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नवल पाल प्रभाकर दिनकर

Children Drama

1.0  

नवल पाल प्रभाकर दिनकर

Children Drama

काना कचरा

काना कचरा

7 mins
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बहुत पुरानी बात हैं कि एक जाट था। उसने अपने खेत में एक बार कचरे बोए। उसके खेत में अच्छे कचरे पैदा हुए। उसने बहुत सारे कचने बेचे। मगर एक कचरा काना था। उसको किसी ने भी नहीं खरीदा। जाट उस कचरे को अपने घर ले आया। सोचा कि उस कचरे को कांट-छांट कर जाटणी खा लेगी। इसलिए उसने वह कचरा घर लाकर जाटणी को दे दिया। जाटणी उस समय कोई काम कर रही थी। इसलिए उसने उस कचरे को खाट के नीचे डाल दिया। काम करते-करते वह उस कचरे को खाना ही भूल गई।

एक दिन जाटणी की तबीयत कुछ बिगड़ गई। इसलिए वह झाङू निकालती हुई कह रही थी। आज मैं तो बिमार हूँ। मुझसे चला जाता नहीं। जाट की रोटी खेत में कौन देकर आएगा। यह कहते हुए उसे काफी देर गुजर गई। तब खाट के नीचे से आवाज आई, मां मैं दे आऊँगा। जाटणी यह सुनकर हैरान थी। क्यों कि उनके यहां तो कोई औलाद ही नहीं थी, तो यह मां कहने वाला कौन था। एक बार तो उसने भ्रम समझा परन्तु दोबारा आवाज आने पर उनसे पूछा तुम कौन हो मुझे दिखाई नहीं दे रहें हो। तब खाट के नीचे पड़े उस काने कचरे ने जवाब दिया। मां मै। काना कचरा हूँ। खाट के नीचे से बोल रहा हूँ।

तब जाटणी ने उस कचरे को खाट के नीचे से निकाला और पूछा - तुम रोटी कैसे ले जाओगे। फिर काने कचरे ने जवाब दिया - मेरे पेट से रोटी बांध कर मुझे धक्का दे दो मैं पहुंच जाऊँगा खेत में। जाटणी ने काने कचरे के पेट से रोटी बांधकर धक्का मारा तो वह बहुत तेज रफ्तार से खेत की तरफ रवाना हुआ।

खेत में पहुँचकर काने कचरे ने कहा बाबू रोटी खा ले। अब तो जाट को भ्रम हो रहा था कि हमारे यहां तो कोई संतान भी नहीं हैं कि यह कौन बोल रहा हैं, परन्तु फिर दूसरी आवाज आई तो वह जाट बोला - क्यों भई तुम कौन हो और किसको पुकार रहे हो। तब काने-कचरे ने कहा कि बाबू मैं काना कचरा हूँं। ओर मां की तबीयत खराब होने के कारण आज मैं रोटी लेकर आया हूँ। मैं नीचे आपके पैरों में हूँ। जाट ने जब नीचे की ओर देखा तो वास्तव में काना कचरा ही था। अब जाट बोला - अच्छा बेटे मैं जरा इन बैलों को पानी पिला लाता हूँ। तुम यहां बैठो। तब काना कचरा कहने लगा कि - नहीं बाबू आप खाना खा लो। इन्हें पानी मैं पिला लाऊँगा। जाट बोला - तुम कैसे पिलाकर लाओगे। काना कचरा बोला -’ बाबू मेरे पेट से रस्सी बांधकर मुझे धक्का मार दो। जाट ने वैसा ही किया।

कना कचरा अब तालाब पर उन बैलों को पानी पिला रहा था कि तभी राजा के दो सैनिक आए ओर काने कचरे के पेट से रस्सी खोल चल दिए अब काने कचरे ने देखा तो उसने गुस्सा किया। परन्तु वे सैनिक उसकी अनसुनी करते हुए वहां से चले गए। काने कचरे ने युक्ति सोची।

अब काने कचरे ने वहीं तालाब से कुछ मिट्ठि लेकर एक गाड़ी बनाई तथा तालाब से मेंढक पकड़ कर उसने जोड़कर चल पड़ा। रास्ते में उसको एक बिल्ली मिली बोली, मामा कहां जा रहे हो। तब काना कचरा कहने लगा - माटी की मेरी गाड़-गड़ीली मेंढक जोड़े जाऊँ सूं, राजा जी ने बैल खोस लिए बैला की जोड़ी लाऊँ सूं। यह सुनकर बिल्ली बोली - मैं भी आपके साथ चलूं। शायद कहीं काम आ सकूं। वह बोला चलो बहन तुम भी बैठ लो।

आगे चलने पर रास्ते में एक कीड़ी मिली वह काने कचरे से बोली मामा जी आज आप दोनों कहां जा रहे हो फिर काने कचरे का वही जवाब था। माटी की मेरी गाड़-गड़ीली मेंढक जोड़े जाऊँ सूं, राजा जी ने बैल खोस लिए बैला की जोड़ी लाऊँ सूं। वह कीड़ी बोली - मैं भी आपके साथ चलूं शायद कहीं आपकी मदद कर सकूं। तब काना कचरा कहने लगा ठीक हैं बहन तुम भी चलों।

आगे चलने पर उसे रास्ते में आँधी (तूफान) मिली। आँधी बोली - मामा, आप सभी कहां जा रहे हो ? फिर काने कचरे ने जवाब दिया - माटी की मेरी गाड़-गड़ीली मेंढक जोड़े जाऊँ सूं, राजा जी ने बैल खोस लिए बैला की जोड़ी लाऊँ सूं। आँधी बोली मैं भी आपके साथ बैठ लेऊँ । तब काने कचरे कहा कि - हां बहन तुम भी बैठ लो। शायद आपकी भी कहीं पर जरुरत पड़े।

अब आँधी को बिठाकर बे सभी आगे चलने लगे। रास्ते में उन्हें एक नदी मिली। नदी ने काने कचरे से कहा कि - मामाजी आप सभी कहां जा रहे हैं, यह सुनकर फिर काने कचरे ने जवाब दिया - माटी की मेरी गाड़-गड़ीली मेंढक जोड़े जाऊँ सूं, राजा जी ने बैल खोस लिए बैला की जोड़ी लाऊँ सूं। नदी ने कहा कि - मैं भी तुम्हारे साथ चलू। शायद मेरी भी तुमको आवश्यकता पड़े। काना कचरा कहने लगा - हां बहन तुम भी बैठ सकती हो। इस प्रकार से सभी इकट्ठे हो कर चल पड़े।

कुछ ही देर में वे सभी राजा के दरबार के निकट पहुँच गए। जब उन सैनिकों ने काने कचरे को देखा तो वे दौड़े-दौड़े राजा के पास गए ओर सभी हाल बयान कर दिया। राजा ने हुक्म दिया कि काने कचरे को भेड़-बकरियों के रिवाड़े में आज रात छोड़ दिया जाए। कोई बकरी तो उसे सींग या पैर से कुचल ही देगी।

इस प्रकार से काने कचरे को भेड़-बकरियों के रिवाड़े में कैद कर दिया। काने कचरे ने बिल्ली से कहा कि - चल दिखा तु अपना कमाल। बिल्ली ने किसी बकरी के कान खा लिए तो किसी भेड़ की टांग तोड़ दी। जब सुबह राजा ने सैनिकों को आज्ञा दी कि जाओ ओर काने कचरे को देखकर आओ। सैनिक तुरन्त गया ओर कुछ देर बाद ही आकर राजा से बोला - महाराज उस रिवाड़े में तो बकरियां कराह रही हैं। किसी का कान कटा हैं तो किसी की आंख फुटी हुई। किसी की टांग टूटी हुई हैं। वह काना कचरा तो कोई जादूगर हैं जादूगर।

राजा ने फिर आदेश दिया कि - काने कचरे को हाथियों के घर में बंद कर दो कोई हाथी तो इसे फोड़ेगा ही। अब काने कचरे को उसमें रोका गया। अब काने कचरे ने कीड़ी से कहा कि चल कीड़ी अब तेरी बारी हैं तुम दिखाओ अपना कमाल। कीड़ी हाथियों के सूंडो में घूस गई और हाथियों को मार गिरायां। सुबह जब राजा ने सैनिक बुलवाकर - काने कचरे का हाल पूछा तो सैनिकों ने बताया, महाराज क्षमा करें। हमारे सारे हाथी मर गए हैं परन्तु काने कचरे का बाल भी बांका नहीं हुआ। वह ज्यों का त्यों सही-सलामत हैं।

राजा ने फिर सोच-समझकर सैनिकों को आज्ञा दी कि जाओ ओर काने कचरे को कुड़ी में दबा दो। वह कुड़ी की गर्मी को सहन नहीं कर पाएगा ओर सुबह तक गल-सड़कर मर जाऐगा। सैनिकों ने राजा के कहने के अनुसार वैसा ही किया। कुड़ी में दबने के पश्चात् काने कचरे ने आँधी से कहा - आँधी बहन अब तुम अपना चमत्कार दिखाओ। आँधी ने उस कुड़ी को उड़ा दिया ओर काने कचरे को बाहर निकाला। सुबह होने पर राजा को पता चला कि काना कचरा अभी तक जिन्दा हैं तो वह क्रोध से तिलमिला उठा। उसने सैनिकों को आदेश दिया कि उस काने कचरे को यहां लाओ मैं खुद उसे मारुँगा। मैं देखता हूँ वह कितना बड़ा जादूगर हैं। सैनिकों ने राजा के कहने के अनुसार वैसा ही किया।

अब राजा के सामने काने कचरे को प्रस्तुत किया गया। ज्यों ही राजा ने काने कचरे को काटने के लिए तलवार उठाई। काने कचरे ने मन-ही-मन नदी से कहा चल बहन नदी अब आपकी बारी है, दिखाओ जरा अपना कमाल दिखाओ। नदी ने पलक झपकते ही राजा के महल में छाती तक पानी भर दिया कुछ ही देर में राजा की ठुड्डी तक पानी भर आया। अब राजा अपनी रानियों सहित काने कचरे से विनती करने लगा कि हे काने कचरे मुझे माफ कर दो। मैं तुम्हें दो बैलों की बजाय चार बैल गाड़ी सहित दूंगा। अपना आधा राज-पाट और अपनी कन्या की डौली भी तुझे ही दूंगा। चारों बैलगाडि़यों को धन से लादकर दूंगा। परन्तु किसी तरह से इस बाढ़ को रोको। हम यदि मर गए तो तुम्हें कुछ हाथ नहीं लगेगा।

अब तो काने कचरे ने सभी कुछ शांत किया, और विधि-विधान के अनुसार राजा ने अपनी बेटी की शादी काने कचरे के साथ कर दी। काना कचरा कुछ दिनों तक तो वहां पर रुका। फिर अपने घर के लिए राजा से विदा ली, और चल पड़ा। कुछ दिनों में वह अपने गांव के निकट पहुँच गया।

ऊधर शाम को जाट और जाटणी सोच रहे थे कि वह काना कचरा तो हमें बेवकूफ बनाकर हमारे बैल भी ले गया। अब इन खेतों कीे कैसे जोतेंगे। तभी बाहर से आवाज आई मां दरवाजा खोलिए। आपकी बहु आई हैं। काने कचरे की आवाज सुनकर तो जाटणी ने झट से दरवाजा खोला और देखा तो वह अचरज करने लगी ओर सामने बहु ओर उसके द्वारा लाए हुए दहेज को देखकर तो वह फुली ही नहीं समाई। जाट ने तथा जाटणी ने काने कचरे को छाती से लगा लिया तथा दोनों की आंखों से स्नेह की धारा प्रवाहित हो चली।


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