घमंड का नाश
घमंड का नाश
घमंड का नाश यह कहानी पुराणों से ली गई है।। एक समय की बात है। नारद मुनि अपने आप को भगवान विष्णु का परम भक्त मानते थे। यही बात वे सभी से कहते फिरते थे। जब इस बात का पता भगवान विष्णु को चला तब उन्होंने नारद मुनि को बुलाया और उनसे पूछा-"मैंने सुना है कि आप अपने आप को मेरा परम भक्त बता रहे हो।" यह सुनकर नारद जी ने कहा"भगवन कया यह सही नहीं है। मैं सदैव आपका(नारायण शब्द)का जाप करता हूँ।। इस कारण मैं आपका सबसे बड़ा भक्त हूँ।" इस पर भगवान उससे कहते कि भूलोक पर मेरा सबसे बड़ा भक्त रहता है। यह बात सूनकर नारद मुनि पृथ्वी लोक भागे और उस किसान के घर पहुंचे जिसका पता भगवान विष्णु ने बताया था। उन्होंने उस घर के पिछवाडी खिडक़ी से झांककर देखा कि किसान किस प्रकार की भक्ति भगवान के प्रति रखता है। सारा दिन उसे देखने पर पता चला कि वह भगवान का नाम दिन में तीन बार ही लेता था। यही बात भगवान से बताने पर उन्होंने नारद से परीक्षा देने को कहा। नारद इसके लिए तैयार हो जाते है।। तब भगवान विष्णु ने नारद के सर पर पांच घड़े रखकर मंदिर के तीन परिक्रमा करने के लिए कहा। तब नारद तैयार होकर तीन परिक्रमा कर भगवान विष्णु के पास आते है। उस समय भगवान नारद से पूछते है कि तुमने मेरा नाम कितनी बार लिया, तब नारद ने कहा- "भगवान मेरा सारा ध्यान घड़ों पर ही था।। इस कारण मैंने तुम्हारा नाम एक बार भी नहीं लिया। तब भगवान विष्णु ने नारद को समझाते हुए कहा कि किसान को इतने सारे काम व समस्या होने पर भी वह भगवान को तीन बार याद करता है। तुम तो थोड़ी देर की समस्या को भी सहन नहीं कर सके और एक बार भी मेरा नाम नहीं लिया। तो तुम कैसे मेरे बड़े भक्त बने। इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने आप पर कभी घमंड नहीं करना चाहिए।