वो लड़का...
वो लड़का...
वो लड़का बड़ा होशियार था। पंद्रह साल की उम्र, दसवीं की तैयारी करते हुए, जोरों-शोरों से, काफी मेहनती, काफी सुलझा हुआ। मगर शायद ही उसे खबर थी कि उसकी जिंदगी में ऐसा कुछ होने वाला है जिसकी छाप उसके ज़ेहन में हमेशा बनी रहेगी।
दिन था इतिहास के पेपर का। पूरी आत्मविश्वास के साथ शुरुआत हुई परीक्षा की। तीन घंटे के युद्ध के बाद सारे सेनानी बाहर आए। उस लड़के के चेहरे पर मंडरा रही ख़ुशी यही ज़ाहिर कर रही थी कि सब ठीक-ठाक हुआ है। वो गेट के बाहर आया, अपनी माँ से मिला, बाकी दोस्तों के साथ चर्चा शुरू हुई। बातों-बातों में कुछ सामने आया। उसने एक प्रश्न का उत्तर नहीं लिखा था। इस विषय को लेकर उसकी माँ चिंतित हुई। माँ ने कहा, “इस प्रश्न का उत्तर तुम्हें आता है?” और जवाब में हाँ आया। “फिर तुमने लिखा क्यों नहीं?”, माँ ने पूछा। “मैं भूल गया लिखने”, सामने से मायूस आवाज़ आई। “और वैसे भी एक मार्क का प्रश्न था, एक ही मार्क जाएगा ना! उसमें इतनी चिंता की क्या बात है”, सहमकर बोला वो, मगर कही उसके एहसास में एक अति-विश्वास की छवि बन चुकी थी। माँ चुप रही।
महीने गुज़रे, दिन आया जब सफलता की सीढ़ी सब को चढ़नी थी। वो अपने परिवार के साथ मिठाई का डिब्बा लेकर स्कूल पहुँचा। वहाँ एक कड़वा सच उसका इंतज़ार कर रहा था। तीसरी कक्षा से, हर कक्षा में आज तक हमेशा प्रथम आने वाला वो, जी हाँ वो लड़का, आज पहली बार एक मार्क से पीछे रह गया, वो दूसरे स्थान पर विराम हुआ। इससे बड़ी हैरानी उसके लिए क्या हो सकती थी! माँ की आँखों में उसे उस दिन की झलक दिखाई दी जब उसने कहा था “एक मार्क से क्या होगा!”
अभी तो इंतहा शुरू हुई थी। उसने माँ को आश्वासन दिया कि ऐसा होता है। “आप घबराओ मत माँ, ये महज इत्तफाक है, कॉलेज में दाखिला मिल जाएगा, एक मार्क का असर नहीं होगा”, उसकी आवाज़ में ताकत थी।
मगर जिंदगी का ये उसूल है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते। वो अपने पिताजी के साथ अपना दाखिला कराने गया। लंबी कतारों में पैर घिसे, तन को धूप में जलाया और फिर पर्ची भरकर इंतज़ार करते रहे उस सूची का जिसमें चुने गए विद्यार्थियों का नाम आने वाला था। पहली सूची सामने आई लेकिन उसमें उसका नाम नहीं था।
दूसरी सूची, तीसरी सूची, चौथी सूची, एक के बाद एक, सब छान लिया, मगर उसका नाम कही पर नहीं आया। दो हफ्ते बीत चुके थे। पिताजी की चिंता बढ़ती हुई। सब की नज़र पाँचवें सूची पर थी, जो आखिरी थी। समय आया, बड़ी उम्मीद के साथ वो सूची की ओर बढ़ा। आँखों में आंसू तैरने लगे। उसका मन भर आया। एक मार्क से रह गया वो, सही सुना आपने, फिर एक मार्क के कमी से उसका नाम इस आखिरी सूची में नहीं आ पाया। सारे वो पल जैसे उसकी नज़रों के सामने घूमने लगे। वो रो पड़ा, खुद को कोसने लगा। जिस एक मार्क को वो आसानी से भूल चुका था वही एक मार्क ने आज उसके जीवन को झंझोड़ दिया।
उसने एक नया सबक सीखा। हमारे जिंदगी में कोई चीज़ छोटी या बड़ी नहीं होती। किसी चीज़ को नजरंदाज करना अच्छी बात नहीं। वो आज भी इस बात को याद करता है। वो आज भी वही मेहनती लड़का है। और वो लड़का कोई और नहीं, मैं हूँ।