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चतुर लड़की

चतुर लड़की

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मेरे छह साल के भतीजे ने मुझसे कहानी सुनाने को कहा। मैंने उसे वह लोककथा सुनाई जो मेरे चाचा ने मुझे सुनाई थी‌।


एक गांव में उमाकांत नाम का एक आदमी रहता था। उसे कुछ रुपयों की जरूरत पड़ी तो उसने पड़ोस के गांव के मुखिया से उधार ले लिया। शर्त के अनुसार एक साल के अंदर रकम वापस करनी थी। पर उमाकांत ने समय हो जाने पर रकम वापस नहीं की।


उमाकांत ने वह रकम व्यापार में लगाई थी। पर व्यापार में घाटा हो जाने से रकम डूब गई। उसने अपने पास से जो पूंजी लगाई थी वह भी डूब गई। घर में पैसों की तंगी आ गई।


मुखिया ने संदेश भेजा कि वह उनकी रकम वापस करे। तब टालने के लिए उमाकांत ने संदेश लाने वाले से कह दिया कि अगले माह खुद आकर दे जाएगा। संदेशवाहक के जाने के बाद वह रकम के जुगाड़ के बारे में सोचने लगा। 


उमाकांत कोशिश कर रहा था कि किसी से पैसे लेकर मुखिया को दे दे। पर उसकी माली हालत सबको पता थी। इसलिए कोई उसे पैसे देने को तैयार नहीं था। दिन निकल रहे थे पर कोई व्यवस्था हो नहीं रही थी। उमाकांत परेशान था।


उमाकांत एक शरीफ आदमी था। उसने सोचा था कि व्यापार में पैसे लगाकर वह अपनी आर्थिक स्थिति सुधार लेगा। लाभ में से पहले क़र्ज़ लौटा कर आराम का जीवन बिताएगा‌। पर व्यापार में घाटा हो गया। 


उमाकांत की बेटी कनक बहुत होशियार थी। अपने पिता की कठिनाई जानकर वह बहुत दुखी थी। वह अपने पिता की मदद करना चाहती थी। उसने अपने पिता को संकट से उबारने का एक उपाय सोचा। 


उसके गांव में एक विद्वान पधारे थे। उन्होंने ऐलान किया था कि जो उन्हें अपनी चतुराई से हरा देगा वह उसे मुंहमांगी रकम देंगे। कनक ने उनके पास जाकर उनकी चुनौती स्वीकार कर ली।


कनक तीन पहेलियों के साथ उनके पास पहुँची। उसने कहा,

"यदि मैं आपको हरा दूँ तो क्या आप सचमुच मुझे मुंहमांगी रकम देंगे।"

विद्वान ने सोचा कि यह छोटी सी लड़की भला मुझे क्या हराएगी। उसने कहा,

"जो रकम तुम कहोगी मैं दूँगा।"


विद्वान की सभा में कई लोग यह प्रतियोगिता देखने के लिए उपस्थित थे। विद्वान ने एक एक करके पहेली पूँछने को कहा। कनक ने पहली पहेली पूछी-

“स्वर्ग से आते पानी को क्या रोकती है?”

विद्वान ने इस पर विचार किया। पर वह समझ नहीं पाए कि स्वर्ग से पानी कैसे आता है ? उन्होंने बहुत सोचा पर जवाब नहीं मिला।


कनक ने दूसरी पहेली पूछी-

“ना गिरे पड़े ना दुर्घटना हुई, ना ही किसी से झगड़ा हुआ, फिर भी शरीर पर खरोंच लग गई।”

विद्वान इस बार भी सही उत्तर ना दे सका।


कनक ने तीसरी पहेली पूछी-

“मेरी माँ एक देख कर सब देख लेती है।”

विद्वान निरुत्तर रहा।


कनक ने कहा,

"आप मेरी किसी भी पहेली का जवाब नहीं दे पाए। मैं जीत गई।"


विद्वान ने कहा,

"वह तब होगा जब तुम इन पहेलियों के सही व संतोषजनक जवाब दोगी।"

कनक मान गई।


पहली पहेली का उत्तर देते हुए कनक ने कहा,

"आप बताइए स्वर्ग कहाँ है?"

विद्वान ने ऊपर आकाश की तरफ इशारा किया।

कनक ने कहा,

"पानी भी ऊपर से बरसता है। तब हम छतरी लगा कर उसे रोकते है।"

विद्वान व वहाँ उपस्थित लोगों को बात समझ आ गई।


कनक ने दूसरी पहली का जवाब देते हुए कहा कि, “खेत में कंटीली झाड़ियां हटाते समय बिना दुर्घटना या झगड़े के शरीर में खरोंच लग जाती है।”


विद्वान ने तीसरी पहेली के बारे में पूछा।

कनक ने कहा,

"मेरी माँ प्रतिदिन भोजन पकाती है। चावल बनाते समय एक दाने को देखकर समझ जाती है कि हांडी के चावल पके या नहीं।"

तीनों जवाब सबको सही व संतोषजनक लगे। कनक जीत गई।


उसने व्यापार में डूब गई रकम के जितनी राशि मांग ली। 

उमाकांत ने मुखिया की रकम वापस कर दी। 

मैंने अपने भतीजे को समझाया।

"देखा बुद्धि से समस्या का हल निकल आता है।"


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