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Vinita Rahurikar

Drama

3  

Vinita Rahurikar

Drama

मर्दानगी

मर्दानगी

2 mins
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बस स्टॉप पर अपनी बस का इंतज़ार करती रूपम बहुत देर से उन चार लड़कों की छींटाकशी सुन रही थी। आज ऑफिस में भी उसे बहुत ज्यादा काम था तो देर हो गई। रात हो गई। अब पता नहीं उसकी बस कब आएगी।

एक-एक करके सारे यात्री अपनी-अपनी बस आने पर चले गए। अब रह गई वो और ये चार लफंगे जो तब से उसे छेड़ रहे थे। लेकिन अब बर्दाश्त से बाहर हो रहा था। छींटाकशी अब अश्लीलता की भी सीमा पार करने लगी थी।

"अरे आ भी जाओ हमारे साथ, मर्दानगी के मजे तो ले लो। कसम से ऐसी मर्दानगी कभी देखी नहीं होगी। जन्नत की सैर करा देंगे।" कहते हुए एक लड़का शर्ट के बटन खोलता हुआ उसकी तरफ बढ़ा।

रूपम के कानों में जैसे किसी ने पिघला सीसा उड़ेल दिया हो। बस अब बहुत हो गया। उसकी कलाइयाँ मरोड़ खाने लगी। पिताजी ने बचपन से ही जो मार्शल आर्ट सिखाया था वो शायद आज के दिन के लिए ही था।

पलट कर उसने अपनी पूरी ताकत लगाकर उन चारों की ऐसी पिटाई की कि चारों जमीन पर धूल चाटने लगे।

फिर उस लड़के के दोनों पैरों के बीच कसकर लात मारते हुए बोली- 

"और ऐसी मर्दानगी देखी है पहले कभी। अगली बार ये हरकत की तो जन्नत नहीं जहन्नुम भेज दूँगी। मर्दानगी जाँघों के बीच नहीं चरित्र की उच्चता में होती है। बेहतर है मर्दानगी की सही परिभाषा सीख लो अब।" 


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