वह परी
वह परी
वह परी ही तो थी, हाँ एकदम परी। बडे बडे बाल, सुतवा सा रंग, लंबी नाक, हाथो में ढेर सारी चूड़ियाँ, परिपाटी से पहनी हुई तांत की साडी, कटीले नैन एकदम परी ही तो थी। जब हमारे पास आयी तो रोती हुयी। रोते रोते आँखे सूज गयी थी। उस परी को उसके माता ही लेकर आई।
पता चला विवाह के दो ही तीन दिन हुये थे। पति ने सिगरेट से जगह जगह जला कर मायके में ला पटका था। नालायक कहता था कि अब नहीं रखना उस परी को उस घर में ला पटका था। मायके में उस परी की जिद थी हमें जाना है पति के पास। बहुत समझाया गया, हमने, माता पिता ने। पर उसकी बस एक ही जिद थी, हमें तो जाना है।
बहुत-बहुत समझाया पर ना मानी और उसका परिणाम उसके जान की आहुति से हुआ। उस घटना को सोच कर आज भी सिहर जाते है। क्यों बेटी को बोझा समझते है बेटियों क्यों नहीं समझ पाते। आ बेटी यह तेरा ही घर हैं।
क्यों नहीं बदल पा रहे है समाज को? यह हमारा आप लोगों से सवाल है तो जवाब अगर आप के पास हो हमें दें और समझाये हमको।