गुड बाय
गुड बाय
लैपटॉप बैग ले लिया, मोबाइल को जेब में डाल लिया, जूते पहने, हमेशा की तरह फीते खुले ही थे! मैं बस निकलने को ही था, कि ध्यान आया, वापस जाकर शर्ट चेंज की और काली वाली शर्ट पहन ली, उसने कहा था कभी -
"काली शर्ट में तुम्हें देखना, पता है कैसा लगता है?"
"नहीं, बताओ"
"जैसे स्याह आसमान में चमकता कोई सितारा हो, जिसे में घंटों निहार सकती हूँ, और वो मुझे देख बस टिमटिमाता रहता है"
पार्क के बाहर गाड़ी पार्क कर, मैं अंदर दाखिल हुआ!
धूप का रंग पीला से अब लाल हो चुका था! पेड़ों के साए दिन भर की थकान के बाद जमीन पे पसर गए थे!
कोने की वो बेंच उबासियाँ ले रही थी, मैंने खुद को वहीं टिका दिया! आज बस सब खत्म कर दूँगा, यूँ घुटने का मतलब ही क्या है, आज तो बस कह देना है! खुद को आने वाले पल के लिए तैयार कर रहा था, जाने कितनी बार पहले भी कर चुका था! हर बार वो आती थी और बस ....
वो होता है न, आप रात भर पढ़ो और एग्ज़ाम में क्वेश्चन सारे सिलेबस के बाहर से, सारी तैयारी हवा हो जाती है! वो मेरे सिलेबस के बाहर ही थी! पर आखिर कब तक चलेगा यूँ, मैंने उसको बता तो दिया है निशा के बारे में, फिर भी वो कुछ पूछती ही नहीं, आती है मिलती है पर कुछ कहती नहीं, मैं बस इंतजार करता हूँ कभी तो कुछ पूछे और मैं कह दूँ...
कह दूँ मैं की अब उसके कॉल का वेट नहीं करता, सुबह उठकर आने वाला पहला ख्याल अब उसका नहीं! चाय में अब उसकी उंगलियों में फंसी चमम्च के नाचने की परवाह नहीं! भूल चुका हूँ सर पे हाथ फेरना उसका, उसकी जुल्फों की छलनी से छनकर आती धूप का स्वाद भी भूल चुका हूँ!
किचन स्लैब के नजदीक मसाले को उछालती वो, उसकी कमर पे काटी मेरी चिकोटी, और फिर पूरे घर में उसका मेरे पीछे पीछे घूमना, तकियों की बमबारी, महसूस करता हूँ क्या.....नहीं...नहीं... नहीं महसूस करता मैं जरा भी!
बेंच अनायास ही चुभने लगी है, शायद इंतजार की कीलें हैं!
उठकर थोड़ा आगे बढ़ गया, सूरज धीरे धीरे पेड़ों की ओट में जा रहा था!
मरीना बीच की वो शाम, सूरज जब समंदर पीने नीचे उतर रहा था! हम दोनों लहरों के संग छुआ छुई खेल रहे थे! और फिर जब वो ऊंची सी लहर पीछे से आ उसकी कमर को छू गयी थी!
हहहहहह
उसकी वो आँखें, क्या मुझे कुछ याद है...नहीं...नहीं यार आज तो बस खत्म करना है किस्सा! कहूँगा एक गुड बाय और बस....निशा...हाँ वही चाहिए मुझे...!
गेट से वो अंदर दाखिल हुई, पीली साड़ी मेरी फेवरिट पहन कर आई है! वो मुझे अब भी कितना प्यार करती है न! कितनी मासूम सी लग रही है, जैसे पल्लू में धूप लायी हो... हर बार मेरे बुलाने पर आ जाती है, बिना कुछ कहे ही, जबकि मैंने ये तक बता दिया है कि मैं और निशा फिजिकल भी हो चुके है, नहीं... इतना प्यार मुझे कोई नहीं कर सकता! इस पगली को तो मालूम भी नहीं, मैं हर बार इसे बाय कहने को बुलाता हूँ, वो अलग बात है कि कह नहीं पाता।
इसको बाय कहना ....न... नहीं... सब ठीक ही कर लेता हूँ, निशा को कह दूँगा, कि अब हमारे बीच सब ठीक हो गया है, इसे कह देता हूँ निशा को छोड़ दिया! हाँ... यही सही है...
"हाई"
"हाई"
"सॉरी मुझे देर हो गई"
"कोई बात नहीं"
"वो दरअसल मैं अरुण के साथ थी तो देर हो गई, एक्चुअली मैं तुम्हें यही बताने आयी हूँ, मैं अरुण के साथ मूव कर रही हूँ, आखिर कब तक तुम्हारे सर पर पड़ी रहूँगी! तुम तो मुझे पहले ही छोड़ चुके हो, मैं ही नहीं समझती थी अब तक, सोचती थी शायद फिर से सब कुछ ठीक... पागल हूँ मैं, चलो फाइनली तुम्हें आजाद कर रही हूँ, अब तुम्हें मेरा कॉल उठाने की जरूरत नहीं होगी, सुबह सुबह तुम्हें उठाऊँगी भी नहीं, चलो टेक केअर..."
वो मेरे गले लगी, जाने को हुई फिर मुड़ी...
"राज"
"हाँ"
"गुड बाय"...
शाम धीरे धीरे गेट से बाहर चली गयी! उस पार्क में अब मेरे साथ बैठी थी, रात, लंबी ...काली ...स्याह रात... जिसपर उजले चॉक से लिख दिया था उसने...
गुड बाय...