नीलकंठ फिर कैसे रुकता
नीलकंठ फिर कैसे रुकता
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सड़क के किनारे बैठा एक बूढ़ा बैल लोगों को आते-जाते देख रहा है। उसे कोई नहीं देख रहा। ऊपर आसमान में उड़ता नीलकंठ पंछी उसे देखकर सोच रहा है- बेचारा बैल भूखा प्यासा लगता है। कोई इसपर ध्यान भी नहीं दे रहा है। थोड़ी देर इसके सींग पर बैठता हूँ।
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बैल के सींग पर नीलकंठ आकर बैठा। कुछ लोग नीलकंठ और बैल को प्रसन्न होकर देख रहे हैं। नीलकंठ पंछी अब सोच रहा है - मेरे बैठने से लोगों ने इसे देखा तो सही। शायद अब कोई इसे खाना पानी भी दे।
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नीलकंठ आसमान में। बैल के आगे लोग पालक और रोटी आदि लाकर रख रहे हैं। बैल खा रहा है। नीलकंठ आकाश में अभी तक अभी अब सोच रहा है - आहा! बहुत अच्छा हुआ। अब तो बेचारे बैल का पेट पूरी तरह भर जाएगा।
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बैल के आगे एक महिला पानी की बाल्टी रख रही है। बैल पानी पी रहा है। आसमान में नीलकंठ पंछी अब गा रहा है -
भूखे-प्यासे बैल ने पाया
जी भर भोजन पानी।
लोग यहाँ के पर उपकारी
सज्जन सुख के दानी।।
चिरपिक चिरपिक चूँ
मित्र मिला कुछ बात करूँ।।
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लोग जा चुके हैं। बैल के कान में नीलकंठ कह रहा है+बैल का जवाब-
1. अच्छा प्यारे, बैल भाई! मैं चलता हूँ
2.अरे नीलकंठ! तुम आए कब थे?
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नीलकंठ आसमान में जाते हुए बैल से कहता है-
प्रसन्न रहो मित्र, तुम्हारी मित्रता में मज़ा नहीं आया। मेरा रुकना अब बेकार.....
खड़े हो चुके बैल के दो भाव/कथन
1. ⁉️
2. अरे रे! मैंने पाकर भी मित्र गँवा दिया।