Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

दिवाली उपहार

दिवाली उपहार

4 mins
7.2K


दिवाली की तैयारियाँ चल रही हैं, साहब के घर पर काम बहुत बढ़ गया है। रोज रात में देर से आने के बाद हरी अपनी पत्नी से कहता है,"अपने घर में भी दिवाली की तैयारी करनी है।" उसकी पत्नी कहती, “इतने दिनों से सोच रहे हैं, घर में कोई ढंग का बर्तन नहीं है, इस धनतेरस पर बर्तन खरीदना है, तुम साहब से बोलो न एडवांस में पैसे देने के लिए, वे मना नहीं करेंगे।“ लेकिन हरी बात को टाल जाता है, कहता है, वे खुद ही देंगे, महीना भी तो लग गया है, इस दिवाली पर मासिक वेतन के साथ बोनस भी देंगे, तो हम बर्तन खरीद लेंगे।

जैसे-जैसे दिवाली नजदीक आती गई, साहब के घर पर आने-जाने वालों का दिन भर ताँता लगा ही रहता है। साहब के ऑफिस का नौकर घर चला गया है, इसलिए अपने सारे काम करने के साथ-साथ लोगों को चाय-पानी और मिठाई खिलाते रात हो जाती है। इधर हरी की पत्नी ने हर साल की तरह इस बार भी धनतेरस के दिन मिट्टी के कुछ दीये और एक झाड़ू खरीद लिया। दिवाली के दिन सबकी छुट्टी थी मगर साहब ने कहा, " हरी तुम कल सुबह आ जाना, तुम्हारी दिवाली भी तो देनी है।" हरी मन ही मन बहुत प्रसन्न हुआ। घर जाकर अपनी पत्नी से बोला, “कल साहब ने सिर्फ मुझे बुलाया है अपने घर पर, कुछ खास दिवाली के उपहार देंगे मुझे। आदमी की परख है उन्हें। साहब इसीलिए सबसे ज्यादा मुझे मानते हैं।

अगले दिन तड़के ही उठ कर हरी साहब के घर पर चला गया, इधर उसके बच्चे पटाखे और मिठाई के लिए अपनी माँ को परेशान कर रहे थे। वह बच्चों को समझाती कि थोड़ी देर में ही उनके पापा आ जाएँगे तो चल कर ढेर सारी मिठाई और पटाखे खरीदेंगे। बच्चे दिन भर अपने पिता की राह देखते रहे, इधर-उधर भटकते रहे। जब शाम ढलने लगी तब तो हरी की घरवाली भी चिंतित हो उठी, घर में पूजा का सारा काम पड़ा था, मगर उसका ध्यान सिर्फ अपने पति की राह देखने में ही लगा रहा।

उधर साहब के घर पर आज रोज से भी ज्यादा लोगों का आना-जाना लगा रहा, लोग कीमती डब्बों में मिठाई और ड्राई फ्रूट उपहार में ला रहे थे, हरी उन पैकटों को समेट कर साहब के बैठक से साहब के घर में पहुंचाता रहा, उन्हें चाय-पानी पिलाता रहा, मिठाई खिलाता रहा, और सोचता रहा कि मासिक वेतन के साथ इसी में से कोई पैकेट साहब उसको उपहार दे दें तो कितना अच्छा हो। ड्राई फ्रूट के पैकेट पर चढ़ी पन्नियों से सब दिखता था, इसमें से कई ऐसे मेवे थे, जो हरी ने कभी नहीं खाए थे। लोग बैठक में बैठ कर किस्म-किस्म के बातें करने लगते, कोई पाकिस्तान के दुनिया में अलग-थलग पड़ने की बात करता तो कोई देश की राजनीति पर बात करता। समय बहुत तेज़ी से बीतता जा रहा था, और इसके साथ ही हरी मन ही मन झुंझलाते जा रहा था। वह सोच रहा था कि ये लोग ये कैसी-कैसी बात लेकर बैठ जा रहे हैं, पर्व-त्यौहार का दिन है, जल्दी जाएं ताकि साहब भी जल्दी फुरसत पाकर उसको दिवाली देकर, उसे विदा करें। पर ऐसा हुआ नहीं, शाम तीन-चार बजे तक हरी के चेहरे का सारा उत्साह और ख़ुशी निचोड़ी जा चुकी थी। साहब उठते हुए बोले, " मैं तो बहुत थक गया हरी, तू बैठ थोड़ी देर, कोई आये तो चाय-पानी देना, मैं एक बार नहा कर आऊं।" साहब को अंदर गए करीब दो घंटे हो चुके थे, इस बीच पता नहीं भूख से या किस बात से, हरी के आँखों से आँसुओं का बाँध कई बार टूट चुका था। अँधेरा हो गया था, हरी अभी भी सूनी-सूनी आँखों से साहब के घर के गेट को देख रहा था।

आखिर जब पूजा का समय हो गया तो साहब अपने दोनों बेटों के साथ बाहर निकले। साहब के बेटों के हाथों में बड़े-बड़े पटाखों के पैकेट थे, साहब उन्हें सावधानी से पटाखे जलाने की हिदायत दे रहे थे। फिर हरी के पास आकर ऐसे बोले जैसे कुछ हुआ ही नहीं है। "अरे हरी, कोई आया तो नहीं था? मैं तो नहा कर सो गया था, नींद आ गई थी।

हरी को कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या कहे? वह मन ही मन सोच रहा था कि अभी भी भीख माँगने पर ही साहब उसे उपहार देंगे क्या? उसके हलक के अंदर एक घुटी-घुटी सी चीख़ निकल कर होठों तक आती, फिर वापस चली जाती। किसी तरह खुद को संयत करते हुए उसने कहा, " साहब मेरा वेतन दे देते तो, बच्चे मेरी राह देख रहे होंगे। साहब ने घर से लाकर उसका वेतन और एक मिठाई का पैकेट पकड़ा दिया( वेतन में से तीन हजार रूपया काट लिए थे, जो हरी ने महीने के शुरू में ही एडवांस लिया था, पत्नी के दवाई के लिए)।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational