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25. "परिवार"

25. "परिवार"

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सुबह के छः बज रहे हैं, मनोहर बाबू अखबार पढ़ते हुए बोले


"मंजू बाई ताऊजी को चाय दी क्या? और देखो अम्मा जाग गई क्या?, कल फिसलने के कारण उनके घुटने में सूजन आ गई थी, दर्द से परेशान थी। मैंने सेक किया और दवा दी, तब जाकर नींद आई उनको”


"जी साहब दे दी चाय और अम्मा जी तो अभी सो रहे हैं"


"और ये क्या, तूने फिर साहब - साहब की रट लगा दी"


"जी नहीं भाईसाहब"


"हाँ देखो, आदत सुधार लो अपनी। भाई साहब ही कहा करो समझी"


"जी भाई साहब आपकी मेंहरबानी, आपने मुझ बेसहारा को सहारा दिया और इतना मान दिया। आदमी ने तो बांझ बोल कर, दूसरी शादी कर ली ओर मुझे घर से निकाल दिया। पीहर में भी कोई नहीं, घर घर जा कर झाड़ू पोंछा बर्तन करके अपना गुजारा करती रही लेकिन जमाना कितना खराब है। अकेली औरत कहाँ रहती, कहाँ जाती? लेकिन भाई साहब आपने मुझ दुखियारी को सहारा दिया और बहन का दर्जा दिया, आप सच में देवता इंसान हो” कहते कहते मंजू रो पड़ी


"रोओ मत मंजू यहां हम सब अपनों के ही सताये हुए हैं और मैनें कोई एहसान नहीं किया तुम पर। तुम भी तो कितनी लगन और सेवा भाव से सारा काम कर रही हो”


"देखो मंजू तुम तो जानती हो मेंरे दो बेटे हैं। हम पति पत्नी ने दोनों ही बेटों की परवरिश में कोई कमी नहीं रखी। दोनों को अपने खून पसीने की कमाई से पढ़ाया, लिखाया, काबिल बनाया। खुद के लिए कुछ नहीं बचाया। ये सोच कर कि ये हमारे बुढ़ापे की लाठी बनेंगे। आज दोनों ही विदेश में रहते खूब अच्छा कमाते हैं। बड़े अच्छे से रहते हैं। उनके विदेश जाने के बाद यहां हम पति पत्नी दोनों अकेले रहते थे, लेकिन अचानक एक दिन वो चल बसी और मैं बिल्कुल अकेला रह गया। बेटे आना नहीं चाहते और मुझे भी अपने साथ रखना नहीं चाहते। आखिरकार मैंने ये सोचा कि क्यों नहीं अपने जैसे अकेले लोगों को साथ रख कर अपना परिवार बनाऊं और उन लोगों को घर ले लाऊं, जिनके अपने हो कर भी अपने नहीं हैं। इसीलिए अपने इस मकान को घर बना लिया और ताऊ जी, अम्मा, चाचा, विनोद भाई साहब और बाकी सबको अपने यहां ले आया। कहने को इनसे मेंरा कोई रिश्ता नहीं लेकिन अब तो इनको ही अपना परिवार बना लिया। अब हम सब ही एक दूजे के लिए हैं। जिन बच्चों को हम अपने बुढ़ापे का सहारा समझ कर पालते पोसते हैं। उंगली पकड़ कर चलना सिखाते हैं वही बड़े होकर हमें अनाथों की तरह या तो अकेला छोड़ जाते हैं या अनाथ आश्रम में भेज देते हैं”


"अच्छा अब तुम जाओ अपना काम करो और जब सब लोग जाग जाएं तो चाय बना लेना"


"जी भाई साहब" बोल कर मंजू चली गई और तभी फोन की घंटी बज उठी। बेटे का फोन था


"हेल्लो पापा गुड मॉर्निंग, और क्या कर रहे हो? क्या हाल आपके? आजकल तो फोन भी नहीं करते, क्या बात है? और कब आ रहे यहां? पंद्रह दिन के लिए तो आ जाओ, टिकट वीजा भेज देता हूँ। आपको यहाँ कोई परेशानी नहीं होगी। किसी भी ग्रुप में शामिल करवा देंगे तो मजे से यूरोप घूमना और क्या? कभी तो निकलो, सारी उम्र कहीं नहीं निकले”


"नहीं बेटा..... अब नहीं आ सकूंगा, अब यहाँ मेंरा भी परिवार है, जिसे छोड़ कर नहीं आ सकता” और मनोहर बाबू ने फोन काट दिया 


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