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तुम साथ हो, ना हो क्या फर्क है

तुम साथ हो, ना हो क्या फर्क है

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धीमी आवाज में कोई एक गीत बज रहा था रेडियो पे,

"तुम साथ हो या ना हो क्या फर्क है,

बेदर्द थी ज़िन्दगी बेदर्द है"

गाने के ये लाइन सुनते ही हाथ में शराब का गिलास लिए विशाल भावुक सा हो गया।

काफी दिनों बाद उसने कुछ ऐसा सुना जो की उसके हालत से बिल्कुल मिलता था। पिछली सारी पुरानी यादें फिर ताजा हो गयी। वैसे विशाल की शराब पीने की आदत मेघा से मिलने से पहले ही थी। बचपन में ही माता-पिता अलग हो गए। दोनों में से किसी ने भी विशाल को अपने पास नहीं रखा न ही उसकी माँ ने और न ही उसके पिता। उस कच्ची उम्र में उसके दादा-दादी ही उसका सहारा बने और अपने पास रखा। स्कूल में दोस्त, राह चलते लोग और गली की चाची किसी ने कसर न छोड़ी ताने देने में।

उसका पूरा बचपन लोगों के ताने सुनते सुनते गुजर गया, खुद से अब नफरत सी होने लगी थी। एक समय ऐसा आया की उसने खुद ही को खत्म करने की सोच ली थी मगर अपने बूढ़े दादा-दादी का ख्याल आया तो कुछ न कर पाया। बचपन में जो उसके सहारे बने थे अब उनका सहारा बनने का वक़्त जो था और दुनिया से तंग विशाल के ग़म भुलाने में शराब उसका सहारा बना। विशाल अपने शहर के एक आई टी कंपनी में जॉब करता था। वहां ऑफिस में उसकी किसी से ज्यादा दोस्ती नहीं थी। अकेले रहना उसकी आदत बन चुकी थी। दिन भर ऑफिस में काम करता और देर रात तक किसी क्लब या बार में जाम भरता। वो जिंदगी जी नहीं रहा था बल्कि काट रहा था। उसके दादा-दादी उसे इस हाल में देखते तो बहुत दुखी होते मगर वो भी उससे कुछ कह नहीं पाते पर शायद उसका ये अकेलापन बहुत जल्द खत्म होने वाला था। उसके ऑफिस में एक नयी एम्प्लॉई आयी थी जिसका नाम "मेघा" था और मेघा, विशाल के ही टीम में जगह मिली। मेघा के आने के बाद ऑफिस में कुछ अलग ही रौनक और माहौल था अगर किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा तो वो था विशाल।

मेघा ने ये नोटिस किया कि कंपनी के सारे एम्प्लॉई उसके आगे पीछे घूमते मगर एक विशाल ही था जो उससे दूर रहता। उसकी ये खूबी मेघा को भा गयी, अब वो किसी भी तरह विशाल से बात करना चाहती थी। शायद विशाल को भी इस बात का एहसास हो गया था कि मेघा उसे पसंद करने लगी है। पर विशाल ये भी जनता था कि आखिर में लोग तनहा ही छोड़ जाते हैं इसीलिए उसने मेघा से दूर रहना ही बेहतर समझा। मगर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। एक बिज़नेस ट्रिप के लिए मेघा, विशाल और उनके एक साथी रोहित को पुणे जाने का ऑफर मिला। मेघा तो बहुत खुश थी कि उसे विशाल के साथ जाने का मौका मिल रहा है। सुबह कि फ्लाइट से वे तीनों निकले और दोपहर होते होते पहुँच गए, कंपनी ने उनके लिए अच्छी फाइव स्टार होटल बुक कर रखी थी। विशाल और रोहित के लिए एक कमरा बुक था और मेघा के लिए एक अलग कमरा। दोपहर को सबने आराम किया, मगर शाम को जब मेघा विशाल को ढूंढने उसके कमरे आयी तो विशाल गायब था। उसने

रोहित से पूछा कि विशाल कहाँ है ? रोहित ने बताया कि वो एक बहुत बड़ा शराबी है, होगा किसी बार या क्लब में। मेघा ने होटल के रिसेप्शन में जाकर पता किया कि पास में कोई बार या क्लब है तो पता चला कि पास ही में एक बार है। मेघा ने रिसेप्शनिस्ट को धन्यवाद

किया और विशाल कि खोज में निकल पड़ी। बार पहुंचते ही देखा कि सामने कि टेबल पर विशाल नशे में धुत्त पड़ा था। मेघा ने रोहित को कॉल करके बुलाया और उसकी मदद से विशाल को होटल तक लेकर आयी। कमरे में पहुंचने के बाद मेघा ने उसे बिस्तर पर लिटाया, ज्यूँ ही जाने को मुड़ी विशाल ने मेघा का हाथ पकड़ लिया और बड़बड़ाने लगा कि मुझे छोड़ कर मत जाओ प्लीज मुझे छोड़ कर मत जाओ। मेघा ने उसे किसी तरह सुला कर अपने कमरे चली गयी। अगली सुबह उनकी क्लाइंट से मीटिंग थी, मीटिंग बहुत ही अच्छे से हुई। मेघा ने बहुत ही अच्छा प्रेजेंटेशन दिया। मीटिंग के खत्म होते ही विशाल ने सवालों के ढ़ेर लगा दिए रोहित के सामने, वो कुछ जवाब दे पता कि इतने में मेघा आ गयी।

मेघा ने रोहित कि तरफ इशारा किया तो रोहित ने दोनों को अकेला छोड़ दिया। विशाल मेघा से नजरे नहीं मिला पा रहा था। बहुत हिम्मत करके आख़िरकार कुछ निकला तो वो था सॉरी।

अबकी बार दोनों कि नजरें मिली एक दूसरे से और खो से गए। ये पहली दफा था जब विशाल किसी से नजरें मिला रहा था। मेघा ने कहा एक शर्त पर माफ़ी मिलेगी, तुम्हे मेरे साथ एक कप कॉफ़ी पीनी पड़ेगी। विशाल को सोचकर खुद पर हंसी आ गयी कि अब शराब पीने वाला कॉफ़ी पियेगा मगर वो चुप रहा। शाम को दोनों कॉफ़ी शॉप में मिले ये उनकी बिज़नेस ट्रिप का आखरी दिन था, मेघा बहुत ही सज-धज के आयी थी और बहुत ही खूबसूरत लग रही थी, एक पल के लिए तो विशाल कि आँखे भी खुली कि खुली रह गयी थी। विशाल उसकी तारीफ़ किये बिना नहीं रह पाया, उधर मेघा भी थोड़ा शर्मा गयी। पहली बार ऐसा हुआ कि विशाल किसी के साथ कॉफ़ी पी रहा था और बहुत खुश भी लग रहा था, शायद इस खुशी के पीछे का राज मेघा ही थी। मेघा तो उसे बहुत पहले से पसंद थी मगर ज़िंदगी में वो इतना तन्हा रहा था कि उसे डर था कहीं मेघा भी उसे तन्हा ना छोड़ दे।

कॉफ़ी पीते पीते अचानक दोनों कि नजरें मिलती और दोनों मुस्कुरा देते। आख़िरकार मेघा ने अपने दिल कि बात विशाल के सामने रख दी। चाहे विशाल कितना भी सख्त क्यूँ न हो मगर था तो इंसान, और वो भी प्यार का भूखा, जिसे न किसी कि दोस्ती का प्यार मिला न ही माता-पिता का। उस पल उसे लगा कि उसे दुनिया के सारी ख़ुशी मिल गयी हो जैसे। वो कुछ कह पाता उससे पहले ही मेघा ने अपने होंठ विशाल के होंठो पर रख दिए। मानो पिछले सारे ग़म उन चंद लम्हो में ही विशाल भूल गया। विशाल कि ना-मनाही ही इस बात को साबित करने के लिए काफी थी कि मेघा को वो भी मन ही मन चाहता था। ये पुणे कि ट्रिप विशाल के लिए ज़िंदगी का एक हसीन यादगार लम्हा था। मेघा के आने के बाद अब विशाल कि ज़िंदगी में शराब कि कोई जगह न रही। आखिर होती भी क्यूँ अब विशाल तन्हा जो नहीं रहा।

अब विशाल मुस्कुराने लगा था, खुश रहने लगा था। दुनिया कि बातों का अब उसपर कोई असर नहीं होता। ये सब देख उसके दादा-दादी भी बहुत खुश थे। दोनों अब साथ में ऑफिस जाते, घूमने, शॉपिंग सब साथ में होता। विशाल ने मेघा को अपने दादा-दादी से भी मिलवाया।

सब ठीक चल रहा था मगर वो कहते हैं ना कि पहला प्यार आखिर पहला ही होता है, उस पहले प्यार के आगे आपके चंद प्यार के लम्हे बहुत छोटे होते हैं। मेघा ने कभी अपने बारे में पूरी बात विशाल को नहीं बताई थी। कभी कॉलेज के दिनों में मेघा को किसी से प्यार था,

बेइंतहा प्यार था। मगर उसके बॉयफ्रेंड ने उस रिश्ते को गंभीरता से नहीं लिया। अब इतने सालों बाद वो लौट कर मेघा कि ज़िंदगी में आया था तो मेघा ने विशाल के जज्बातों को उसके साथ बिताये लम्हों को चंद लम्हों में भुला दिया। अगली सुबह जब मेघा विशाल से मिली तो उसने सारी बात विशाल को बताई और कहा कि वो उसके बॉयफ्रेंड के साथ दूसरे शहर शिफ्ट हो रही है। विशाल को जैसे बहुत बड़ा सदमा लगा उसे लगा कि खुदा ने उससे सारा कुछ छीनने के लिए ही बस थोड़े से हसीन ख्वाब दिखाए थे। आँखों में आंसू और होंठो पे सिर्फ कुछ शब्द थे " तुम साथ हो या ना हो क्या फर्क है, बेदर्द थी जिंदगी बेदर्द है"। इतना कहकर वो वहां से चला और उसने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। आखिर में फिर उसका कोई सहारा बना तो बस शराब। फिर से वो खो गया उन शराब कि गलियों में जिन्हे वो किसी कि चाहत में तन्हा छोड़ आया था।

आज करीब 2 साल बाद जब वो अपने कमरे में हाथ में शराब कि गिलास लिए था तो रेडियो पे धीमी आवाज में अरिजीत सिंह का एक गीत बजता है " तुम साथ हो या ना हो क्या फर्क है, बेदर्द थी जिंदगी बेदर्द है।"

और विशाल भावुक सा अपने शराब कि गिलास को देख खुद कि हालत पे हँसता है।


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