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Gulshan Khan

Abstract

1.8  

Gulshan Khan

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सड़कछाप प्रस्ताव

सड़कछाप प्रस्ताव

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दिल्ली की गर्मी आैर दिल्लीवाले हमेशा ही खबरों मे रहते है.......आज भी बड़ी जोरदार गर्मी है.क्लास जल्दी  खत्म हुई तो घर जल्दी पहुँचने की जद्दोजहद शुरू हो गई. एक घन्टे के इन्तजार के बाद बस मे बमुश्किल चढ़ी .......फिर धक्कामुक्की करते हुए,क्षमा कीजिए....बोलते हुए  खड़े होने की  जगह तलाशते हुए,आगे बढ़ी......फिर एक आंटी जैसे खड़ी हुई मै लपक कर बैठ गई क्योकि मेरा सफर लम्बा था ......खिड़की से देखते हुए कब मेरा स्टोप आ गया पता न चला और वैसे भी सीट मिलने के बाद सफर का कहा पता चलता है. अब इस स्टोप से घर तक के लिए बस करनी थी ....काफी देर हो गया नज़रे बार -बार घड़ी पर ही जा रही थी.....तभी सामने से आवाज़ आई बेटा माल रोड़ के लिए यहाँ से बस मिल जाएगी.......मैने कहा हाँ....फिर वो दो कदम की दुरी पर खड़े हो गए..फिर मैने सोचा कि इन्हे कोई रूट की बस बता देती कब तक एक ही बस का इन्तजार करेगे बिचारे चाचा......ये सोचते हुए मैने पुछा कहा जाना है चाचाजी.....बोले पन्जाबी बाग .....फिर तो आप के पास दो-तीन विकल्प हैै.....अच्छा जब बस आए तो बता देना आप ....जी ठीक.....फिर उन्होने नाम,कॉलेज, फेसबुक और न जाने क्या -क्या पुछने लगा.....उनके सवाल बढ़ते ही जा रहे थे और मेरे जवाब घटते....करीब 15-20 मिनट वो बोलते रहे और मै असहज होने लगी उन्होने ने ये भापते हुए बोले आज की लड़कियाँ तो इतनी गुमसुम नही होती या अजनबी लग रहा हुँ ,तुम्हे? वैसे एक बात पुछूँ मेरे साथ रिश्ते मे रहोगी?  ये आखिरी लाइन थी जो मैने उनके मुहँ से सुना....इतना सुनते ही सामने जो बस खड़ी थी मै बेसुध चढ़ गई.....कुछ समझ न आया बस लगा शायद पागल थे, फिर एक लम्बे सफर और सबक के साथ घर पहुँची...... अगले दिन फिर उसी स्टोप से बस पकड़ी ....बस मे बस एक ही सीट खाली थी आैर उसके साथ वाली सीट पर उसी उम्र के चाचा बैठे थे...मै डर गई कि लोग कहते है कि दिल्ली के लड़के लड़कियों को छेड़ते है पर यहाँ तो किसी का भरोसा नही... यही सोच रही थी कि एक आवाज़ आई बेटी ..बेटी आजा इधर बैठ जाओ...मैने मना कर दिया लेकिन उन्होने दोबारा बोला तो बैठ गई और उनके बगल मै बैठकर वैसे ही लगा जैसे कोई अपना हो जो मुझे तकलीफ मे नही देख सकते.....फिर सोचते -सोचते कब मेरा स्टोप आ गया पता न चला....


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