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Yogesh Suhagwati Goyal

Thriller

5.0  

Yogesh Suhagwati Goyal

Thriller

जूलियट मिल गयी

जूलियट मिल गयी

4 mins
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अक्सर ऐसा होता है, हम अपनी पसंद की चीजें देखने के लिए इधर उधर भटकते रहते हैं या फिर मोटी रकम खर्च कर विदेश भागते हैं। लेकिन अपनी नाक के नीचे देखना भूल जाते है। पिछले कुछ महीनों से कई बार स्थानीय अखबार में ये खबर पढने को मिली कि जयपुर, राजस्थान के सबसे ख़ास और व्यस्ततम जवाहर लाल नेहरु मार्ग पर रात में तेंदुए देखे गये। एक दो बार तो उस मार्ग की सड़कों पर, दौड़ते हुए तेंदुओं की फोटो भी छपी थी। साथ ही विवरण भी दिया गया था कि ये तेंदुए झालाना की पहाड़ियों से भोजन की खोज में इधर भटक जाते हैं, रात में सड़क पर चलने वाले लोग सावधानी बरतें।

सन १९७० से १९७५ तक, यानि पूरे पांच साल मालवीय इंजीनियरिंग कालेज में, छात्रावास में रहकर पढ़ाई की, लेकिन वन्य जीवों के बारे में कभी नहीं सुना। उसके बाद जयपुर आते रहे, जाते रहे और सन २००९ से लगातार यहीं रह रहे हैं, परन्तु इस बारे में कोई बात सामने नहीं आई। झालाना वन क्षेत्र मालवीय कॉलेज के पीछे ही स्थित हैं। कॉलेज के छात्रावासों के ठीक पीछे वाली सड़क पर जयपुर राजघराने के सवाई माधोसिंह द्वितीय द्वारा निर्मित एक पुराना आराम गाह बना हुआ था, घूमने और फोटो वगैरह खींचने के लिए कई बार वहां गए लेकिन वन्य जीव जैसी कभी कोई बात नहीं सुनी। शायद इसकी वजह जानकारी की कमी रही।

कल शाम हमारे सबसे बड़े साले साहब की श्रीमतीजी ने फोन कर बताया कि सुबह वन्य जीव सफारी जाने का कार्यक्रम बन रहा है । उसने मुझे और मेरी पत्नी को भी साथ चलने के लिए कहा, मुझे लगा जैसे वो कोई मज़ाक कर रही है। जयपुर में वन्य जीव सफारी, ये कैसे मुमकिन है । लेकिन जब उसने सब विस्तार से बताया तो भरोसा हुआ।

अरावली पर्वत माला की तलहटी का प्राचीन जंगल ही झालाना सफारी पार्क का क्षेत्र है । जयपुर शहर के दिल में स्थित, झालाना वन क्षेत्र मालवीय इंडस्ट्रियल एरिया से सटा हुआ है और हवाई अड्डे के नज़दीक है। सफारी पार्क २० वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है और वर्तमान में करीब २५ तेंदुओं का घर है। ये पार्क खासकर तेंदुओं के लिए जाना जाता है। लेकिन यहाँ लकडबग्घा, नील गाय, हिरन, जंगली सूअर, मोर, बन्दर, लंगूर और बहुत सारे पक्षी भी देखे जा सकते हैं। झालाना तेंदुआ पार्क में सफारी दिसंबर २०१६ में शुरू किया गया, खुली जिप्सी में घूमने वालों पर्यटकों के लिए वर्तमान में दो सफारी मार्ग खुले हैं। दो सफारी मार्गों के बीच से एक मार्ग और भी है जो आम जनता की गाड़ियों के लिए है, ये मार्ग पार्क क्षेत्र के बीच में स्थित मंदिर दर्शनार्थियों के लिये है और सिर्फ दिन में ही खुला रहता है।

हम लोग झालाना सफारी पार्क के मुख्य द्वार पर सुबह ६ बजे पहुंचे, पर्यटकों को सफारी में घुमाने के लिये खुली जिप्सी गाडीयां तैयार खड़ी थी। एक गाड़ी के २.५ घंटे के एक ट्रिप का किराया २,३१६ रू है जिसमें ६ पर्यटक बैठ सकते है। हर गाड़ी में ६ पर्यटक, एक ड्राइवर और एक गाइड होता है। हमारा ट्रिप ६.३० बजे शुरू हुआ, पहले एक तरफ के सफारी मार्ग पर गए। इसके रास्ते में हमने नील गाय ,मोर, और कई पक्षी देखे हमारे साथ बैठे गाइड ने हमें बताया कि मोर की बदली हुई आवाज़ से वो लोग तेंदुए की मौजूदगी का पता लगाते है। कई बार बहुत से लोग २.५ घंटे का ट्रिप पूरा कर लेते हैं लेकिन तेंदुए का दीदार नहीं होता। हम लोग भाग्यशाली रहे, शुरू के १५.२० मिनिट बाद ही दर्शन हो गये।

उसके बाद हमने पहले सफारी मार्ग की पूरी यात्रा की, बारिश के मौसम के कारण, चारों तरफ जबरदस्त हरियाली छाई हुई थी। खुली जीप की यात्रा और पेड़ पौधों से छनकर आती हुई जंगली स्वच्छ हवाएँ ठंड के मौसम का एहसास करा रही थी। फिर हमने दूसरे सफारी मार्ग का रुख किया, यहाँ भी सब कुछ पहले जैसा ही था, बस एक चीज को छोड़कर। इस मार्ग में शिकार हौदी देखी, शिकार हौदी एक दो मंजिला पुरानी इमारत है जिसकी छत पर कुछ कुर्सीयां और मेज डाली हुई हैं । पर्यटक यहाँ बैठकर अपना जलपान कर सकते हैं, यहाँ से जंगल और जयपुर शहर का नज़ारा देखते ही बनता है ।

खुली जीप को देखकर, हमारे दिमाग में रह रहकर एक सवाल उठ रहा था। क्या खुली जीप में सफारी करना सुरक्षा की द्रष्टि से ठीक है ? हमने ये सवाल हमारे गाइड साहब से पूछा, उनके मुताबिक तेंदुआ एक बेहद शर्मीला जानवर है। जब तक भूखा ना हो या सताया ना जाये, कभी किसी पर हमला नहीं करता, हालाँकि तेंदुआ सबसे फुर्तीला और अच्छा शिकारी होता है।

करीब सवा आठ बजे हमने वापसी का सफ़र शुरू किया, रास्ते में हमारे ड्राइवर को दूसरी गाड़ियाँ मिली दूसरी गाड़ी का ड्राइवर बोला कि जूलियट मिल गयी। हमको ये समझने में थोड़ा वक़्त लगा कि जूलियट कौन है गाइड ने बताया कि जूलियट एक मादा तेंदुआ है, पिछले ५, ६ दिनों से नज़र नहीं आयी थी । आज दिखी है, इसलिये, जूलियट मिल गयी ।


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