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इन्सानियत छूटी जाए रे.........

इन्सानियत छूटी जाए रे.........

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आज जैसे ही पुष्पा काम करने आई तो आते ही धम्म से बैठ गई" दीदी मेरे तो पैसे चले गए"। मैंने पूछा क्या हुआ कहां चले गए ?तो बोली," 1503 नं.वाली दीदी 1 तारीख को घर खाली करके जाने वाली थी वह तो अचानक कल शाम को ही चली गई मुझे मेरे पैसे नहीं दे गई अब क्या करूं दीदी इतने खर्चे हैं पिछल महीने मेरे दो काम छूट गए थे यह काम तो गया साथ में मेरी मेहनत की कमाई भी गई" मैंने उसे समझाया क्या पता कोई मजबूरी होगी उनकी जो जल्दी खाली करके चले गए। तू चिंता मत कर तेरे पैसे जरुर मिलेंगे। बेमन से वो काम करती रही मुझे उसे देख कर बहुत तरस आया। मैंने उसे बोला तुम उनके पड़ोसियों से पूछकर उनका फोन नंबर वगैरह लो और उनको फोन करके पूछ लो क्या हुआ, पैसे कब देंगे ?

अगले दिन आई तो फिर वही बात दीदी मैंने नंबर लिया फोन किया तो भैया ने उठाया और बोले दे देंगे जब उधर आए तो ऐसे कहकर फोन काट दिया मुझ गरीब का पैसा खा लिया। मैं भी उसे सांत्वना देने लगी चलो कोई बात नहीं हम बात करके देखते हैं तो वह बोली 1503 वाली भाभी की ननद उनके नीचे वाले फ्लैट में रहती है।मैंने कहा ठीक है मैं देखती हूं फिर एक फ्रेंड संगीता को लेकर 1503 वाली की ननद के यहां गई।और उनको समझाया ऐसे नहीं करना चाहिए किसी गरीब का पैसा है उसकी मेहनत है अपने भाई-भाभी को समझाओ नहीं तो हमें उनका नंबर दो फिर हम खुद ही बात करेंगे। हमारा ऐसे बोलने से वो बोली कि ठीक है मैं अपने भाई से बात करूंगी और आप को बताऊंगी।

फिर मैंने मेरी फ्रेंड ने जाकर सोसायटी ऑफिस में शिकायत की ऐसे कैसे कोई भी कभी भी फ्लैट खाली कर जाता है। और किसी गरीब का पैसे दिए बगैर आपको कोई रूल रेगुलेशन बनाने चाहिए। उस बेचारी के पैसे तो जैसे तैसे उसे मिल गए पर एक सवाल रह गया ..किसी गरीब का पैसा रखने से हम शांति से कैसे रह सकते हैं ? एक सुकून में कैसे रह सकते हैं ?और क्या उस गरीब का पैसा रखे हम अमीर हो जाएंगे ? क्या लोगों का जमीर खत्म होता जा रहा है? ऐसा ही एक किस्सा कुछ महीनों बाद हुआ जब हमारी सामने वाले पड़ोसी शिफ्ट हुए। लेडी जॉब करती थी। किसी से बातचीत नहीं करती थी। 1-2 बार मैंने कोशिश की पर उसकी तरफ से कुछ अच्छा रिस्पॉन्स नहीं मिला तो मैं भी पीछे हट गई।हां, उसके बच्चे जरूर कभी हैल्प पड़े तो बात करते थे , चाबी ना होने पर आंटी मम्मी को फोन करना है,पापा को फोन करना है वगैरा-वगैरा। तो हुआ यूं कि वह लोग जब शिफ्ट हुए तो उनका अपना ही घर था जहां से वह शिफ्ट हुए तो उन्होंने दो स्लौट में शिफ्टिंग की एक संडे को आधी शिफ्टिंग और अगले संडे को फिर आधी शिफ्टिंग।

फुल शिफ्टिंग हो गई तब भी मैंने देखा उनका न्यूज़ पेपर रोज़ अब भी आ रहा है।दो-चार दिन तो मैंने देखा फिर 4 दिन हम भी बाहर गए हुए थे तो जब आए तो फिर न्यूज पेपर्स पड़े हुए थे। 9-10दिन हो गए मुझे थोड़ा गुस्सा भी आया कि हद है। कम से कम पेपर वाले को बताना तो चाहिए था कम से कम अपने हिसाब तो क्लियर करके जाओ।फिर मैंने पेपर वाले को फोन करके बताया कि वे लोग तो 10 दिन पहले ही शिफ्ट हो गए।वह बेचारा बहुत परेशान कि मैम उन्होंने तो 2 महीने से पैसे नहीं दिए बताया भी नहीं कि शिफ्ट हो रहे हैं मुझे।

मेरे पास उनका फोन नं.था तो मैंने उसे नं. दिया और कहा भैया फोन ना मिले या कुछ और प्रोब्लम हो तो सोसायटी के ऑफिस में जाकर बोलो।

अगले दिन जब प्रेस वाला कपड़े लेने आया तो पूछने लगा कि ये सामने वाले कहां चले गए। मैंने उसे बोला कि वह लोग तो शिफ्ट हो गए 10 दिन पहले। बेचारा वह भी हैरानी से बोला की पैसे भी नहीं दे गए। 1 महीने का इकट्ठा हिसाब करते थे।मैंने उसको भी बोला कि नंबर देती हूं तो वह वाला नंबर तो मेरे पास है मैं फोन करता हूँ। कितना बुरा लगता है कि ये वो लोग हैं जो ताजा कमाते हैं और उसी का राशन घर ले जाएंगे तो खाना बनेगा। प्रेस वाला भी धूप-छांव व बारिश की परवाह ना करता हुआ काम करता है।ये बेचारे दिन-रात लगे रहते हैं कभी कभी तो रात तक भी प्रेस कर रहे होते हैं।पेपर वाला महीने के 30 दिन समय से पेपर देने आता है। काम वाली सर्दी-गर्मी,आंधी-तूफान न देख कर काम करने आती हैं। कभी-कभी तो बुखार हो,तबीयत खराब हो तब भी छुट्टी नहीं करती हैं। भगवान् ने हमें इतनी सहूलियत दी,अच्छा खाने को दिया,अच्छा घर बार दिया।ये लोग हमारी इतनी मदद करते हैं।

इनकी मदद से हमारे काम कितने आसान हो गए हैं।नौकरी करने वाली महिला हो या गृहणी इनके सहयोग से उनके काम कितनी जल्दी व अच्छे से हो जाते हैं।पहले कि महिलाओं से पूछो इतने बड़े परिवार होते थे और सारे काम खुद करने पड़ते थे।आज हमें जिन लोगों से जो सुविधाएं मिल रही हैं तो हमारा भी फर्ज बनता है कि हमें उनका समय पर भुगतान करना चाहिए। मेरी दादी हमेशा कहती थी किसी गरीब की हाय नहीं लेनी चाहिए हो सके तो किसी की मदद करो लेकिन किसी को परेशान मत करो। मेरे पापा ने भी हमेशा यही सिखाया है किसी गरीब को उसकी मेहनत से भले ही ज्यादा दो


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