प्यार दिल्ली में छोड़ आया - 12
प्यार दिल्ली में छोड़ आया - 12
फरवरी १,१९८२
फरवरी ८२ की पहली सुबह है, और बाहर घना कोहरा छाया है। जब मैं डायरी लिख रहा हूँ तो सूरज इस निराश दुनिया को रोशन करने के लिये चमक रहा है। आज मैं बहुत उत्सुक हूँ कुछ रचनात्मक, कुछ जोशभरा काम करने के लिये। वक्त आ गया है कि इसे कर ही लूँ। जिन्दगी बहुत छोटी है। मैं अब और सोकर इसे नहीं गुजारुँगा। जैसा कि एक ब्रिटिश डॉक्टर ने कहा है कि सबसे ज्यादा तन्दुरूस्त, प्रसन्न, सफल और विद्वान व्यक्ति वे होते हैं जो कम से कम सोते हैं, करीब पाँच घण्टे हर रात। ‘‘इससे ज्यादा’’, वह कहता है, ‘बुरी आदत है और यह दिमाग को सुस्त बना देती है।’ हमें अपने दिमाग को सजीव और कार्यशील रखने के लिये खुद को सक्रिय एवम् सजीव रखना होगा। अच्छा कहा है। अब से मैं एक नई शुरूआत करुँगा। देखें, कब तक निभा पाता हूँ। ठीक है, डायरी की ओर चलूँ।
सुबह 10.30 बजे मैंने अपना सक्रिय कार्यकलाप शुरू किया लिंग्विस्टिक्स लाइब्रेरी जाकर जहाँ से मुझे एक किताब लेनी थी, फिर मैं नोटिस बोर्ड देखने गया। सेमिनार रूम के सामने अंजु और राकेश (मेरे सहपाठी) गपशप कर रहे थे। मैंने मुस्कुराकर उनसे ‘हैलो’ कहा। अंजु ने नोटिस बोर्ड की ओर इशारा करते हुए कहा –
‘‘नोटिस बोर्ड देखो, डेविड’’
‘‘किस बारे में है?’’ मैंने उससे पूछा।
‘खुद ही देख लो,’ उसने सलाह दी।
मैंने नोटिस बोर्ड पर नजर दौडा़ई और मुझे दो नोटिस नजर आए; एक महत्वपूर्ण है, दूसरा-दिलचस्प महत्वपूर्ण नोटिस इस बारे में है कि एम०फिल कमिटी की मीटिंग ३ फरबरी को होने वाली है, जिसमें शोध-विषयों को अंतिम स्वीकृति दी जाएगी। दिलचस्प नोटिस उस पिकनिक के बारे में है जिसका आयोजन डिपार्टमेन्ट ने किया है। जब मैंने उस धनराशि की ओर देखा जो हमें खर्च करनी पड़ेगी, तो मेरी दिलचस्पी खत्म हो गई। २० रूपये। मैं अपने आप को और अधिक आर्थिक परेशानी में नहीं डालूँगा।
मैं डिपार्टमेन्ट से निकलकर लाइब्रेरी सायन्स डिपार्टमेन्ट गया मि० वासित को याद दिलाने कि उन्हें खत लिखना है। वे वहाँ नही थे। उनका कमरा बन्द था। मैंने देखा कि सुन्दरम मैडम क्लास में लेक्चर दे रही थी। मैंने सोचा कि उन्हें याद दिलाने की जरूरत नहीं है। शायद उन्होंने तुम्हें लिख भी दिया हो। मैं उन्हें तंग नहीं करना चाहता। तो मैं तुम्हारे डिपार्टमेन्ट से मिलकर आराम से मिलने पहुँचा। वह सिर ढाँककर सो रहा था। मैंने उसे उठाया जिससे वह लंच के लिये तैयार हो जाए। आचन च्युएन एक स्पेशल मीटिंग के लिये बुलाने आया जो फरवरी में होने वाली थी और वह जोर दे रहा था कि हम फरवरी में अशोक बुद्ध मिशन में अन्य बौद्धों के साथ माघ पूजा का आयोजन करें। मैंने उनके साथ कुछ समय बिताया और फिर कुछ कागज खरीदने को-ऑपरेटिव स्टोर गया। सोम्रांग भी वहाँ फाइल्स खरीद रहा था। मैंने उससे एक रूपया उधार लिया, क्योंकि मेरे पास बिल चुकाने के लिये पर्याप्त पैसे नहीं है। जब मैं बाहर निकला तो इत्तेफाक से मिसेज कश्यप से मुलाकात हो गई। मैंने उन्हें ‘नमस्ते’’ कहा और विनती की कि वे मि० काश्यप को तुम्हें लिखने की याद दिला दें, यदि वे तुम्हारे दिल्ली पहुँचने से पहले ऐसा करना चाहे तो।
मैं लंच के लिये होस्टल वापस आया और लंच के बाद वुथिपोंग के कमरे में उससे थोड़ी-सी बातें करने गया। वह अभी तक ‘‘वो ही’’ वुथिपोंग है जिसे अपना जीवन संतुष्टि लायक नहीं प्रतीत होता। वह बेकार ही महान कल्पनाओं के चाँदी के रथ में सवार होकर स्वर्ग से उतरने की राह देख रहा है, जिसे एक विजयी, मुस्कुराती काव्य-देवता हाँक रही है। मुझे ऐसा लगता है कि अगर वह छोटी-छोटी चीजों – दर्जनों, सैकडो और कभी कभी हजारों छोटी-मोटी सूचनाओं, विचारों, और घटनाओं को, जो उसके दिमाग में भरी पड़ी हैं, अनदेखा न करे तो वह बेशक, अपने समय का महान आदमी है। हमारी ये मीटिंग बस रचना का ऐवज बन गई – खासतौर से गप-शप, मौसम के बारे में बेकार की बातें, या बकवास, जो खामोशी की खाई को पाटने के लिये जा रही थी। मगर फिर भी, मुझे उसका साथ देना अच्छा लगा। उसने कॉफी बनाई और महेश ने चपाती और यह थी समाप्ति ‘‘हमारे वक़्त’’ की। वह मेरे साथ होस्टेल आया। हम जी भर कर पिंग-पॉग खेले। उसने गरम पानी से स्नान किया और फिर अपने ‘‘काम’’ को करने चल पडा़। जब मैं खेलने के लिये अपनी बारी का इंतजार कर रहा था, तो मैं पोस्टमैन द्वारा अभी-अभी लाए गए खत देखने चला गया। वाह, क्या किस्मत है। मुझे तुम्हारा खत मिला। यह आश्चर्य की बात है। मुझे आज इसकी उम्मीद नहीं थी। बहुत-बहुत धन्यवाद, प्रिये, कि तुम मुझे भूली नहीं हो। अब मैं खुश हूँ!
और रात को, डिनर से पहले और डिनर करते समय बिजली आती-जाती रही। हमने मोमबत्तियों की रोशनी में डिनर खाया। मैं कल्पना कर रहा हूँ: कितना रोमांटिक था।
अच्छा, मेरी जान, अब मैं डायरी लिखना बन्द करता हूँ और बचे हुए समय में तुम्हारे खत का जवाब लिखूंगा। गुड नाईट !
Dilige et quod vis fac (Latin): प्यार करो और वह सब करो जो तुम चाहते हो – सेंट ऑगस्टीन AD C 354-430तेईसवॉ दिन
फरवरी २,१९८२
तुमसे दुबारा मिलकर बहुत अच्छा लगा! यकीन करो या न करो, कर्मचारी-हड़ताल फिर से शुरू हो गई है। यह अभी भी चल रही है। मैं इन कर्मचारियों के बीच निरीक्षक “Observant” की तरह बैठ गया। कृपया अंग्रेजी शब्द Observant में से “Ob” मत हटाना, वर्ना वह “servant” बन जाएगा ! मैं मुँगफली छीलता रहा और भाषणों को १५ मिनट तक सुनता रहा। मुझे कौन सी चीज यहाँ खींच लाई है? तुम ये सवाल पूछ सकती हो। ये, बस, दिलचस्पी की बात है, डार्लिंग, कल रात को मैंने तुम्हारे खत का जवाब दे दिया। यह एक अकस्मात् प्रतिक्रिया थी, क्योंकि तुमने मुझे बड़ी देर से लिखा था। सुबह 10.00 बजे मैं पोस्ट ऑफिस गया और टिकट लगा कर उसे पोस्ट बॉक्स में डाल दिया। फिर मैं होस्टल के सामने वाले प्ले-ग्राऊण्उ पर धूप में बैठने के लिये आया, साथ में किताब थी जो मैं पढ़ रहा था ‘आधुनिक भाषा विज्ञान के अर्थविचार का परिचय’ (Introduction to contemporary Linguistic semantics) – लेखक जॉर्ज एल० डिल्लोन, बड़ी दिलचस्प किताब है। मैंने दो वाकयों A और B के बीच का अन्तर ढूँढा।
A. जॉन अपनी बीवी को इसलिये नहीं मारता, क्योंकि वह उसे प्यार करता है।
B. वह उसे प्यार करता है, जॉन अपनी बीवी को नहीं मारता
(‘‘क्योंकि’’ के स्थान पर ध्यान दो)।
वाक्य A दो प्रकार से समझा जा सकता है (सन्देहास्पद), जो ये हैः
१. वह उसे मारता है, मगर किसी और कारण से
२. वह उसे नहीं मारता – क्योंकि वह उसे प्यार करता है।
जब्कि वाक्य B केवल एक ही अर्थ को प्रदर्शित करता है (असन्देहास्पद), और वह ये किः
१. वह उसे नहीं मारता – क्योंकि वह उसे प्यार करता है।
फरक समझ में आया? मेरे अंग्रेजी के इस नए ज्ञान को मेरे साथ बाँटो।
जब मैं पढ़ रहा था तो मैंने तुम्हारे डिपार्टमेन्ट के दो लोगों को देखा (क्लर्क ऑफिसर) जो लॉन पर और कर्मचारियों के साथ बैठे थे। वे अपना दिल बहलाने के लिये गा रहे थे। वे हड़ताल पर थे। फिर, मैंने उन्हें पहचानने के अंदाज में उनकी ओर देखकर हाथ हिलाया। उन्होंने भी जवाब में हाथ हिलाया, जब मैं मुडा़ तो मैंने पुलिस के तीन सिपाहियों को अपनी ओर आते देखा।
‘‘तीन नंबर गेट कौन सा है, भाई,’’ उन्होंने मुझसे अंग्रेजी मिश्रीत हिन्दी में पूछा।
मैंने उन्हें रास्ता बताया और फिर से पढ़ने लगा। जब मैंने एक अध्याय पढ़ लिया तो मैं हडताल का निरीक्षण करने के लिये उत्सुक हो गया, जो वाइस चान्सलर बिल्डिंग के बाहर युनिवर्सिटी गार्डन को दहला रही है। मैं जिन्दगी की खोज-बीन करना और अपनी दिलचस्पी का दायरा बढा़ना चाहता था। मैं उस दायरे में शामिल हो गया और हड़ताल का निरीक्षण करने लगा। करीब २५ महिलाये थी वहाँ। उनमें से अधिकतर तो बुनाई कर रही थी। उन्हें हड़ताल में कम दिलचस्पी थी। वे सिर्फ हड़तालियों की संख्या बढा़ने आई थीं। बस, इतना ही! जहाँ तक आदमियों का सवाल है, वे ताश खेल रहे थे, अपने उकताने वाले खेल – हड़ताल का मजा ले रहे थे। पन्द्रह प्रतिशत लोग सचमुच में हड़ताल में दिलचस्पी ले रहे थे। मेरे निरीक्षण के दौरान मैंने कुछ मूँगफली खरीदी, जो खूब धडल्ले से वहाँ बिक रही थी, और मेरे पास बैठे आदमी को पेश की। ध्यान से भाषण सुनने के बदले हम मूँगफलियॉ छील रहे थे और मजा़क कर रहे थे। यह बस खेल का ही एक हिस्सा है – मतलब, मेरा निरीक्षण। 12.30 बजे मैं हड़ताल छोड़कर लंच लेने गया और कुछ देर और पढ़ता रहा।
1.30 बजे मैं म्युआन से किताब लेने गया। उसका कमरा अभी भी बन्द था। वह लंच के लिये ग्वेयर हॉल वापस नहीं आया था। मैंने बून्मी के कमरे में उसे ढूँढा। वह मुझे वहाँ भी नहीं मिला। बल्कि, वहाँ मुझे बून्मी और नोनग्लाक मिले। वे साथ में लंच ले रहे थे। उन्होंने औपचारिकता से मुझे भी उनका साथ देने को कहा। मना करने का कोई कारण नहीं मिला, बल्कि यह आकस्मिक दान स्वीकार कर लिया। जब हम लंच खत्म कर ही रहे थे, म्युआन अन्दर आया। इसलिये उसे बचा-खुचा खाना दिया गया। दुहरे लंच के बाद, मैं म्युआन के कमरे में किताब ढूँढने गया। मु्झे अपनी तलाश में सफलता मिली और मैं अपने कमरे में इसका फायदा उठाने आ गया।
जब मैं अपने पढ़े हुए अध्याय के मुख्य बिन्दु कागज पर नोट कर रहा था तो सोम्मार्ट आया। वह थका हुआ और भूखा लग रहा था। मगर उसकी भूख शांत करने के लिये कमरे में खाने को कुछ था ही नहीं। उसने पन्द्रह मिनट आराम किया और फिर पढ़ना शुरू कर दिया। मैं उसका दिमाग पढा़ई से हटाने की कोशिश कर रहा था, और मैंने उससे कहा कि सोम्नियेंग और उसके परिवार का हाल पूछने के लिये मेरे साथ चले (मैंने सुना था कि सोम्नियेंग को बुखार था)।
हम 5.30 बजे शाम को उसके यहाँ पहुँचे। घर पर कोई भी नहीं था। हम वापस लौटने लगे तो किंग्स-वे पर हमें सोम्नियेंग मिला, जो घर लौट रहा था। हम उसके साथ वापस लौट आये। उसका बुखार उतर गया लगता था। बर्मी डॉक्टर सोम्नियेंग के लिये एक बिस्तर लाया था मगर वह उसे गेट पर रखकर वापस क्लिनिक चला गया। मैंने उस भारी बिस्तर को उठाने में मदद की।
सोम्मार्ट ने दरवाजे का ताला खोला। हमने थोड़ी सी बातें की। मैंने फल और पानी लिया, सोम्मार्ट ने भी ऐसा ही किया। इसके कुछ ही देर बाद पू, कोप और ओड वापस आए। उन्होंने हमें अपने यहाँ डिनर पर आमंत्रित किया। हमने धन्यवाद कहते हुए इनकार कर दिया। हम उन्हें छोड़कर अपने होस्टेल लौटे, हमेशा की तरह दाल, सब्जी और चपाती खाने। असल में हम उनका खयाल रख रहे थे, इसीलिये हम उनका निमन्त्रण स्वीकार नहीं कर सके। तुम्हारी गैरहाजिरी में मैं ओने से मिलने नहीं आया।
मुझे याद है कि मैं एक बार टेप-रेकार्डर तथा कुछ अन्य चीजें लेने उसके पास गया था। बस वही एक अवसर था, जिसे ‘‘मुलाकात’’ नहीं कहा जा सकता। उससे न मिलने का कारण सिर्फ यही था कि मैं व्यस्त था, मैं अपने काम में लगा था, और वह अपने काम में। हम अलग तरह के बने हैं। बस इतना ही। मुझे, प्लीज दोष मत देना कि मैं ओने के सामने पेश नहीं हुआ, जैसा कि तुम चाहती थी, यह मुझसे होगा ही नहीं।
ठीक है। अब, मेरी जान, मैं लिखना बन्द कर रहा हूँ। साम्रोंग पढा़ई में मेरी मदद माँगने आया है। मुझे औरों के लिये भी कुछ करना चाहिये। गुड नाइट। जल्दी ही तुमसे मिलूँगा, डार्लिग।