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एक चाँद एक मैं

एक चाँद एक मैं

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वो देखो, आसमान में खिलते हुए चाँद को ! कितना शांत और सौम्य लग रहा है न ! टकटकी बांधकर देखता हुआ जैसे कुछ कह रहा हो मुझसे लेकिन क्या ? क्या कहना चाहते हो तुम ?

मगर खामोशी से ताकता चाँद सिर्फ मुस्कुरा रहा है। मैं उसकी निगाहों से आजाद होकर कमरे में आ गई हूँ। बिस्तर की सलवटों की ठीक करते खिड़की पर नजर गई तो देखा, चाँद वहाँ से झुरमुटों की ओट से छिपकर मुझे देख रहा है। "बदमाश, कुछ बताते भी नहीं और कहना भी चाहते हो ! जाओ मुझे नहीं बात करनी तुमसे !" और खिड़की के पर्दे बन्द हो गए।

न जाने क्यों कुछ शब्द, कुछ बातें गले मे फंसने लगी। "क्या सचमुच चाँद मुझसे ही बात करने आया है ! नहीं, ये चाँद मेरा नहीं, उस दिन कहा तो था इसने, मुझ पर तुम अपना हक मत जताओ, मैं चांँदनी का अधिकार हूँ। तुम मुझे देख कर रीझ सकती हो मगर पा नही सकती। तुम्हें दिखता हूँ, तुम्हारी छत पर उतर आता हूँ , क्या इतना काफी नहीं ?"

"तो मुझे देखकर लुका छिपी करना, मेरी आँखों में उतर जाना.... क्या था वो ?"

"आकर्षण", और उस दिन मुझसे नाराज होकर अमावस्या के पीछे चला गया था चाँद।

"फिर, आज दुबारा क्यों मेरी आँखों में उतरना चाहता है ? क्या नमी की तलाश में या फिर.... या फिर कोई नया आकर्षण ! .... जो भी हो मगर ये चाँद मेरा नहीं !", कहते हुए अपनी हथेलियों को यूँ ही खोल लिया मैंने। आह.... एक चाँद यहाँ भी मुझे देखकर मुस्कुरा रहा था। याद आया...उस दिन उस चाँद को देखते हुए अपने हाथों में चाँद को रचा लिया था। आँखों पर हाथ रखकर चाँद को महसूस करने की कोशिश की तो एक महक नासिका द्वार से हृदय तक उतर गई। बन्द आँखों के आगे चाँद फिर मुस्कुरा उठा.... "देखो, तुम्हारे हृदय में प्रवेश कर लिया मैंने।"

घबरा कर आँख खोल दी मैंने । स्नानगृह में जाकर मुँह धो ही रही थी कि आईने में एक चाँद फिर नज़र आने लगा हैरान सी मैं उसे देखे जा रही थी..." आईने में मेरी जगह चाँद कैसे !"

"क्योंकि अब तुम, तुम नहीं हो मुझ में बदल गई हो !" शरारत से मुस्कुरा उठा चाँद। मुझ पर अपने आधिपत्य का गर्व उसकी आँखों मे साफ दिख रहा था।

"मैं तुम में क्यों बदल गई ?", उसी से ये सवाल कर बैठी।

"क्योंकि तुम मुझसे प्यार करती हो, ये मुहब्बत का अंजाम है हमारी !" कहते हुए चाँद की मुस्कराहट और गहरी हो गई।

" हमारी ?... सच में ?"

" हाँ, एकदम सच', चाँद और करीब आ गया था।

" तो तुम मुझमें क्यों नहीं बदले ?", बिना सोचे पूछ बैठी मैं उससे।

अचानक चाँद नाराज हो गया और आईने में फिर से मैं अपने अक्स के साथ अकेले खड़ी थी। उधर चाँद अपनी चाँदनी के साथ आकाश में तीव्रता से चमक रहा था।


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