हम टीका नहीं लगाते
हम टीका नहीं लगाते
हम टीका नहीं लगाते
फ़िलहाल कुछ महीने बीते हो गये इस घटना को।पर मेरे मानस पटल पर वो घटना आज भी अंकित है।जब जब वो वाकया याद आता है दिल में एक बेचैनी सी उठती है।
जैसा कि नव रात्रि के दिनों में घर घर में देवी का पूजन भजन कीर्तन की धूम मची रहती है।सारा दिन सारी रात देवी के जागरण से पूरा शहर गुंजायमान रहता है।एक अलग ही खुशी होती है।शायद ये देवी माँ के प्रताप के कारण ही होता है।
नवरात्रि के अन्तिम दिनों में छोटी कन्याओं को देवी व लड़कों को लंगूर के रूप में मानकर उनको भोजन कराया जाता है।इन दिनों इन बच्चों का उत्साह भी देखते बनता है। हाँ तो इसी नवरात्रि के नवमी वाले दिन मैंने भी बच्चों को भोजन कराया और कुछ उपहार में भी दिया।
अचानक मेरी निगाह अपनी कालोनी में काम करने वाले सफ़ाई कर्मचारी की लड़की पर पड़ी।वो दूर से ही बड़े ध्यान से ये सब देख रही थी।
मैंने तुरंत इशारे से उसे पास बुलाया तो वो खुशी खुशी आ गयी।जैसे ही मैंने उसे टीका लगाने के लिए अपना हाथ उसके माथे की ओर बढ़ाया वो छः साल की छोटी सी बच्ची बोली—“आण्टी,हम टीका नहीं लगाते।”
मेरे हाथ जहाँ के तहाँ रुक गये।मैंने उससे पूछा—“क्यों बेटा,ये तो भगवान का टीका है?”
तब उस बच्ची ने जो जवाब दिया उसे सुन मैं हतप्रभ रह गयी।वो बोली—“आण्टी हम मुसलमान हैं।हम लोग टीका नहीं लगाते।”
मेरे हाथ से प्रसाद की प्लेट लेकर वो चली गयी और मैं किंकर्तव्यविमूढ़ होकर उसे जाता देखती रही।
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पूनम श्रीवास्तव