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वड़वानल - 51

वड़वानल - 51

8 mins
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‘‘चार बज गए। अरुणा आसफ़ अली अभी तक क्यों नहीं आईं ?’’ गुरु ने पूछा।

‘‘निर्णय तो नहीं बदल दिया ?’’ बोस ने पूछा।

‘‘फ़ोन करके देखो ना ?’’ मदन ने सुझाव दिया।

‘‘पिछले पन्द्रह मिनट से फ़ोन कर रहे हैं, मगर कोई फ़ोन उठा ही नहीं रहा है।’’ खान ने स्पष्ट किया।

जैसे–जैसे अरुणा आसफ़ अली को देर हो रही थी, वैसे–वैसे सैनिकों की बेचैनी बढ़ती गई। नारे गरजे ही जा रहे थे। दत्त, खान, गुरु, मदन, बोस और कमेटी के सदस्य बेचैन हो रहे थे। उन्हें एक ही डर सता रहा था - अरुणा आसफ़  अली की राह देख–देखकर उकताए हुए सैनिक यदि बेकाबू हो गए तो ?

‘‘खान, मेरा ख़याल है कि तुम उनसे बात करो। कुछ लोगों को अपने अनुभव सुनाने की विनती करना ठीक रहेगा। We must keep them busy.'' दत्त ने सलाह दी।

‘‘दोस्तो! खान ने सैनिकों से बातचीत आरम्भ कर दी। हम सभी अरुणा आसफ़ अली का मार्गदर्शन लेने और उनके  जोशीले भाषण सुनने के लिए उत्सुक हैं। मुझे यकीन है कि वे ज़रूर आएँगी।’’

‘‘फिर अब तक क्यों नहीं आईं ?’’ किसी ने ज़ोर से पूछा।

‘‘नहीं भी आईं, तो भी कोई बात नहीं। अब पीछे नहीं हटना है।’’ दूसरा सैनिक चिल्लाया। उसने वहाँ एकत्रित सैनिकों की भावनाएँ ही व्यक्त कीं।

‘‘दोस्तो! वे एक राष्ट्रीय नेता हैं। किसी और ज़रूरी काम में उलझ गई होंगी। हम उनसे सम्पर्क करने की कोशिश कर रहे हैं। जब तक वे यहाँ पहुँचती हैं,  हम विभिन्न जहाज़ों से आए अपने मित्रों की वेदना को जानें। जितना अधिक एक–दूसरे के दर्द को हम जानेंगे उतना ही अधिक उनके निकट आएँगे, और एक–दूसरे को अच्छी तरह समझ सकेंगे।’’ खान ने सैनिकों को हिलगाए रखने की कोशिश की।

खान के आह्वान के बाद तो भाषणों की मानो झड़ी लग गई। हर कोई पूरे दिल से बोल रहा था, अंग्रेज़ों के खिलाफ़ आग उगल रहा था; अंग्रेज़ों की जूठन उठाकर अपने ही देशबन्धुओं पर अन्याय, अत्याचार करने वाले हिन्दुस्तानी अधिकारियों की भर्त्सना कर रहा था,  उनका  धिक्कार  कर  रहा  था; अपने भाषण में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ संघर्ष का समर्थन कर रहा था; अन्तिम साँस तक लड़ने की प्रतिज्ञा कर रहा था। अंग्रेज़ों के प्रति गुस्से    को और देशप्रेम को ज़बर्दस्त समर्थन मिल रहा था। परिस्थिति बदल रही थी, अंग्रेज़ विरोधी नारों में वृद्धि हो गई थी।

कुछ अतिउत्साही सैनिक बीच ही में उठकर डंड ठोंकते हुए अंग्रेज़ों को ललकार रहे थे,  उन्हें गालियाँ दे रहे थे। सेंट्रल कमेटी के सदस्यों को सैनिकों का त्वेष और उनकी चिढ़ देखकर डर लगने लगा। वहाँ वर्णन किया जाने वाला हर अनुभव आग भड़काने का काम कर रहा था।

‘‘यदि ये सैनिक अपना आपा खो बैठे तो...’’ सेंट्रल कमेटी के सदस्य बेचैन हो गए।

 

सैनिकों की गतिविधियों पर सरकार का पूरा ध्यान था। मुम्बई में होने वाली हर छोटी से छोटी घटना की सविस्तर रिपोर्ट जनरल हेडक्वार्टर को भेजी जा रही थी और वहाँ से प्राप्त सूचनाओं पर तुरन्त अमल किया जा रहा था। मुम्बई के कांग्रेसी और लीगी नेताओं,  विशेषत: अरुणा आसफ़ अली और सरदार पटेल की गतिविधियों पर सरकार की नज़र थी। अरुणा आसफ़ अली को जबसे बटलर ने फ़ोन किया था तब से उनके घर के चारों ओर गुप्त पुलिस का पहरा लगा दिया गया था।

दिल्ली और मुम्बई में सरकार का जनसम्पर्क विभाग सक्रिय कर दिया गया था। तीन मन्त्रियों के शिष्टमण्डल की नियुक्ति, नौसेना का विद्रोह स्वार्थ प्रेरित है,  सैनिक हिंसक मार्ग पर चल पड़े हैं - ऐसी खबरों को प्रसारित करने का काम यह विभाग कर रहा था। विद्रोह हमारा आन्तरिक मामला है, राष्ट्रीय पक्ष इससे दूर रहें - इस तरह की धमकीभरी चेतावनी भी दी जा रही थी।

सरकार विचलित प्रतीत नहीं हो रही थी, फिर भी विद्रोह को कुचलने की व्यूह रचना की तैयारी हो रही थी।

सैनिकों के संघर्ष का नेतृत्व अरुणा आसफ़ अली करने वाली हैं, यह पता चलते ही अखबारों और समाचार एजेन्सियों के संवाददाता आ गए थे। सैनिकों की एकता, उनके जोश और अंग्रेज़ों के खिलाफ उनका गुस्सा देखकर वे अवाक् रह गए।

पाँच बज चुके थे। अनुभव–कथन का कार्यक्रम पूरे जोश में चल रहा था।

एक सफ़ेद कार खट् से ब्रेक लगाते हुए परेड ग्राउण्ड के सामने खड़ी हो गई। सैनिकों ने नारे लगाने शुरू कर दिये:

‘‘अरुणा आसफ़ अली, ज़िन्दाबाद!’’

‘‘वन्दे मातरम्!’’

‘‘भारत माता की जय!’’

सेंट्रल कमेटी के कुछ सदस्य स्वागत के लिए दौड़े। कार में अरुणा आसफ़ अली के बदले रॉटरे को देखकर वे अवाक् रह गए। उनका उत्साह खत्म हो गया, उन्होंने नारा लगाया:

‘‘रॉटरे,   गो बैक!’’

''Down with British Raj!''

‘‘रॉटरे,   हाय–हाय!’’

सैनिकों को रॉटरे के आगमन का पता चलते ही वे उसकी कार की तरफ़ दौड़े। खान और दत्त डायस की ओर भागे। 

वे समझ गए कि यह उनकी परीक्षा की घड़ी है।

‘‘दोस्तो! शान्त रहिए। भूलो मत कि हम अनुशासित सैनिक हैं। हम रॉटरे से कोई भी बात नहीं करने वाले हैं।’’ हालाँकि खान और दत्त की अपील को अनेक सैनिकों का समर्थन प्राप्त हुआ, फिर भी करीब पचास सैनिकों का झुण्ड रॉटरे की ओर दौड़ा। सेन्ट्रल कमेटी के सदस्यों ने रॉटरे के चारों ओर घेरा बनाया।

‘‘सावधान रहो! सैनिकों को रॉटरे से दूर रखो!’’  गुरु सूचनाएँ देते हुए परिस्थिति की जानकारी दे रहा था। ‘‘यदि सैनिकों ने रॉटरे पर हमला किया तो वह तिल का ताड़ बना देगा। हथियार इस्तेमाल करेगा और संघर्ष हिंसक मार्ग पर चल पड़ेगा।’’

नारे लग ही रहे थे। सैनिक अब तैश में आ गए थे। पन्द्रह–सोलह हज़ार सैनिकों का यह विराट समूह देखकर रॉटरे के धृष्ट चेहरे पर घबराहट फैल गई।

एक बार तो उसे ऐसा लगा कि सशस्त्र सैनिकों को साथ में लाना चाहिए था।

‘यहाँ ज़्यादा देर रुकना नहीं है। ज़्यादा कुछ कहना भी नहीं है,’ उसने मन में निश्चय किया। ‘‘तुम्हारी माँगें क्या हैं, यह तो पता चले।’’ अपने चारों ओर सुरक्षा घेरा बनाकर खड़े सेंट्रल कमेटी के सदस्यों से उसने पूछा।

किसी ने रॉटरे के हाथ में माँगपत्र थमा दिया। उस चिल्ला चोट में भी रॉटरे ने शान्ति से उस माँगपत्र को पढ़ा, पलभर सोचकर बोला, ‘‘तुम्हारी माँगें राजनीतिक तथा सेवा सम्बन्धी माँगों का मिश्रण हैं। सेवा सम्बन्धी माँगों के बारे में मैं कुछ कर सकूँगा; मगर राजनीतिक माँगों के बारे में... well, मैं ये सब नेवल हेडक्वार्टर को भेजता हूँ। They will look into it.''

रॉटरे शीघ्रता से कार में बैठ गया।

‘तलवार’ आने का रॉटरे का उद्देश्य सफ़ल हो गया था। सैनिकों के आन्दोलन की दिशा को वह समझ गया था; अरुणा आसफ़ अली अथवा किसी अन्य नेता ने ‘तलवार’ पर पहुँचकर सैनिकों का मार्गदर्शन नहीं किया है यह उसे  मालूम हो गया था; सैनिकों की एकता उसे दिखाई दे रही थी; उनका अनुशासित व्यवहार उसने देखा था।

‘सैनिकों के प्रतिनिधियों के साथ यदि चर्चा का नाटक कर सकता तो अच्छा होता,’  वह स्वयं से पुटपुटाया, ‘फिर भी, कोई हर्ज नहीं; मैं ‘तलवार’ पर जाकर आया; मैंने समझौते की कोशिश की मगर सैनिक कोई बात सुनने को तैयार  ही नहीं हैं, यह बात राष्ट्रीय पक्षों और नेताओं से कहकर सैनिकों पर दबाव डालकर संघर्ष मिटाने को कहा जा सकता  है।’  उसने अगली चाल निश्चित की।

‘राष्ट्रीय नेताओं की बात सुनेंगे ये सैनिक ?’  वह सोच रहा था, ‘ये सैनिक अभी तक तो अहिंसा के मार्ग पर जा रहे हैं। यदि ये हिंसक हो गए तभी वे कांग्रेस की सहानुभूति खो देंगे और फिर बन्दूक के ज़ोर पर इस विद्रोह को इस   तरह कुचल दूँगा कि सैनिक दुबारा सिर ऊपर न उठा सकें।’

रॉटरे की कार मेन गेट के पास आई और सामने से आते हुए चार सैनिकों को देखकर उसने कार रोकने को कहा।

‘‘फ्रेंड्स,’’ उसने उन चारों को बुलाया और खुद उतरकर पैदल उनके पास गया,  ‘‘तुम किस जहाज़ के हो ?’’  उसने  पूछा।

‘‘पंजाब।’’

‘‘इन ‘तलवार’ के सैनिकों के बहकावे में क्यों आते हो ? तुम्हारे ‘पंजाब’ के ही नहीं, बल्कि ‘तलवार’ के अलावा अन्य बेसेस और जहाज़ों के सैनिकों की अलग माँगें दो; मैं सबको मंज़ूर कर लूँगा। मगर उसके लिए you must withdraw your agitation and should not join with sailors from Talwar.'' रॉटरे ने अंग्रेज़ों की सधी–सधाई चाल   चली,   मगर ग़लत सैनिकों के सामने।

रॉटरे के इस प्रस्ताव पर ‘पंजाब’ का Able seaman रणधावा हँसा और चुभती हुई आवाज़ में उसने जवाब दिया,             ''Look Rautre do not try to divide us. हम कोई कांग्रेस या लीग के लोग नहीं हैं। हम– तुम अंग्रेज़ों को पूरी तरह

से पहचानते हैं। हमारी सारी माँगें, सबके लिए जब तक मंज़ूर नहीं होंगी, हम पीछे नहीं हटेंगे!"

रणधावा ने उससे तू–तड़ाक से बात की इससे रॉटरे को गुस्सा आ गया। मगर गुस्सा दिखाने का यह समय नहीं है यह ध्यान में रखकर गुस्सा निगलते हुए यथासम्भव प्यार से उसने जवाब दिया, ''well, my side is clear, Now ball is in your ground.'' उसने ड्राइवर को इशारा किया और गाड़ी की चाल तेज़ हो गई।

 

 खान ‘तलवार’ के परेड ग्राउण्ड पर जमा हुए सैनिकों से कह रहा था, ‘‘दोस्तो! हम राह देख रहे थे देवदूत की और सामने आया शैतान। तुम्हें मालूम है,  अभी–अभी यहाँ रॉटरे आया था। सेंट्रल कमेटी के सदस्यों से उसने बात की। तुम्हारी माँगें हेडक्वार्टर को भेजता हूँ, ऐसा उसने कहा। माँगें दिल्ली भेजी जाएँ या लन्दन, यह उसे तय करना है। बिना किसी शर्त के हमारी सभी माँगें मान्य होनी चाहिए।

‘‘मेनगेट, के पास वह ‘पंजाब’ के कुछ सैनिकों से मिला और हमारे बीच फूट डालने की उसने कोशिश की। ‘तलवार’ छोड़कर अन्य जहाज़ों के सैनिकों के लिए सेवा सम्बन्धी माँगें मान्य करने को वह तैयार था। इसके लिए उसकी एक ही शर्त है - अन्य सैनिक ‘तलवार’ का साथ छोड़ दें।’’ खान का वाक्य पूरा होने से पहले ही सैनिकों ने नारे शुरू कर दिये :

‘‘रॉटरे - हाय, हाय!’’

‘‘शेम,   शेम!’’

खान ने सैनिकों को शान्त किया।

‘‘पंजाब’ के सैनिकों ने रॉटरे को घुड़की दे दी है।’’ खान परिस्थिति स्पष्ट कर रहा था। मुझे यकीन है कि हमारी एकता अखण्ड है। हममें से हरेक सैनिक जानता है कि यदि हम बँट गए तो पल्ले कुछ नहीं पड़ेगा और अपना सर्वस्व गँवाना पड़ेगा। सेंट्रल कमेटी हमारी एकता को बनाए रखने की भर सक कोशिश करेगी। एकता ही हमारी ताकत है!

 ‘‘सरकार अफ़वाहें फैलाएगी। दोस्तों! अफ़वाहों पर विश्वास न करना, अफ़वाहों की बलि न चढ़ जाना!’’

सभा में आठ–दस सैनिक उठकर खड़े हो गए। उनमें से एक ने seaman knife निकालकर अपने अँगूठे से खून निकाला  और  चिल्लाया,  ‘‘इस  खून  की कसम,  मैं तुम सबके साथ हूँ। यदि मैं तुम्हारा साथ छोडूँ तो एक बाप का नहीं!’’ अनेकों ने उसका अनुकरण किया।

रात के आठ बजने के बाद अनेक सैनिक अपने–अपने जहाज़ों पर लौट गए। कुछ लोगों ने ‘तलवार’ में ही रात बिताने की ठानी।

जहाज़ों पर वापस लौट गए सैनिकों ने जहाज़ों  पर सभाएँ करके जहाज़ का पूरा नियन्त्रण अपने हाथ में किस तरह रखा जाए; ‘तलवार’  अथवा अन्य जहाज़ों पर और ‘बेसेस’ पर यदि ब्रिटिश सेना हमला करती है तो उन्हें रसद किस तरह पहुँचाई जाए; गोला–बारूद की कितनी मात्रा उपलब्ध है इसका अनुमान लगाकर यदि ज़रूरत पड़े तो किस स्थिति में शस्त्र उठाना है आदि प्रश्नों पर चर्चा की।

 

 

 

 



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