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बालमन

बालमन

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 मिसेज़ शुक्ला आईं स्कूल में अपनी नन्हीं सी चार साल की बेटी को लेकर, मैडम इसे आपकी स्कूल में पढ़ाना है, देख लीजिए,पढ़ा पाएंगी आप। 

 "हां हां क्यों नहीं, बहुत बच्चे हैं हमारे स्कूल में, यह भी पढ़ेगी।" नहीं मैडम यह नहीं पढ़ पाएगी, उन्होंने कहा।

 "आप पहले से ही ऐसी मानसिकता क्यों बना के आई हैं कि,नहीं पढ़ेगी, पहले ये बताइये आप मुझे ।"

मिसेज़ शुक्ला -"दरअसल बात ये है मैडम, पहले जिस स्कूल में डाला था, पता नहीं वहाँ की टीचर्स का व्यवहार इसके प्रति कैसा था, एक हफ्ते गई स्कूल, फिर स्कूल जाने के नाम से डरने लगी। जब भी स्कूल जाने के लिए तैयार करती हूं, बहुत चीखती-चिल्लाती है, रोने लगती है, हार कर मैंने उस स्कूल से निकाल दूसरे कई स्कूलों में डालने की कोशिश की पर नाकाम रह, जाती ही नहीं है, आप बताएं मैं क्या करूँ।

मैंने कहा - "आप आने दीजिए कुछ रोज यहां, एडमिशन बाद में कराइयेगा। मेरी बात पर विश्वास करिए इसका यहाँ मन लग जायेगा।

वे कुछ आश्वस्त हुईं, थोड़ी खुशी भी चेहरे पर दिखी जो न जाने कब से ग़ायब हो गई थी, बेटी के भविष्य के प्रति माँ की चिंता स्वाभाविक थी। अगले दिन से लेकर आऊंगी कह वे चली गईं।

दूसरे दिन पिंक फ्रॉक में सजी अपनी बिटिया को ले स्कूल में हाज़िर हो गईं। 

मेरे पास आईं, तो बेटी माँ के पीछे छिप रही थी शायद डर के कारण, मैंने उसे बहुत प्यार से बुलाया और कहा पिंक फ्रॉक में तो आज तुम गुड़िया लग रही हो जरा मम्मी के पीछे से निकल सामने तो आओ। उसका हौसला बढ़ा अपनी तारीफ़ सुन, एक चॉकलेट मैंने उसकी ओर बढ़ाई पहले तो वह नहीं ले रही थी फिर अपनी माँ के कहने पर ले ली। 

कक्षा में ले जाकर सारे बच्चों से उसका परिचय कराया, इन सारी प्रक्रिया में वह डरी हुई थी और माँ का हाथ थामे।

"बेटा तुम क्या -क्या जानती हो पढ़ना" ,एक एबीसीडी वाली पुस्तक उसे दी , मैंने कहा मम्मी की गोद में ही बैठकर पढ़ो। उसने सारी पढ़ कर सुना दी ,और धीरे से मेरी गोद में आकर बैठ गई , मैंने उसकी तारीफ की, उसे बहुत अच्छा लगा, चेहरे से खुशी प्रकट होने लगी उसके। फिर तो वह रोज़ आती मेरा हाथ पकड़ लेती, आप ही पढ़ाओ , कुछ दिन मैंने उसे पढ़ाया फिर कहा " बेटा मुझे और भी काम है " तो वह मान गई और दूसरी टीचर्स से पढ़ने लगी, माँ ने भी स्कूल आना छोड़ दिया, अब वह स्कूल रिक्शे से आती और हमेशा खुश रहती। 

उसकी माँ -पापा एक दिन स्कूल आये कहने लगे हम आपके आभारी हैं हम लोगो ने तो सोच लिया था ये अब स्कूल कभी नहीं जाएगी। पता नहीं पहले वाले स्कूल में क्या हुआ था जो ये डर गई थी।

तब मैंने उनसे कहा -" छोटे बच्चों को प्यार ,स्नेह, अपनेपन की जरूरत होती है, जरूरत से ज्यादा सख़्ती उसके अंदर पढ़ाई और स्कूल के प्रति विरक्ति पैदा कर रही थी आपने सही समय पर लाकर , सही निर्णय लिया यहां लाकर।

आज इस बात को बहुत साल हो गए बच्ची बड़ी हो गई हिंदी साहित्य लेकर पढ़ रही है, जहाँ भी उसकी माँ से मुलाकात होती है, कहती हैं मेरी बेटी ने आपके कारण स्कूल जाना सीखा , उनकी बेटी को देख मेरा मन बहुत खुश हो जाता है।



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