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वो शाम ...

वो शाम ...

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क्यूँ उदास हो जाती है राह ? क्यूँ दरक जातें हैं किनारे ? क्यूँ नदी की सतह घिस जाती है दौड़ते हुए सागर की ओर ? क्यूँ डूब जाता है समय हर एक क्षण अतीत मेंं ? क्यूँ अतीत खड़ा हो जाता है अकेलेपन मेंं ? क्यूँ ..क्यूँ सहलाती हूँ खुद को ये कहते हुए रुक जरा ..? क्यूँ समेटती हूँ वर्तमान को बिखरने से ? क्यूँ ...क्यूँ रोक नहीं पाई ..उस दिन ...वो अभिशप्त वक्त को जाने से ? क्यूँ ? और अब हर पल इस नदी के पानी मेंं खुदको रोज़ बदलते हुए देखती हूँ ....जब इसके किनारों को मेरी तरह इंतजार करते देखती हूँ ..। आज भी यहाँ वो आवाज़ गूँजती है 'अरुउउउ .....मैं आ रहा हूँ ...तुम बस उस पार यूँ बैठी रहो .'....और ...और बस मैं यहीं बैठी हूँ नदी के इस पार ..

अमृत और मैं अकसर यहीं महानदी के किनारे मिलते थे ..। वो ऑफिस से लौटते हुए चौद्वार ब्रिज पर आते थे और मैं ब्रिज के उस तरफ़ इंतजार करती थी मेरे ऑफिस ख़त्म होने के बाद ठीक शाम को पाँच बजे । ब्रिज तब नया नया बन रहा था और नदी का पानी भी प्रखर था । अमृत मुझे ऐसे ही मिलना पसंद करते थे । मिलते तो थे पर बस दो किनारों की तरह ...वो उस पार मैं इस पार ...घंटो दूर से एक दूसरे को देख कर उल्लसित होना ...इशारों से अपनी दिल की बात समझाना और फ़िर शाम को नदी के पानी को शांत सोते हुए देखना । हीराकुद डेम के जब दरवाजे खुल जातें हैं ...महानदी के पानी की ऊँचाई भी बढ़ जाती है ...देखने मेंं यह जितना सुंदर लगती है उतनी ही डरावना लगती है गहराई को देख कर । लोग कभी ब्रिज के तरफ शाम होने के बाद नहीं आते क्यूँ कि चोर या किसी भी जीव जन्तु और निर्जनता का डर रहता है । हम दोनों भी अंधेरा गहराने से पहले एक दूसरे से विदा ले लेते थे । अमृत के साथ फ़ोन पर बात हो जाती थी और मिलने का समय निर्धारित हो जाता था । हम दोनों को महानदी में चाँद को निहारना बड़ा ही अच्छा लगता था । उसका सौंन्दर्य कोई देखे तो कभी भूल न पाए । बड़े बड़े बरगद, आम और जामुन के पेड़ों से भरा हुआ करती थी वो जगह । चिड़ियों का चहकना एक अलग दुनिया मेंं ले जाता था हमें मानो जैसे मैं और अमृत एक जोड़ी ख़ूबसूरत चिड़िया थे । आस पास कुछ नहीं था न कोई घर न दुकान ..कटक टाउन से दूर ...। अमृत से मैं हमेशा कहती थी कभी घर आकर मेरा हाथ मांग लो ...यूँ कब तक पास हो कर भी दूर रहेंगें हम ? समय कब सप्ताहों, कब महीनों, कब सालों मेंं बदल कर गुज़रता गया । अमृत चाहते थे कि जब वो "ओडिशा एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस" (OAS) पास करेंगे तभी वो आएंगे मेरा हाथ मांगने और इस खुशी के इजहार की साक्षी रहेंगी महानदी और इसका निरंतर बहता पानी ...जैसे हमारा प्यार निरंतर बहता रहता है दो दिलों के किनारे किनारे और मिलने की तड़प ने एक दूसरे को बाँध कर रखा है ।

अमृत बहुत ही खुश थे ..खुशी से झूम रहे थे जब उन्होने मुझे फ़ोन किया । कहा अरु आज नदी के दो किनारे जरुर मिलेंगे ..इंतजार करना ठीक पाँच बजे । मैं बहुत खुश थी की आज अमृत मेरे करीब आ जाएँगे ..एक प्यास पल रही थी दोनों की धड़कनों मेंं । न वो बयां कर पाते थे न मैं कह पाती थी । बस महानदी ही जानती है कि पानी के पास होते हुए भी प्यासे रह जाते थे हम । मैं पहुंच चुकी थी ठीक पाँच बजे नदी के पास । अमृत को ब्रिज पर तेजी से स्कूटर पर आते देख कर मुझे पता चल रहा था की जरुर कोई खास बात है । उन्होने इशारा किया कि वो मुझसे कितना प्यार करते हैं । झूम रहे थे खुशी से । उनके हाथों मेंं एक लिफाफा था ... और चिल्ला कर कहा 'अरुउउउ .....मैं आ रहा हूँ ...तुम बस उस पार यूँ बैठी रहो .'..... पानी की ऊंचाई काफी ऊपर थी .... और वो किनारे किनारे गाड़ी मेंं बैठे खुशी से अरु अरु पुकार रहे थे ....और एक पल मेंं वो आवाज़ आना बंद हो गई..... महानदी के सीने का पानी भूरे और लाल मिट्टी से रंग गया ...किनारा दरक रहा था और मैं देख रही थी मौन ....इस पार ..... उस किनारे का कुछ अंश मेरे तरफ़ आ गया मेरे किनारे से मिलने सालों बाद .... मेरे पैरों को छू कर बह रही थी वो मिट्टी जो उस पार से आई हुई थी ..... मैं खोज रही थी वो लिफाफा ...कोशिश कर रही थी सुनने को वो पुकार .... मेरी आँखें धुंधला गईं थी ....शाम हो चुकी थी शायद .....नदी का पानी का रंग काला दिखने लगा था ...सन्नाटों मेंं मुझे सिर्फ़ उस पार से अरु अरु सुनाई दे रहा था .... और मैं ...कुछ सफ़ेद सा पानी बहता देख कर किनारे पर भागने लगी उसे पाने की कोशिश मेंं ...पर वो बहता चला गया ..बहता चला गया .....दूर से एक नाव पर टिमटिमाती बत्ती दिख रही थी .... घंटाघर का आलार्म ने मुझे शहर की तरफ़ लौटने का संकेत कर रहा था ......

पच्चीस साल गुज़र गयें हैं ..... यहाँ पार्क, दुकानेंऔर कंक्रीट रोड़ बन चुके हैं ...चौद्वार ब्रिज पानी के बहुत ही ऊपर है जहाँ से इंसान चींटी सा नज़र आता है ...लोगों की भीड़ है यहाँ ...न वो निर्जनता है ..न वो मिट्टी के किनारे .....सब कुछ बदल चुका है ... ..मैंने इस जगह को बदलते हुए तो देखा पर दिल की धड़कन और पुकार को कभी बदलते हुए नहीं देख पाई ...क्यूँ कि पानी का नियम है बहना ...जीवन का नियम है जाना पर प्रेम की अनुभूतियां ठहर जाती है मन की गहराइयों मेंं......बहते या दरकते नहीं ........


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