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हीरो दादा

हीरो दादा

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मेरठ शहर में एक चौराहे पर एक युवक औंधा पड़ा था। उसके नीचे और आसपास बहुत सा खून बिखरा पड़ा था। चारों ओर से तमाशबीन लोगों की भीड़ युवक को घेरे थी। युवक शायद मर चुका था।

पुलिस आयी और अपने काम में जुट गयी। इंस्पेक्टर राजेश ने लाश को पहचान लिया था। वह लाश हीरो की थी। उस पर मारपीट के कुछ मामले स्थानीय थाने में दर्ज हुए थे। समान्य बोल चाल की भाषा में कहें तो वह अपने इलाके का दादा था। अपना दबदबा और प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने के लिए उसकी दूसरे दादाओं से ठनी हुई थी।

हीरो के परिवार में माता पिता दो भाई एक बहन थे। हीरो का बड़ा भाई केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल में सिपाही था और धनबाद में तैनात था। बहन दसवीं में पढ़ती थी।

हीरो के पिता बलदेव स्थानीय स्कूल में व्यायायम शिक्षक थे। हाल ही में सेवा निवृत हुए थे। हीरो ने बारहवीं पास कर कालेज में बीए में प्रवेश लिया था।

हीरो जब ९वीं क्लास में था तब से उसके रंग ढंग बदलना प्रारम्भ हो गए थे। आये दिन मारपीट की शिकायतें आने लगीं तो पिता बलदेव ने समझाने की कोशिश की। लेकिन हीरो पर कोई असर न हुआ। साल दो साल में हीरो ने दादा गीरी में इतनी तरक्की की कि मुहल्ले में लोग बलदेव के साथ ज्यादा विनम्रता से पेश आने लगे और स्थानीय सरकारी दफ्तरों में भी हीरो के नाम से काम जल्दी हो जाता था। बलदेव को अब हीरो पर नाज़ होने लगा था और हीरो को अपना रास्ता सही लगने लगा था।

अब हीरो बड़ा हो गया था। उसके खर्चे बढ़ गए थे। परिवार के लिए भी वह कुछ करना चाहता था। अतः उसने थोड़ी बहुत बसूली भी प्रारम्भ कर दी थी।

कालेज तक आते आते हीरो एक सजीला नौजवान बन चुका था। लंबा चौड़ा कसरती बदन हल्की मूंछ और दाढ़ी। सीधी नाक और बड़ी बड़ी आंखेँ सब मिला के एक अच्छा व्यक्तित्व।

पढ़ाई लिखाई में कम दिलचस्पी थी लेकिन कालेज अक्सर चला जाता था। छात्र नेता उसका समर्थन पाने को उसकी सेवा करते थे। समय अच्छा गुजर जाता था।

कालेज की लड़कियाँ उससे कन्नी काटतीं थी। इसका उसे मलाल था। क्योंकि लड़कियों से उसने कभी अभद्रता नहीं की थी।

एक दिन कालेज में एक मनचले ने राधा नाम की लड़की को छेड़ दिया। लड़की रो रही थी। लड़का अपने दो और साथियों के साथ खड़ा हंस रहा था।

उसी समय हीरो वहाँ आ गया। मामला जानकर उसने तीनों लड़कों को मुर्गा बनाया और उनके द्वारा उस लड़की से माफी मँगवाई।

लड़की ने हीरो से कहा,“थैंक्स ए लॉट, सॉरी मैं आपको बहुत गलत समझती थी।”

हीरो ने कहा, “कोई बात नहीं। बिना जाने कई बार कुछ धारणायें बन जातीं है जो हमेशा सही नहीं होतीं।”

“मेरा नाम राधा है। मैं बीए इकोनॉमिक्स की छात्रा हूँ,” लड़की ने अपना परिचय दिया।

“मेरा नाम अनिल है। मैं बीए हिस्टरी का छात्र हूँ,” हीरो ने अपना असली नाम बताते हुए कहा। राधा ने दोनों हाथ जोड़कर कहा, “नमस्ते अनिल जी मैं अब चलती हूँ।”

हीरो ने भी हाथ जोड़ कर नमस्ते किया। राधा कालेज के गेट की ओर चली गयी। हीरो उसे जाते हुए देखता रहा। उसने उसके प्रति एक नवीन प्रकार का आकर्षण अनुभव किया।

इसके बाद राधा और अनिल कालेज में अक्सर मिलने लगे। कभी कालेज के लॉन की हरी ठंडी घास पर किसी पेड़ की छाँव में तो कभी कालेज कैंटीन में चाय की चुस्कीयों के बीच बातों में खोये हुए। बीए फाइनल होते होते दोनों इतने करीब आ चुके थे वे एक दूसरे के साथ पूरा जीवन बिताने के वारे में सोचने लगे।

हीरो ने राधा के घर जाकर उसके माँ बाप से मिलने और विवाह संबंधी बात करने का निर्णय किया।

उसी दिन कालेज में दस बारह लठियों, साइकिल की चेन, हॉकी, देसी तमंचा से लैस लड़कों ने हीरो को घेर लिया और चेतावनी दी, हरी दादा की बहन से दूर रहो वरना ठीक न होगा।

हरी दादा से वसूली के क्षेत्र को लेकर हीरो का मनमुटाव पुराना था। हरी एक बार हीरो से पिट भी चुका था।

किन्तु अब राधा और हीरो एक दूसरे के बिना रह नहीं सकते थे।

राधा को अपने भाई की करतूत पता चल गयी थी। वो मौका मिलते ही भागकर हीरो के घर आ पहुँची।

हरी को लगा हीरो राधा को भगा कर ले गया।

गुस्से से पागल हरी और उसके दो अन्य साथी हीरो के घर के पास वाले चौराहे पर यहाँ वहाँ घात लगाकर खड़े हो गये।

हीरो उसी चौराहे को पार कर अपने घर जाता था।

जैसे ही हीरो वहाँ पहुँचा। हरी और उसके साथियों ने उसे घेर कर तीन ओर से गोलियाँ दाग दीं और भाग गये।

हीरो बेजान होकर जमीन पर औंधे मुँह गिर गया।

प्रारम्भ में उसके पिता बलदेव ने उसे समझाया था, “इस लाइन में ज़िदगी का भरोसा नहीं होता है।" किन्तु हीरो ने बात को गंभीरता से नहीं लिया था।


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