हवा का रुख़
हवा का रुख़
नौकरी के कारण विदेश में रह रहे बेटे से माँ ने घर में आने पर कई बार घर की जर्जर होती दीवारों का ज़िक्र किया परन्तु हर बार अनसुना कर के वह चला जाता था। आख़िर में माँ ने सब कहना छोड़ दिया। इस बार घर आने पर बेटे ने सारे घर की मरम्मत बिना कहे ही करा दी माँ को आश्चर्यमिश्रित ख़ुशी हुई पर बोली कुछ नहीं। बेटे की बातों से पता चला कि हाल में ही किसी सहयोगी को नौकरी से निकाल दिया गया तो उसने रहने के लिये पैतृक आवास चुना क्योंकि विदेश की नौकरी में धन तो वह बहुत कमा ही चुका था और वहाँ अपने घर में सुकून से जीने के साथ, माता पिता की देखभाल भी आसानी से करना संभव था। सही संगत के कारण हवा का रुख़ बदल चुका था।