'कान्हा और द्वारकाधीश'
'कान्हा और द्वारकाधीश'
एक बार स्वर्ग में विचरण करते राधा और कृष्ण एक दूसरे के सामने आ गए ,राधा के मुख पर अद्भुत प्रसन्नता दिखाई पड़ रही थी और श्रीकृष्ण विचलित से ,राधा मुस्कुराई और बोली - कैसे हो द्वारकाधीश ?
जो राधा उन्हें कान्हा - कान्हा कह कर पुकारती थी वही राधा उन्हें आज द्वारकाधीश पुकार रही थी
राधा का यह संबोधन कृष्ण को भीतर तक घायल कर गया फिर भी किसी तरह अपने आप को संभाल कर, बोले राधे - मैं आज भी तुम्हारे लिए वही कान्हा हूं तुम तो मुझे द्वारकाधीश मत बुलाओ !
राधा फिर से मुस्कुराई...
आओ बैठते हैं कुछ मैं अपनी सुनाता हूं कुछ तुम अपनी सुनाना! सच कहूं राधे! जब - जब भी तुम्हारी याद आई आंखों से आंसू निकल आते थे।
राधा बोली..
मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ, न तुम्हारी याद आयी, न आंखों से आंसू निकले
क्योंकि हम तुम्हें भूले ही कब थे ,जो तुम्हारी याद आती। मेरी आंखों में सदा तुम ही बसते थे ,कहीं इन आंसुओं के साथ तुम भी न निकल जाओ इसलिए कभी रोते भी ना थे।
कान्हा प्रेम से अलग होकर तुमने क्या खोया! इसका आईना दिखाऊं मैं तुम्हें ?
कुछ कड़वे प्रश्न सुन सकते हो तो पूछूं तुमसे ?
याद है कान्हा! यमुना के मीठे जल से जिंदगी की शुरुआत की और आज तुम समुद्र के खारे पानी तक पहुंच गए।
एक उंगली पर चलने वाले सुदर्शन चक्र पर भरोसा कर दसों उंगलियों पर चलने वाली बांसुरी को भूल गए!
कान्हा! जब तुम प्रेम से जुड़े थे तो जो उंगली गोवर्धन पर्वत उठाकर लोगों को विनाश से बचाती थी प्रेम से अलग होने पर वही उंगली क्या क्या रंग दिखाने लगी !सुदर्शन चक्र उठाकर विनाश के काम आने लगी, कान्हा और द्वारकाधीश में यही तो अंतर है ,अगर तुम कान्हा होते तो तुम सुदामा के घर जाते, सुदामा तुम्हारे घर नहीं आता!
आप तो कई कलाओं के स्वामी हो, गीता जैसे महान ग्रंथ के दाता हो पर आपने ऐसा निर्णय क्यों लिया आपने अपनी पूरी सेना कौरवों को सौंप दी और स्वयं पांडवों का साथ दिया। सेना तो आपकी प्रजा थी और आप राजा , राजा तो प्रजा पालक होता है ,उसका रक्षक होता है लेकिन आप जैसा महाज्ञानी उस रथ को चला रहे थे जिस पर बैठा अर्जुन आप ही की प्रजा को मार रहा था अपनी प्रजा को मरते देख आप में करुणा नहीं जागी क्यों???
क्योंकि आप प्रेम से अलग हो चुके थे !
मैं जानती हूं ,कान्हा ! कि लोग गीता के ज्ञान की बातें करते हैं पर धरती के लोग युद्ध वाले द्वारकाधीश पर नहीं प्रेम वाले कान्हा पर भरोसा करते है।
आज भी धरती पर आपकी द्वारकाधीश वाली छवि को ढूंढते रह जाओगे हर जगह, हर मंदिर में मेरे साथ ही खड़े नजर आओगे , गीता में मेरा दूर-दूर तक नाम नहीं पर आज भी लोग उस के समापन पर राधे-राधे...कहते हैं क्यों? ?
सही कहा है कि छोटी सी एक उंगली से गोवर्धन पर्वत उठाने वाले भगवान श्री कृष्ण छोटी सी बांसुरी को दोनों हाथों से पकड़ते हैं !
श्री कृष्ण की पास कभी किसी प्रश्न का उत्तर ना हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता परंतु फिर भी राधा द्वारा लगे प्रश्न चिन्हों पर कान्हा मौन रहे क्यों ?