”

समीर - " ये घर... ? लगता है यहाँ कोई छोटा सा गांव है लेकिन अचानक हाईवे से किसी गांव में कहा से आ गए...अखिल कही हम गलत रास्ते पर तो नहीं थे ?"

अखिल - "समीर...मैं तो सही से ही ड्राइव कर रहा था। अचानक कोहरा छा गया दिख कहा रहा था कुछ..!"

अंजलि - " ज़्यादा मत सोचो... चलो वहां जा के किसी से बात करते है शायद कोई मैकेनिक मिल जाए!”

रात के १ बज रहे थे। गाँव में कोई आसपास नज़र नहीं आ रहा था सारी सड़के सुनसान थी। चलते चलते मोना और समीर काफी घबरा रहे थेमोना- " यार... मुझे डर लग रहा है। इतनी बार दरवाजे पर दस्तक देने के बावजूद कोई बहार नहीं आ रहा...किससे मदद मांगे इतनी रात को ?”

अंजलि -" हे, वो देख फाइनली, लगता है गांव के सब लोग उस कैसिनो में है।

अखिल - “हम्म्म...वहां चलते है। कोई ना कोई मदद तो कर ही देगा..!”

संजय - “हाँ और नहीं की तो भी रात मज़े में निकल जाएगी। ”मोना - “पागल हो गए हो क्या ? गाँव के बीचो-बीच ऐसा फैंटास्टिक कैसिनो...तुम लोगो को कुछ अजीब नहीं लग रहा।”

संजय - “इसमें अजीब क्या है..!”

अंजलि -" हाँ मोना...चिंता मत कर! चल... यहाँ कहा रुकेंगे रात भर ठण्ड में ?" चारो लोग आगे बढे पर समीर के कदम पीछे रुके हुए थे। अखिल ने उसे ना देख आवाज़ दी " ओये तुझे क्या इनविटेशन दू ? चल ना…"

(सभी वंहा पहुंचते है)

“नाम बड़ा दिलचस्प है ‘नेवर-लैंड कैसिनो’ संजय ने कैसिनो का बोर्ड देख कहा " क्या शानदार बोर्ड है...और ये देख... इन्होने नोटिस लगाई है 'ऐसी गेम्स जो ज़िन्दगी बदल दे पर आना तो अपने रिस्क पर' पढ़कर वो ज़ोर से हँसने लगा ।

कैसिनो रंगीन लाइट्स से झगमगा रहा था। जब पांचो अंदर गए कुछ लोग गेम्स खेलते हुए दिखे। यहाँ ज़्यादा भीड़ नहीं थी और वह लोग एकदम साधारण कपड़ो में थे जबकि कैसिनो बोहत ही शानदार और बड़ा था। पांचो जब अंदर गए तो उनके सामने एकदम से ही एक बूढ़ा इंसान आया उसने वेलवेट का काला कोट पहन रखा था जो बोहत ही पुरानी डिज़ाइन का था। उसकी एक पतली नकली लोहे की टांग थी, सर पर जादूगरों जैसी काली टोपी जिसमे से उसके कुछ सफ़ेद बाल चहरे पर आ रहे थे रहे थे भूरी भूरी आँखे, एकदम लाल होठ और गोल सांवले चहरे पर विकृत सी हंसी लिए छड़ी के सहारे लंगड़ाता हुआ वह आया और पांचो को वेलकम करते हुए उसने कहा " आइये...आइये...नए लोग लगते हे आप..!" जब वह हंसा तब उसके आगे के टूटे हुए दांत नज़र आने लगे। वो दिखने में तो कोई शैतानी जादूगर लगता था।

"हाँ हम शहर जा रहे थे पर रास्ते में हमारी गाडी ख़राब हो गयी। क्या कोई मदद मिल सकती है ?" संजय ने कहा। “मदद.. ? इस वक़्त तो कोई मिलेगा नहीं” उस बूढ़े ने अफ़सोस जताते हुए कहा।

अंजलि –“आपका कैसिनो इतना शानदार है। आप गाँव में किसी न किसी मैकेनिक को तो जानते ही होंगे। “

“नहीं मैं ज़रासल किसी को नहीं जानता ये नेवर लैंड कैसिनो बनाये कुछ ही दिन हुए है।

“अंजलि -“यंहा मौजूद लोगो में से कोई तो ?”

“इन लोगो को देख के लगता है की ये आपकी मदद कर पाएंगे ?” उसने ज़ोर ज़ोर से हसते हुए कहा पर वो पांचो बिलकुल भी नहीं हसे और उस बूढ़े को अजीब तरीके से देख रहे थे। ये देख उस बूढ़े ने कहा " आप लोग यहाँ सुबह तक रुक जाइये भोर में कोई न कोई मदद मिल ही जाएगी। पांचो चर्चा करने एक कोने में खिसक गए और मोना का डर सबसे पहले था

मोना – “मुझे यहाँ नहीं रुकना...कितना अजीब सा दीखता है ये!"

समीर – “हां यार रहिसो वाला कैसिनो और ऐसे लोग जो इतने गरीब दीखते है। अखिल यार... एक बार इनके चहरे की तरफ देखो, ये लोग होश में नहीं लग रहे। "

अंजलि - क्या बात कर रहे हो टल्ली होंगे और कुछ नहीं। मामूली सा गाँव है लोग तो गरीब ही होंगे लेकिन लत से छूटे नहीं...चले आये! तुम दोनों यु ही घबरा रहे हो और हम सब को भी डरा रहे हो। “

संजय- “हां बहार कहा बैठेंगे पूरी रात...यही रुकते है सिर्फ कुछ ही घंटो की बात है।

अखिल और बाकी सबने भी कैसिनो में ही रुकने का फैसला किया। उनकी चर्चा के दौरान वो बूढ़ा उन्हें तिरछी नज़र से देखे जा रहा था। अखिल ने उससे आकर कहा - "थैंक यू सर! आपने हमें यहाँ रुकने की इजाज़त दी मेरा नाम अखिल ये संजय, समीर, मोना और ये अंजलि"

“सब अच्छे घरो से लगते हो मेरा नाम पिंटो है...पिंटो साल्विया ! अपनी पूरी ज़िन्दगी की कमाई इस कैसिनो में लगा दी है...(चारो तरफ देखा कर) आप लोग कुछ गेम्स क्यों नहीं खेलते आइये मज़ा आएगा। “अपनी भौंए ऊँची कर बड़े ही उत्साह से पिंटो ने कहा

पिंटो उन्हें पोकर टेबल के पास ले गया वंहा एक ख़ूबसूरत जवान लड़का खड़ा था। एक बड़ी सी मुस्कराहट के साथ उसने कहा "पोकर, स्लॉट्स और केनो…this all are so boring! हमारे पास कुछ ख़ास नयी गेम्स भी है जो आज से पहले आप ने कभी नहीं खेली होंगी! wanna try?" संजय और अखिल ये सुन के ही बड़े उत्साहित हो गए। संजय ने कहा "क्यों नहीं… कौन सी गेम है ?”

“snake & ladder” उस लडके ने कहा

“क्या ? सांप -सीढ़ी! वो तो एक मामूली गेम है...हम बच्चे नहीं है।” अंजलि ने हंसी उड़ाते हुए उससे कहा"

"मामूली यहाँ कुछ भी नहीं मेडम!" उस लडके ने अपने दांत पिसते हुए अंजलि से कहा मानो वह अपना गुस्सा रोक रहा था।

तभी पिंटो ने उन्हें बताया "यहाँ जो डिज़ाइन है उस गेम का... वो आप को रोमांचित कर देगा! (इशारा कर) लॉक्ड रूम देख रहे हैं आप, वहां आईये...पर सिर्फ दो लोग” अखिल और संजय की आँखे ख़ुशी से चमकने लगी वो दोनों एक दूसरे की तरफ देख रहे थे कोई और कुछ कहे उससे पहले अखिल ने कहा "पिंटो सर मै और संजय चलते है...(बाकि दोस्तों की तरफ देख कर) तुम लोग ये सब गेम्स खेलो...!

अंजलि ने कहा - "नहीं मैं आउंगी साथ...!"

तभी उस पोकर टेबल के पास खड़े लड़के ने कहा -" चिंता न करे...आप लोगो के लिए भी बहुत कुछ है"

"अच्छा... और क्या है?" संजय ने पूछा फिर उस लड़के ने संजय के पास आकर धीमे से कहा - "उस तरफ चलिए..! एक रोमांचक गेम आप का इंतज़ार कर रही है। वो संजय का हाथ पकड़ उसे दूसरे रूम की तरफ ले गया। कैसिनो में ऐसे कई सारे दरवाज़े थे उस दरवाजे पर की (key) होल की जगह ताश की पत्ते की साइज का एक शीशा लगा हुआ था जिसमे एक हलकी छबी लाल बादशाह की नज़र आ रही थी।

“यार अपना नाम तो बताओ” संजय ने पूछा

“जेम्स..." इतना कह उसने उस शीशे पर लाल बादशाह का पत्ता रखा और फिर वो खुल गया संजय ने अंदर जाकर देखा तो ये पूरा कमरा खाली था। वंहा की दीवारे और ज़मीन भी ढलते सूरज के रंग जैसी पारदर्शी थी पर उन पर कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे उसने किसी शून्य में प्रवेश कर लिया हो। संजय ने जब ध्यान से देखा तो उसे एहसास हुआ निचे फ्लोर की जगह हर तरफ कोहरा छाया था जब सर ऊपर कर देखा तो आसमान भी नहीं था। बस वही खालीपन! वो बोहत घबरा गया लेकिन जब वो पीछे मुड़ा जेम्स ने दरवाजा बंद कर दिया था। संजय चिल्ला रहा था इतने में उसे एक आवाज़ सुनाई दी..." बचाओ...कोई है...बचाओ..." वो उस आवाज़ की तरफ जब चलकर गया तो उसने देखा एक सुन्दर लड़की राजकुमारी के कपड़ो में हथकडियो से बंधी हुयी है और जैसे ही वो पास गया संजय के कपडे भी बदल गए। उसके शरीर पर काले रंग के कपडे आ गए जो किसी पुराने ज़माने के नाविक जैसे थे।

“What the hell?” संजय ने अपने कपड़ो को देख कहा "तुम आ गए..." राजकुमारी ने कहा। संजय हैरानी से उसकी तरफ देख रहा था लेकिन कुछ भी उसकी समझ में आये उतने में धीरे धीरे आसपास का माहौल एक कैदखाने जैसा बन गया और दो पहरेदारो ने आकर उस पर तलवार चलाना शुरू कर दिया।

"अपनी तलवार निकालो" राजकुमारी ने ज़ोर से कहा। संजय हैरान था की उसके पास तलवार भी है उसने भी सामने से फिर तलवार चलना शुरू कर दिया। वो एक को ख़त्म करता तो दो और आ जाते। वो बडी ही फुर्ति से तलवार चला रहा था और आखिरकर उसने सभी को ख़त्म कर राजकुमारी की हथकड़ी पर तलवार से वार किया तो वो टूट गयी और अचानक प्रकट होने वाले पहरेदार गायब हो गए वो उस राजकुमारी को ले वंहा से भागने लगा। ये जगह अब एक अजीब और विशाल महल में तब्दील हो चुकी थी।

*******

अंजलि और अखिल उस बूढ़े के साथ सांप सीढ़ी का खेल खेलने जा रहे थे। यंहा भी वही हुआ उस बूढ़े ने उन्हें बंद कर दिया।

" खोलो...हमें नहीं खेलना कुछ खोलो दरवाजा…” अंजलि दरवाजा ज़ोर ज़ोर से पिट कर कह रही थी पर कोई सुनने वाला नहीं था। अखिल भी परेशान खड़ा था इतनी कोशिशे देख उसे समझ आ चूका था की गेम पूरी किये बिना वो बहार नहीं जा पाएंगे।

"अंजलि अपने पांसे फेंको”

“क्या बकवास कर रहे हो तुम। ये सामने सीढियाँ दिख रही हे इस पर बने दरवाजे के पीछे कभी भी सांप हमें डस सकते है...अखिल...(डरते हुए ) हम बुरे फास गए यार..!"

ये सोचकर ही अंजलि के चहरे का रंग उड़ गया था। उन लोगो के सामने एक बड़ा सा खण्डार था उसके बिच में टावर जैसी बड़ी ईमारत जंहा बड़ी बड़ी सीढिया थी और कुछ सीढ़ियों के पीछे दरवाजे थे जिनमे क्या था वो नहीं जानते थे।

"अंजलि अगर हमने गेम शुरू नहीं की तो यहीं फसे रह जायेंगे..." अखिल ने कहा

"और शुरू की तो कोई एक ही बचेगा" अंजलि ने तुरंत कहा " अभी तुम्हारा बर्थडे ख़त्म हुए कुछ ही घंटे हुए है...कहीं..."

"हम में से कोई एक तो बचेगा...(बड़ा सा पांसा अंजलि के हाथ में देते हुए) चाल चलो"

अंजलि ने घबराते हुए उसे फेंका...5 पड़े। तभी एक आवाज़ गुजी...'5 गेम 1 से शुरू होगी।' दोनों आस पास देख रहे थे पर आवाज़ कहां से आयी पता न चला। अगली बारी अखिल की थी उसने पांसा फेंका और पहले ही 1 आ गया। वो अंजलि की तरफ डर से देख रहा था की उसके कदम खींचने लगे पर जब दो बार ऐसा होने पर भी वो ना हिला तो जैसे किसीने उसके पैरो को ज़ोर से पकड़ लिया और तेज़ी से खींचता - घसीटता हुआ ले जाने लगा वो ज़ोर से चिल्लाने लगा और पहली सीढ़ी पर पहुँच वो रुक गया। अगली बारी अंजलि की थी डर से कांपते हुए उसने पांसा उठाया और फेंका...1 पड़ गया। पहले जो हुआ वो देख चुकी थी इसलिए वो खुद ही चल कर पहली सीढ़ी पर पहुँच गयी। अखिल की बारी आने पर पांसे अपने आप वंहा आ गए। उसने पांसा फेंका और 4 अंक आया वो आगे बढा 5 वी सिढी पर एक दरवाज़ा था जो खुलते ही एक बडी घुमावदार सिढी आयी और उसने अखिल को 40 नम्बर पर पहुंचा दिया।

दोनों की किस्मत अच्छी नहीं चल रही थी एक बार उसे सांप ने डस लिया उसके पांसों के अंक 3-4 ऐसे आ रहे थे। अब तक ऐसे ही एक दरवाज़े में से बड़ा हरे रंग का सांप आकर अखिल को डस कर 20 नंबर की सिढी के पास लाकर पटक चूका था। अगली चाल अंजलि की थी पर अब जो अंक आया उसने उसे सीधा नंबर 80 पर पहुंचा दिया। उन सांपो का ज़हर धीरे धीरे उन पर असर कर रहा था। वो लोग कमजोर होते जा रहे थे।

******

मोना और समीर बहार परेशान थे। काफी देर हो चुकी थी और कमरों से कोई भी बहार आया नहीं था। पिंटो भी काफी अजीब तरीके से अपनी छड़ी घूमता हुआ उनकी तरफ देख रहा था। मोना को इस बात का एहसास था, वह उठी और पिंटो के पास जाकर उसने पूछा " हमारे दोस्त कंहा है? काफी देर हो चुकी है। अभी तक खेल रहे है क्या ?"

" हाँ...आप लोग भी खेल का लुत्फ उठाइये" पिंटो ने कहा

“मुझे गेम्स पसंद नहीं।” मोना ने गुस्से से कहा और ये सुन पिंटो के तो हावभाव ही बदल गए। उसने कहा " क्या...क्यों ? आओ तुम्हे एक मज़ेदार गेम दिखाता हूं। मुझे...मुझे यकीं है तुम्हे पसंद आएगी।"

“नहीं...देखो पिंटो...हमारे दोस्तों को ले आओ...हमे जाना है।"

ये सुन वो ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा। उसकी हसी देख समीर भी चिढ गया। उसने कहा "इसमें हँसने वाली बात क्या है...आप प्लीज सबको बुला दीजिये...we want to leave!

“No...you can't यंहा सबकुछ...मेरी मर्ज़ी से होता है। कोई भी वापस नहीं जाएगा।" पिंटो ने इस तरह कहा की वो दोनों डर गए और फिर जेम्स आया और दोनों को ले जाकर एक कमरे में बंद कर दिया। ये कमरा भी शुरू में बिलकुल शून्य था लेकिन फिर पुरे कमरे में अँधेरा छाने लगा और सामने बोहत बड़ा ग्रे कलर का बोर्ड आ गया जिसमे उन्हें कुछ बॉम्ब नज़र आते और गायब हो जाते ऐसा तीन बार हुआ।

“माइन स्वीपर (Minesweeper) मैं...मैं...नहीं खेलूंगा।" समीर ने कहा और ज़ोर ज़ोर से दरवाजा पीटने लगा… "खोलो...खोलो...दरवाजा...प्लीज...जाने दो हमें प्लीज..." वो रोते हुए गिड़गिड़ा रहा था पर सुनता कौन? मोना ने उससे कहा " समीर हमारे पास शायद सिर्फ यही एक रास्ता है बहार जाने का... हो सकता है हम इसे पूरा कर आज़ाद हो जाए...मैं जाती हु"

"रुको...मैं जाऊंगा।” समीर ने कहा “मेरा सबसे बड़ा डर था की कहीं बॉम्ब ब्लास्ट में ना मारा जाऊ... जैसे मेरी मोम...मैं...मैं कभी ये गेम जीत नहीं पाया लेकिन तू ये कर सकती है। तेरी यादाश बोहत अच्छी है...कॉलेज में भी एकदम पढ़ाकू थी तू!"

“पर समीर..." मोना कुछ कह रही थी पर उसने कहा

"नहीं मोना, हमेशा डरता रहा और तुम सब ने संभाला है...शायद सबको बचाने का ये आखिरी मौका हो। बहुत कुछ किया है तुम सब ने मेरे लिए आज मेरी बारी..." और इतना कह समीर बोर्ड की तरफ गया और नबर २ पर पैर रखा आगे के कुछ बंद खाने खुल गए और उनमे १ -२ - ५ इस तरह से अंक दिखें। मोना भी उसे दूर से देख रही थी समीर को बड़े ध्यान से अगला कदम बढ़ाना था। उन पर चलता हुआ उसने अगला कदम रखा और तीसरी row के आखिर दो खानो को छोड़ सब खुल गए.... अगली row तो सेफ थी पर आगे का पता नहीं था। उसने सोचा वो उसी row के आखिर के खाने पर जाए और उसने कूद कर जैसे ही उस पर कदम रखा एक बड़े धमाके के साथ वो गायब हो गया।

"समीर..." मोना ज़ोर से चीखी। उसके गायब होते ही वो सारे खाने खुले थे, कुछ पलो के लिए सारे अंक सारे बॉम्ब सबकुछ दिख रहा था और फिर एकदम से सब बंद हो गया। उसके पैरो के पास एक रोशनी हुयी और शब्द उभर आये "Do you want to play same?” मोना ने हड़बड़ाते हुए कहा " हाँ..." फिर वो उस बोर्ड की तरफ बढ़ी अपने दोस्त की कुरबानी को याद करते हुए उसके आँखों में आंसू थे पर कोई और रास्ता भी नहीं था। उसने आँखे बंद कर वही बोर्ड याद किया और अपना कदम पहली कतार के दूसरे खाने पर रखा। कुछ दरवाजे खुल चुके थे वो संभलते हुए हर कदम बड़े सोच समझ कर रख रही थी। काफी सारे खाने खुल गये थे। वो बोर्ड के आखिर के तीन खानो से ऊपर खड़ी थी उसने अगले खाने पर अपना पैर रखा और बाकि सभी खानो पर अंक झगमगाने लगे- सारे बॉम्ब्स उसके आसपास खुल गए और एक आवाज़ आयी “You Win!” ये सुन मोना की आँखे ख़ुशी से छलक उठी। उसने भगवान को शुक्रिया करते हुए अपनी आँखे बंद की इतने में वंहा एक भूकंप आने लगा, सबकुछ हिलने लगा बोर्ड पर दरारे पड गयी। बड़ी-बड़ी दरारे! मोना चिल्ला रही थी और फिर बोर्ड पूरा टूट गया और वो ज़मीन में समां गयी। उसे लगा वो मर गयी पर ऐसा नहीं था। वो ज़िंदा थी और एक नयी जगह पर अपने आप को देख हैरान हो गयी। तब ही आवाज़ आयी

“व्हाट द हेल!” अखिल ने कहा वो भी यंहा आ गिरा

"अखिल...तुम यंहा कैसे.. ?" मोना ने कहा

अखिल कुछ कहे उससे पहले ही दीवार पर एक बोहत सुन्दर मास्क लगा हुआ था। वो बोलने लगा

"अरे वाह...! दो लोग..! आखिरकार अब मैं अकेली नहीं। दो लोगो की कंपनी मिलेगी। कितना मज़ेदार होगा। पिंटो जल्द ही तुम्हे भी किसी चीज़ में बदल देगा फिर हमेशा हम यंहा रहेंगे। वाह...वाह..."

उसकी बाते सुन वो दोनों हैरान थे। ताजुब तो इस बात का था की गेम जितने के बावजूद वो लोग यहीं फसे थे।

"Excuse me...हम गेम जित गए थे तो फिर पिंटो यंहा कैसे रख सकता है हमें। तुम जीती थी न ?" अखिल ने मोना को देख पूछा

"अह्ह्म्म...हाँ" मोना ने कहा, वो अभी तक सदमे में थी।

"डार्लिंग..! ये उसका नेवरलैंड है...उसकी मर्जी चलती है सिर्फ..! खैर मेरा नाम रीटा है।"

मोना - " हमारे दोस्त कंहा होंगे ? तुम कुछ जानती हो ?"

मास्क रीटा - " हारे तो मर जायेंगे और जीते तो फस जायेंगे।"

"मतलब अंजलि...मर जाएगी..." अखिल डर से बोल उठा

मोना - “नहीं...कोई तो रास्ता होगा यंहा से बहार निकलने का।”

मास्क रीटा - " होगा..पर मैं नहीं जानती। पिंटो और जेम्स बहुत खतरनाक है। वो दोनों जादूगर है लेकिन आम जादू दिखाने में दिलचस्पी नहीं रखते। अपने काले जादू की शक्तिया बढ़ाने के लिए उन्होंने ये कैसिनो बनवाया और नार्मल गेम्स के साथ अलग अलग तरह की रियल गेम्स भी डेवेलोप की लेकिन केसिनो की आड़ में वो अपने काले जादू को परवान चढ़ा रहा था। पैसो की नहीं जान की बाज़ी लगती थी यंहा...जब उसका ये राज़ लोगो के सामने आया तो उन्होंने कैसिनो को आग लगा दी। जेम्स और पिंटो मारे गए पर उसने मरने के बाद भी किसी को नहीं छोड़ा सारा गाँव तबाह हो गया।

"तुम यंहा कैसे फसी ?”

"उस आग में मैं भी तो मारी गयी थी। मैं उन दोनों के लिए काम किया करती थी। मरने के बाद भी मुझे मुक्ति नहीं मिली, एक मास्क में कैद कर दिया मुझे उस शैतान पिंटो ने। जब भी कोई गेम जीतता है तो पिंटो उसे किसी न किसी चीज़ में बदल देता है। मेरे आसपास देखो..."

"रीटा तुम चुप रहो सबका राज़ खोलोगी तो वो हमारी बलि चढ़ा देगा" पास में टंगी एक खूबसूरत पेंटिंग में से आवाज़ आयी

"अब तक हम दो ही है। ये भी गेम जित कर आया था पर काफी वक़्त से कोई गेम जीता नहीं सब मर गए...वो सामने देखो"

अखिल और मोना ने जब पीछे मुड़कर देखा तो कई सारे कंकाल और कुछ लाशे वंहा पड़ी थी।

"हर सुबह चार पांच दिन में यंहा एक लाश आ जाती है। तुम्हारे दोस्त भी सुबह तक आ जायेंगे। मास्क रीटा ने बड़े आराम से कहा लेकिन ये सुन अखिल और मोना दोनों के होश उड़ गए।

******

“और तेज़ चलाओ…” बग्गी में से बम्ब फेंकते हुए वो राजकुमारी संजय से कह रही थी "ये लो और लो हा...हा...हा... बड़ा मज़ा आ रहा है"

घोड़े पर सवार कुछ सैनिक उनके पीछे लगे थे। संजय ने बग्गी को तेज़ी से भगाते हुए पूछा

"तुम्हारा महल कंहा है ?"

राजकुमारी - " ओह..हा..! मेरा महल... उन पहाड़ियों के पीछे है।"

संजय- "इन लोगों ने तुम्हे कैद क्यों किया था ?”

राजकुमारी - "ये हमारे पडोसी दुश्मन देश है इसलिए हमें बंदी बना लिया"

संजय- “अच्छा फिर तो तुम्हारे पिताजी भी जल्दी मिलेंगे...(बग्गी रोक कर ) आगे नदी है..!"

संजय ने बग्गी से उतर राजकुमारी की तरफ अपना हाथ बढ़ाया और नदी में एक छोटी नाव मौजूद थी। दोनों उस पर सवार हुए। राजकुमारी, संजय को बड़े प्यार से देख रही थी लेकिन संजय को ये सब बड़ा अजीब लग रहा था। उसे अब तक ये भी एहसास नहीं हुआ था की वो एक मायावी खेल का हिस्सा है।" "झुको..." राजकुमारी ने ज़ोर से चीख कर कहा। जब वो नदी किनारे पहुंचे तो संजय पर पीछे से कुछ डाकुओं ने हमला किया लेकिन इस बार वो राजकुमारी के हाथो मारे गए। संजय बड़े आश्चर्य से राजकुमारी की तरफ देख रहा था। उसके हाथो से एक रौशनी निकली और उसने देखते ही देखते बड़ी तेज़ी से सबको ख़त्म कर दिया।

"तुमने ये कैसे किया ?"

"अरे हाँ... मैंने तुम्हे बताया नहीं...ही..ही..ही..." वो हँसने लगी और एक चुड़ैल का रूप ले लिया।

चुड़ैल -"तुम मेरा शिकार हो और बचना चाहते हो तो मेरे तीन सवालों का जवाब दो।"

घभराहट के मारे संजय के पसीने छूट रहे थे। अब तक जिन सैनिको को मार रहा था अब उसे एहसास हुआ की वो चुड़ैल को मारने की लिए उसके पीछे थे। "क्या सोच रहे हो ? तुम जवाब नहीं दोगे तो अभी मार दूंगी और गलत दिए तो कुछ देर बाद...ही..ही..ही..."

"सही दिए तो" संजय ने कहा

"तो तुम मुझसे आज़ाद..." उसके पास कोई रास्ता नहीं था। चुड़ैल ने मुस्कुराते हुए पहला सवाल पूछा

"ऐसा क्या है जो तुम्हे किसी से तो बाटना ही पड़ेगा लेकिन अगर बाँट दिया तो तुम्हारे पास कुछ नहीं बचेगा ?" संजय मनमोजिला था ऐसा कठिन सवाल सुनकर वो अपना सर खुजाने लगा उसकी समझ में तो कुछ आ नहीं रहा था फिर उसे कुछ याद आया और उसने कहा

"राज़..! अगर मैं अपना secret किसी से शेयर करूँगा तो मेरा राज़ तो रहेगा नहीं।"

“सही जवाब..." चुड़ैल ने कहा और संजय ख़ुशी से उछल रहा था

“अगला सवाल...कौन सी गलत चीज़ को भी औरते सही मानती है?”

"यार...ये तो बहुत आसान है... मैं हमेशा लड़कियों की तारीफ कर उन्हें मना लेता हु तो जवाब है तारीफ। सही हो या गलत उन्हें सही ही लगती है।"

"सही जवाब " चुड़ैल ने गुर्राते हुए कहा।

"तुम भी सुन्दर हो... चुड़ैल हो तो क्या हुआ अब तक तो परी लग रही थी... I mean हो।

संजय ने जो तारीफ की उससे वो खुश हो गयी और अगला सवाल पूछा

"इस सवाल का सही जवाब दे दिया तो तुम आज़ाद हो जाओगे। सवाल है - जो इसे खरीदता है वह उसका इस्तेमाल कभी नहीं करता और जो इस्तेमाल करता है कभी खरीद नहीं सकता"

"कफ़न!" संजय ने उदास होकर कहा शायद उसे अपने पिता की याद आ गयी थी जो अब इस दुनिया में नहीं थे।

"सही जवाब..." चुड़ैल ने कहा और फिर तुरंत उसका शरीर किसी बम्ब की तरह फुट गया। संजय ने अपना हाथ चहरे के आगे कर लिया। अंगार की बुँदे उस पर बरस रही थी। वो भागा के तभी घायल को और घायल करने पीछे से कुछ पहरेदार संजय को आवाज़ लगाते हुए दौड़ने लगे संजय उनसे जान बचा भाग रहा था और भागते भागते उसके सामने का हर नज़ारा बदलने लगा। जैसे किसी और दुनिया का रास्ता खुल गया हो और वो पोहंच गया अखिल-मोना के पास।

"तुम्हे जादू आता हे क्या?” मोना ने संजय को अचानक देख पूछा "मैं ऊपर से गिरी। ये...ये अखिल लुढ़कता हुआ दरवाज़े से आया और तुम...तुम ऐसे ही आ गए"

"ये सब छोड़ यार हम सब है कंहा?"

" पिंटो की दुनिया में" मोना के ये कहते ही अब यंहा भी हलचल होने लगी एक बोहत विशाल हथोड़ा लिए पिंटो उन्हें चींटी की तरह कुचलने को बार बार उन पर पटक रहा था। वो तीनो जान बचाते हुए इधर उधर भागने लगे। पिंटो उन पर बार बार हमला करता लेकिन कभी संजय तो कभी अखिल और कभी मोना आवाज़ लगा उसका ध्यान बटाने लगे, पिंटो परेशान हो रहा था। १० गुना बड़ा पिंटो गुस्से के मारे लाल पीला हो रखा था। फिर वो ज़ोर से चीखा और हथोड़ा ऊपर कर जब निचे किया तो अखिल का पैर कुचल गया।

"आअह्ह्ह..." वो ज़ोर से दर्द के मारे चीखा। मोना और संजय दौड़ते हुए उसके पास आये और दोनों उसे सहारा देते हुए छोटे से खोल (छोटी गुफा) में जा छिपे

"अखिल तुम...तुम..." मोना ने रोते हुए कहा "ये सब क्यों हो रहा है हमारे साथ..." मोना को बहुत गुस्सा आ रहा था "क्यों यंहा उसकी मर्ज़ी चलती है बेबस हो गए हम लोग उसके आगे"

"मैं...मैं..उस कुचल दूंगा मन कर रहा है उसके जितना बड़ा शेर बन उसे खा जाऊं..बदल जाऊ। मै शेर मे बदल जाऊ।" संजय ने गुस्से से तिलमिलाते हुए ज़ोर से कहा और ये क्या सच में वो शेर में बदल गया और फिर दौड़ लगायी पिंटो के पीछे! पिंटो ने अपना आकार बदल नार्मल कर लिया तो संजय भी उसी आकार का बन उसके पीछे गर्जना कर दौड़ने लगा। मोना ने ध्यान दिया की संजय के ऐसा सोचते ही उसके ज़ख्म भी गायब हो गए थे और एकाएक उसके दिमाग मे मास्क रीटा के कहे कुछ शब्द गूंजने लगे 'नेवरलैंड...सिर्फ उसकी मर्ज़ी...उसकी दुनिया.'

"अखिल...मुझे समझ आ गया ये क्या हो रहा है। हम उसकी दुनिया का हिस्सा है...अखिल..! ये जादू से बढ़कर उसकी इच्छाशक्ति है जिसने हम सब को कमज़ोर बना दिया। नेवरलैंड यानि ऐसी जगह जो है ही नहीं...प्लीज अखिल तुम सोचो के तुम्हारा पैर ठीक हो जाये पुरे विश्वास के साथ। उसे हारने का यही एक तरीका है। अखिल को मोना की बात समझ आ रही थी। उसने अपनी आँखे बंद की और पुरे मन से ये मान लिया की वो ठीक है। धीरे धीरे उसका पैर ठीक हो गया किसी जादू की तरह..!

अखिल हमारे पास वक्त नहीं है पौने ४ बज रहे है अगर हमने ४ बजे से पहले उसे नहीं हराया तो यही फ़स जायेंगे रीटा और उस पेंटिंग की तरह..."

"तो क्या करे अब ?" अखिल ने पूछा

मोना उस खोल से बहार निकली और पिंटो को चेतावनी देते हुए बोली " पिंटो तुम हमें यंहा नहीं रख सकते हम जीते थे। हम मे हिम्मत है तुझे हारने की दम है तो.."

"हम सब को हरा के दिखा " अखिल ने कहा

पिंटो जो शेर संजय के पैरो के निचे था वो घबरा चूका था। वो तीन थे और ये अकेला। वो कमजोर पड रहा था। संजय ने अपना पंजा उस पर से हटाया और इंसानी रूप में आ अपने दोस्तों के पास गया तीनो ने एक दूसरे का हाथ थाम लिया।

"तुम लोग मुझे नहीं हरा सकते...मै सबसे बड़ा जादूगर हु..! मुझे कोई नहीं मिटा सकता..." ज़ोर से पिंटो ने कहा और गायब हो गया

मास्क रीटा - " वो अपने कैसिनो में गया है। मेरा वक्त तो गुज़र गया...पर तुम लोग बच सकते हो और मै अपनी क़ुरबानी देकर तुम्हारे लिए बस ये कर सकती हु" फिर मास्क पर दरार पड़ने लगी और उनमे से लावा फुट फुट कर बहार आने लगा ज़ोर से चिल्लाते हुए पूरा मास्क टुट कर बिखर गया, दिवार ढेह गयी और सामने था वही कैसिनो। संजय पिंटो की तरफ भागता हुआ आया और पूछा बता "वो क्या चीज़ है...जो मरने के बाद भी दुसरो को हेरान करती है ?" पिंटो उसका सवाल सुन हैरान रह गया।

"सांप सीढ़ी..नए डिज़ाइन की आ खेलते है..." अखिल ने उसके पास जा ज़ोर से कहा और उसका चेहरा हरे रंग के सांप में बदल गया उसने पिंटो को मारने की कोशिश की तब ही जेम्स ने आकर उस पर लाठी से हमला कियाा। सब एक दूसरे से लड़ रहे थे। मोना अब भी परेशान थी...४ बजने में बस ५ मिनट बाकी थे। पिंटो से मुकाबला तो वो लोग कर पा रहे थे लेकिन इस दुनिया से बहार कैसे जाते वो समझ नहीं पा रही थी। तभी उसका ध्यान दरवाजे पर बने शिशो के लॉक पर गया उसे याद आया के कुछ पत्तो का इस्तेमाल किया था जेम्स ने उन्हें खोलने को और वो सब दरवाजे हमेशा बंद ही रहते थे। वो फुर्ती से दौडी और पत्तो को ढूंढने लगी सब एक दूसरे को मारने में व्यस्त थे। आखिर मे पत्ते उसके हाथ लगे।

"अखिल, संजय... सारे दरवाजे खोल दो..." मोना ने उनकी तरफ पत्ते फेंक कहा

वो दोनों दरवाजे खोलने को बढे तब ही पिंटो उन्हें रोकने अपनी छड़ी ढूंढने लगा लेकिन मोना ने हसते हुए वो छड़ी पिंटो को दिखाई और उससे एक एक चीज़ तोड़ने लगी। जेम्स उन सब चीज़ो के टूटने से कमज़ोर पड़ रहा था। उसकी जान जाने लगी वो चीखने लगा। पिंटो कुछ करे उससे पहले ही एक एक कर अखिल और संजय ने सारे दरवाजे खोल दिए और उन बंद दरवाजो के पीछे छुपी काली शक्तिया हवा बन बहार आ गयी। एक ज़ोर का तूफ़ान छा गया...सब कुछ तबाह हो रहा था...पिंटो अपने काले विश्व को मिटते हुए देख रहा था।

"पिंटो...जोकर एक ही होता है ना...सबसे अलग" मोना ने जोकर का पत्ता दिखा उसे फाड दिया। काली शक्तिया पिंटो और जेम्स को अपने साथ ले गयी।"

तबाही का तूफान एकदम शांत हो गया। तीनो दोस्त एक दूसरे के साथ थे...ज़िंदा..! अफ़सोस था तो अपने दो दोस्तों को खोने का। तीनो एक दूसरे के गले लग रोने लगे..! कैसिनो का अब नामो निशान नहीं था। ना...ही वो गांव..। वो लोग उसी हाईवे पर थे चलते हुए तीनो गाड़ी के पास पहुंचे

"अच्छा होता न अगर हम मदद ना मांगते...एक रात ने हमसे अंजलि और समीर को छिन लिया" संजय ने कहा

अखिल - " उस हिसाब से तो मै पार्टी न देता तो ये सब होता ही नहीं..."

मोना-" यार...तुम लोग फिर शुरू हो गए। इसमें किसी की गलती नहीं थी।" मोना ने कहा तभी उन्हें कुछ आवाज़ सुनाई दी।

"बचाओ....बचाओ...मोना...समीर..."

आवाज़ सुन वो लोग जंगल की तरफ भागे और देखा की अंजलि बहुत ही ऊँचे पेड पर फंसी है। अखिल ने उसे उतारा और कहा

" तुम यहाँ हो तो समीर भी यही कहीं होगा।"

चारो समीर को ढूंढने लगे और वो उन्हें बेहोश हालत में मिला संजय और अखिल उसे गाड़ी के पास उठा कर लाये और होश में लाने के लिए पानी डाला समीर होश में आते ही चिल्लाया "बम..."

"नहीं है...सब ठीक हो गया है समीर..." मोना ने मुस्कुराते हुए कहा

"पर हम सब बच कैसे गए? " समीर एक गलत रास्ता हमारे सामने आया और हम किसी और दुनिया में पोहंच गए। बेशक वो पिंटो का नेवलैंड था पर उसकी हर गेम का हिस्सा हम सब थे। सूरज की रोशनी पड़ते ही उसकी दुनिया मिट जाती अगर हम कामयाब न हुए होते तो वहीँ फसे रहते" मोना ने कहा

"हाँ...हमारी दोस्ती जीत गयी और पिंटो की 'द गेम’ ख़त्म हुयी" अखिल ने हसंते हुए कहा।"


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