Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

भूखे भेड़िये

भूखे भेड़िये

11 mins
7.9K


रात की ड्यूटी बहुत थका देती है, बदन का पोर–पोर दुख रहा है सोचते हुए रेशमा ने अपना बेल्ट ठीक किया और डंडे को हवा में लहराते हुए चल पड़ी बस स्टॉप की ओर। सामने की संकरी गली को पार कर वह मुख्य सड़क पर आ गई, पौ फटने को थी, सुबह की अलमस्त हवाएं उसे बड़ी भली लग रही थी। रात बापू की चक-चक में खाने का डिब्बा भी घर भूल आई थी, दस रुपये का वड़ा पाव लेकर खाया था और फिर रात भर का जागरण, जरा सा भी खटका होता तो मुस्तैद हो जाना पड़ता। बापू ने लाख समझाया रेशमा यह नौकरी औरतों के बस की बात नहीं पर वह ही अड़ गई थी। अब उसे किसी की सुनने की आदत नहीं रही, घरों में बर्तन–कपड़ा करना उसे जरा भी पसंद नहीं और खाना बनाना उफ! कैसे औरतें सारा दिन रसोई में पसीने से लथपथ रोटियाँ सेंक लेती हैं छी... यह भी कोई काम हुआ। तभी प्रीतम ने बताया था सिक्यूरिटी गार्ड की औरतों के लिये जगह निकली है, तू इंटरव्यू दे आ, बस यह नौकरी उसे मिलनी थी और मिल गई। जब वर्दी पहन कर तैयार होती है उसमें मर्दानगी आ जाती है, इसमें लोग भरोसा तो करते हैं और सम्मान भी मिलता है। मनचाही नौकरी तो उसने पा ली पर मनचाहा दूल्हा नहीं मिला... यही सब सोचते हुए रेशमा बस स्टॉप पर आई तो देखा वह पागल भिखारिन ढीला-ढाला पुराना सा शर्ट-पैंट पहने आज भी सर खुजाते हुए वहाँ पर खड़ी है, रेशमा को देखकर पेट की ओर इशारा करने लगी, मानो कहना चाह रही है भूख लगी है, रेशमा को उसकी इस अदा पर हँसी आ गई, उसने महसूस किया उसे भी भूख लगी है, उसने झट सामने की चाय की टपरी से दो गिलास चाय और बिस्कुट का पुड़ा लिया, पगली ने लपक कर रेशमा के हाथ से चाय ले ली और बिस्कुट डुबो-डुबो कर खाने लगी।

रेशमा ने चाय पीते हुए उससे पूछा “क्या नाम है रे तेरा?”

“सूजी” कुछ शरमाते हुए भिखारिन बोली।

रेशमा मन ही मन सोच रही थी भला यह भी कोई नाम हुआ सूजी, अब शायद आटा और मैदा भी लोगों के नाम होने लगेंगे, सोचते ही उसे हँसी आ गई, इतने में बस आ गई, रेशमा बस पर सवार हो गई, खिड़की से उसने देखा सूजी हाथ हिला-हिला कर उसे विदा कर रही थी। रेशमा ने सोचा इतनी अच्छी शक्ल-सूरत है इसकी, यूँ सड़कों पर घूम रही है न जाने किस गम की मारी है।

सूजी के बारे में सोचते उसे अपने भी सारे गम याद आ गये, अभी कुल जमा चौबीस की है पर यूँ लगता है पचास वर्ष की जिन्दगी देख ली हो उसने .....शराबी पिता, माँ को आँसू के अलावा कुछ न दे सका, और माँ के हाथ लोगों के घरों में बर्तन-कपड़े कर-कर त्वचा रोग के शिकार हो गये। जिस दिन पिता ने माँ का गला दबाना चाहा वह दोनों बेटियों को लेकर अलग हो गई। ठाणे में पहाड़ियों पर टीन की छत डालकर झोपड़ी बनाई थी तीनों माँ-बेटियाँ ने और किसी तरह वहाँ गुजारा कर रहे थे, माँ का तेज-तर्रार स्वभाव था जो शोहदों को उनके पास फटकने भी न देता, अभी कुछ ही दिन गुजरे थे कि पहाड़ ने किस जन्म का बैर निकाला उसकी थरथराहट आज भी महसूस करती है रेशमा। जब लैंड स्लाइड हुई थी पहाड़ गर्जना कर फटा और उसके ऊपर के सारे पत्थर तेजी से सरक कर गिरने लगे, उनकी झोपड़ी कहाँ टिकती इस प्रलय के सामने, माँ ने उसे सौदा लाने बाहर भेजा था, आकर देखती है तो पत्थरों के बीच उसकी झोपड़ी का कोई पता ठिकाना नहीं और एक-एक पत्थर और टीन जब हटाये गये तब मिले माँ और बहन के निष्प्राण शरीर। रेशमा इस दुनिया में अकेली हो गई थी, रो-रो कर उसकी आँखें सूज गई थी, तब माँ की सहेली सुगंधा उसे साथ ले गई। वह भी माँ की तरह लोगों के घरों में काम करती थी, सुगंधा की छोटी सी खोली में उसका बेटा और पति भी रहता था, उसका बेटा खा जाने वाली नजरों से जब उसे देखता तो रेशमा भीतर तक काँप जाती थी। रमेश उस बाज की तरह था जो चिड़िया को दबोचने की फिराक में होता है। एक बार उसे अवसर मिल ही गया और माँ-पिता के काम पर जाने के बाद उसने धर दबोचा रेशमा को। वह चीखी-चिल्लाई पर किसी को भी उसकी आवाज सुनने की फुर्सत नहीं थी। मात्र चौदह वर्ष की उम्र में उसने अपना कौमार्य खो दिया, जब रो-रो कर उसने यह घटना सुगंधा को सुनाई, तो उसने मुँह बंद रखने को कहा। सुगंधा को इसके लिये एक ही उपाय सूझा उसने नाबालिग रेशमा की शादी रमेश से करवा दी। मांग में सिंदूर भर वह एक ऐसे नाकारा आदमी की बीवी बन गई जो काम के नाम पर दिन भर जुआ खेलता था। दुनिया ने इतने सारे सबक दे दिये थे कि वह चौथी कक्षा से ज्यादा पढ़ नहीं पाई थी, पर अब वह कुछ ज्यादा ही आक्रमक हो गई थी, सीधी-सादी लड़कियों को ही ज्यादा दुख उठाने पड़ते हैं, वह जान गई थी। रमेश की गिरफ्त से वह निकलना चाहती थी, जो शादी इस तरह जबरदस्ती की गई हो वह उसे शादी नहीं मानती थी। एक बार न जाने कहाँ से पिता को उसकी याद आ गई वे उसे खोजते हुए आये, रेशमा सब कुछ छोड़कर सुगंधा को बिन बताये उनके साथ चूना भट्टी आ गई। पिता ने जो दूसरी औरत रखी थी वह उन्हें छोड़ कर चली गई थी। घर का काम रेशमा ने सम्हाल लिया साथ ही पास की एक फैक्टरी में पैकेजिंग का काम करने लगी, प्रीतम वहीं पर ड्राइवर था। वह रेशमा पर जान छिड़कता था। उसी की पहचान से सिक्यूरिटी गार्ड की नौकरी मिली थी। और आज वह सारे गमों को दरकिनार कर अपनी शर्तों पर जीवन जी रही थी।

जब घर पहुँची तो देखा बापू रात ज्यादा दारू पीने की वजह से अभी भी निढाल पड़ा है। वह हाथ-मुँह धो कुछ खाकर सो जाना चाहती थी, देखती क्या है प्रीतम दरवाजे पर खड़ा है बोला “रेशमा भूख लगी है कुछ खिला दे ?”

“अरे अभी काम पर से आई हूँ, कुछ पकाया भी नहीं और तू आ गया।”

“इसीलिये कहता हूँ शादी कर ले मुझसे यह काम-वाम सब छुड़वा दूँगा, अरे रानी बना कर रखूँगा तुझे।”

“तेरे जैसे कई देखे हैं,जो कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं।”

रेशमा ने ऊपरी तौर पर कह तो दिया पर वह जानती थी प्रीतम के प्रेम को, क्या होता है यह प्रेम या फिर होता ही नहीं, इसी फेरे में पड़ी थी वह। अब तक मर्द के रूप में कई भूखे भेड़ियों को देख चुकी थी, सहज ही किसी पर विश्वास नहीं होता। प्रीतम की कुछ परिक्षाएं बाकी थी। रेशमा ने तुरंत भाजी-रोटी बना कर उसे परोसी। कई बार दुनिया इतनी बड़ी और भयावह लगती तब किसी का साथ होना बहुत ही जरूरी लगता है फिर प्रीतम क्या बुरा है, पर अब तक उसने उसके समक्ष कुछ भी स्वीकारा नहीं था।

जिन्दगी अच्छी हो या बुरी जीनी तो पड़ती ही है, फिर रोते–बिसूरते रहने की बजाय आने वाली दुर्घटनाओं का दो-दो हाथ कर सामना करना बेहतर है... ड्यूटी से आते–जाते वक्त कई बार सूजी दिखी, कुछ बातें भी की उससे, पर वह खुद के बारे में कुछ नहीं बताती थी पर मदर मेरी चर्च में अकसर कुछ बुदबुदाते हुए खड़ी रहती थी... शायद कोई प्रार्थना करती हो। रेशमा की उत्सुकता उसके विषय में बढ़ती जा रही आखिर एक दिन बड़ा सा लम्बा फ्रॉक पहने हुए एक क्रिश्चियन अधेड़ महिला से सूजी के बारे में पूछ ही लिया, उसने बताया की वह मंदबुद्धि ही पैदा हुई थी, पिता ने माँ को छोड़ दिया था... माँ उसका और उसके भाई का पालन पोषण कर रही थी। सूजी और उसकी माँ अकसर साथ ही चर्च आते थे। एक दिन सूजी की माँ को बस ने कुचल कर मार दिया, भाई ने अपनी शादी होने के बाद सूजी को घर से बाहर निकाल दिया, अब वह सड़कों पर भीख माँगती फिरती है और चर्च आकर माँ की याद कर लेती है।

रेशमा को सूजी की कहानी अपनी सी लगी, गम के शिकंजे में कसी एक विक्षिप्त युवती भूखे भेड़ियों की इस दुनिया में कैसे रहती है, अभी यह बात मन में आई ही थी कि... उस रात यह घटना रेशमा ने अपनी आँखों से देख ली, रात के लगभग दस बजे थे वह डंडा घुमाते, गुनगुनाते हुए ड्यूटी पर जा रही थी तो अचानक किसी की बहुत दबी हुई चीख सुनाई दी, रेशमा मुस्तैद हो गई। चारों ओर देखा उसे महसूस हुआ आवाज सामने वाली अधबनी बिल्डिंग से आ रही है। वह उस ओर दौड़ी देखती क्या है चार-पांच लड़के किसी के साथ जबरदस्ती कर रहे हैं... वह अँधेरे में ठीक से देख नहीं पा रही थी, उसने अपने मोबाइल की रोशनी में देखा, कोई लड़की जमीन पर पड़ी थी और चार लड़के उसे चारों बाजू से पकड़े हुए थे, और एक लड़का अपने पेंट की बटने खोल रहा था। रेशमा ने देखा तो उसकी नस-नस में सनसनाहट होने लगी, कान की लवें गर्म हो गई, रक्त उबल-उबल कर उसके मस्तिष्क की ओर जाने लगा। वह शेरनी सी दहाड़ी और पेंट उतारने वाले लड़के के समक्ष खड़ी हो गई। डंडे से सीधा सर पर प्रहार किया वह लड़का संतुलन खो कर गिर गया उसका सर फूट गया था बाकी के लड़कों की तरफ डंडा घुमाया ही था कि वे भाग खड़े हुए, रेशमा ने हाथ का डंडा फेंका और जोर से चिल्लाई- “स्साले भूखे भेड़ियों कहाँ भागते हो, एक-एक को देख लूँगी।”

उसने मुड़ कर लड़की की ओर देखा वह सूजी थी, डर से काँपते हुए खड़ी थी। उसके मुँह पर उन कमीनों ने कपड़ा बांध दिया था, उसकी चीख जो रेशमा ने सुनी थी शायद मुँह पर कपड़ा बाँधते वक्त वह चिल्लाई थी। थर-थर काँपती हुई सूजी को उसने अपनी बाँहों में भर लिया और उसी क्षण मन ही मन  एक निर्णय ले लिया कि अब सूजी को वह दर-दर भटकने नहीं देगी, अपने घर ले जायेगी। सूजी का हाथ पकड़े वह पास की पुलिस चौकी में गई, रिपोर्ट दर्ज करवाई, पुलिस ने घायल लड़के को हिरासत में लिया आधी रात ऐसे ही निकल गई, ड्यूटी पर देर से पहुँची......साथ में सूजी थी।

दूसरे दिन वह सूजी को लेकर घर पहुँची पर अब भी वह सूजी को लेकर दुविधा में थी, क्या वह उसे अपने घर में सुरक्षित रख पायेगी। सबसे ज्यादा डर तो उसे अपने बापू का था। शराब के नशे में उसने एक बार उस पर, खुद की बेटी पर भी हाथ डालने की कोशिश की थी। तब उसने बापू को ऐसा सबक सिखाया था की वह आज भी रेशमा से आँखें नहीं मिला पाता। घर आकर उसने बापू से कह दिया वह घर बदल रही है। प्रीतम के घर के पास ही एक खोली थी, वह उसमें सूजी के साथ रहने चली गई। आजकल के लड़कों का क्या बूढ़ों का भी कोई भरोसा नहीं, ऐसे में प्रीतम जैसा कोई मिल जाये तो बड़े सौभाग्य की बात होती है,वह प्रीतम के बारे में सोचते ही गर्व से भर जाती है। कितना विश्वास करने लगी थी प्रीतम पर वह। सूजी को जब हॉस्पिटल ले गई पता चला वह तीन माह की गर्भवती है, डॉक्टर ने कहा सफाई में सूजी की जान को खतरा है, सो बच्चा रखना ही पड़ेगा। एक और जिम्मेदारी रेशमा पर आन पड़ी थी, नाजुक नर्म शिशु कैसा होगा? क्या वह उसका पालन-पोषण कर पायेगी ...तमाम उलझनों से घिरी रेशमा असमय ही अपनी उम्र से बड़ी होती जा रही थी और सूजी ने अपनी माँ के बाद किसी से प्रेम किया होगा तो वह रेशमा से।

रेशमा ने सूजी को सख्त हिदायत दी थी कि वह दरवाजा बंद रखे, जब वह आयेगी उसे आवाज देगी दरवाजा तभी खुलेगा। सूजी मंदबुद्धि थी पर बहुत सी बातें अच्छी तरह समझ जाती थी, घर का थोड़ा-बहुत काम भी कर लेती थी ...निश्चित ही रेशमा के कारण सूजी को सहारा मिला गया था और रेशमा की अकेली दुनिया में किसी पाक दिल ने प्रवेश किया था। स्वार्थ के इस युग में पाक दिल बचे ही कितने हैं, सारे दिमाग वाले तो बिना मतलब काम ही नहीं करते ...काश की दुनिया में कुछ मंदबुद्धि और बढ़ जायें तभी स्वार्थ कुछ कम होगा ...

आज ड्यूटी पर पेट में बड़ा दर्द उठा, शायद सुबह जो चायनीज मंगा कर खायी थी, उसमें मिलावट रही होगी। उसने प्रभा को फोन कर उसकी जगह काम करने को बुलाया और खुद चल पड़ी घर की ओर, ऐसे तो वह कभी छुट्टी नहीं लेती पर एक दिन की छुट्टी तो बनती है ....यदि कल पेट दर्द ठीक लगा तो सूजी को लेकर जुहू बीच घूमने चली जायेगी। मेडिकल स्टोर से उसने पेट दर्द की दवाई ली और घर की ओर कदम बढ़ाने लगी देखती क्या है की दरवाजा अधखुला है और अंदर से छीना-झपटी की आवाजें आ रही हैं, वह भीतर गई तो अवाक् रह गई प्रीतम सूजी से जबरदस्ती करने में लगा हुआ है। उसकी आँखों को मानो विश्वास ही नहीं हुआ वह पलकें झपका कर एक बार और विश्वास कर लेना चाहती थी कि वह प्रीतम ही है। .....वह प्रीतम ही था, क्रोध और ग्लानि से रेशमा की आँखें लाल हो गई उसने प्रीतम की कनपटी पर जोरदार थप्पड़ मारा, प्रीतम हाथ जोड़ कर कह रहा था “माफ कर दे रेशमा”।

पर रेशमा ने मानो कुछ सुना ही नहीं, उस पर खून सवार था। पास की लाठी उठा उस पर दनादन वार करने शुरू कर दिये। उस दिन प्रीतम भागता नहीं तो रेशमा उसकी जान ही ले लेती। उसके जाने के बाद रेशमा की आँखों का क्रोध दर्द का लावा बन गया, दोनों आँखें बहने लगी वह फूट-फूट कर रो पड़ी, सूजी उसके कंधे पर हाथ रखे खड़ी थी। रेशमा की आँखें पानी नहीं खून बहा रहीं थीं। रोते-रोते वह चीखी “साला तू भी भूखा भेड़िया निकला।”

प्रीतम पास होने से पहले ही फेल हो चुका था।

 

 


Rate this content
Log in