अभियांत्रिकी जगत में मेरी अपेक्षा एवम् अनुभव
अभियांत्रिकी जगत में मेरी अपेक्षा एवम् अनुभव
अभियांत्रिकी जगत में मेरी अपेक्षा एवम् अनुभव
engineering! ..............हिन्दी में कहें तो अभियांत्रिकी | आज अभियंत्रिकी को करीब से जानते हुए मुझे चार साल हो चुके हैं | बारहवीं उत्तीर्ण होने के बाद ढेर सारी ख्याली पलाऊ के पीछे भागते हुए अभियांत्रिकी में नामांकन करवाया | साल 2010 का 21 अगस्त आज भी मुझे याद है ................. उम्मीदों का एक जमावड़ा सा था एक असफलता के बाद .............| एक छोटे से क़स्बे से औरंगाबाद का सफर कुछ नायाब अंदाज में फलीभूत हुआ | यूं तो मैं कोलकाता शहर का भी भ्रमण कर चुका था पर औरंगाबाद की हरियाली और वादियाँ मुझे अपने भूगोलशास्त्र के पन्नों में झाँकने को विवश कर रही थी | झांसों का सिलसिला यही से शुरू हुआ क्योकि औरंगाबाद के भौगोलिक अवस्था का ज्ञान मुझे वर्ष 2011 के गर्मियों में हुआ | चुकीं मैं बरसात के दिनों में औरंगाबाद पहुँचा था , इसीलिए प्रकृति के झांसे में फंसना स्वाभाविक था | यह प्रदेश सूखे की स्थिति को बरसात के मौसम में हरियाली कम्बल से ढका हुआ प्रतीत हो रहा था | ट्रेन से गुजरते हुए सैकड़ो तरह के वेशभूषा एवं लोगों के द्वारा भाषा का उपयोग देखकर मैं घबराया सा था , पर मन में पनपती कुछ बातें मुझे शक्ति दे रही थी | मुझे लग रहा था कि इस शिक्षा के बल पर शायद मैं सफलता का ध्वज मुक्त हाथों से फहरा लूँगा लेकिन आज चार साल के बाद हमारी स्थिति बहुत ही अलग है | प्रारंभ में पनपे सभी जोश बर्फ की तरह गल गए हैं | कामनाओ एवं जज्बों का हुँकार धूमिल हो गया है | बारहवी की घोषित परिणाम के समय गिरे मेरे मनोबल आज फिर से नए आकर लेने लगे हैं | या यूं कहें कामनाओ एवं जज्बों के तरफ ध्यान देने का मन नहीं करता, कारण की हम आरामपसंद भारतीय हैं |
प्रथम वर्ष में कक्षा प्रारंभ होने से लेकर दिन के ढलने तक मुझे वो कुछ भी नहीं दिखता जिसके बारे में मैं अपने घर में सुना करता था | मुझमे जो कुछ भी अपेक्षा थी वो एक दिवास्वप्न बनकर रह गयी थी | इसका सबसे बड़ा कारण था की मैं यहाँ के शिक्षण स्तर की तुलना देश के विशिष्ट शिक्षण संस्थानों से कर रहा था | प्रथम वर्ष के दौरान मैंने केवल वर्कशॉप को बड़े लगन से किया क्योकि मुझे लग रहा था की खड़े सोने की पहचान पाने के लिए तपना ही पड़ता है | पर आज इस डिग्री के पूर्ण होने के पश्चात मेरे चेहरे पर प्रदर्शित हाव-भाव शायद असफलता के डर को और ज्यादा प्रज्ज्वलित करते जान पड़ते हैं | आइने में खुद को देखते ही प्रथम वर्ष से अबतक की छोटी सी चलचित्र झटपट मन में उकरने लगती हैं |
वर्ष 2010 के खत्म होते ही अभियांत्रिकी शिक्षण के सबसे विचित्र पहलू के दर्शन ने मुझे आश्चर्य में दाल दिया | वो विचित्र पहलू था भागम-भाग सबमिशन , जिसके लिए नदारद (गायब) शिक्षको की बाट जोहते हुए पूरा दिन निकल पड़ता था | इस तरह का अनुभव हरेक सेमेस्टर में एक जैसा ही लगता है , जिसमे मालूम पड़ता है कुछ सत्य और पहचान में आते हैं कुछ तथाकथित अपने और अपनों के भोले चेहरे | इन बातों से परे होने का दिल होते हुए भी हम इससे दूर नहीं हो पाते हैं कारण की हमे अपशब्दों के मुक्त उपयोग में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी होती है | किशोर वय में ये सब बातें आम होती हैं और शायद अपनी पृष्ठभूमि बनाने के लिए इन मनगढ़ंत शब्दों का हमे सहारा लेना पड़ता हैं |
अभियांत्रिकी के सन्दर्भ में आज जो कुछ भी बातें प्रचलित हैं उसका वास्तविक परिप्रेक्ष्य में कुछ ज्यादा ही असर हो रहा है | देश में हो रहे दैनिक रोजगार की कमी और अभियंताओ के उत्पादन का समानुपात बिगड़ गया हैं | इसके पीछे कारण सिर्फ एक व्यक्ति को नहीं माना जा सकता , वो चाहे छात्र हो या शिक्षक या फिर उससे सम्बंधित कोई भी |
बिगड़ते परिणाम का कारण शायद पूरे समूह या वर्ग को, उसके असफलताओ से अवगत करने की चेष्टा कर रहा है लेकिन हम आरामपसंद तो जैसे थे वैसे ही हैं | इन सबके पीछे छुपे विभिन्न कारण कुछ इस तरह हैं :-
सर्वप्रथम अभिभावक की आशा उसके छात्र / छात्रा के प्रति कुछ ज्यादा ही होती है | उन्हें लगता है की उक्त छात्र / छात्रा उनके मेहनत में चार चाँद लगा कर सफल हो पायेगा , लेकिन इस अन्धआश के बोझ से दबकर प्रायः अभिभावक धोखा खा बैठते हैं | कच्चे लोहे को हथियार बनाने के प्रयास में अंततोगत्वा असफलता ही हाथ लगती हैं |
दूसरी, नामांकन होने के पश्चात छात्र / छात्रा अपने पूर्ण क्षमता का उपयोग पढाई में नहीं करते हैं , कारण की किशोर उम्र में हममे भविष्य की चिंता नगण्य होती हैं | मेहनत और अभ्यास को बोझ मानकर हम इससे दूर भागते हैं फलतः हममे ज्ञान का आभाव होता है और इसका सीधा असर हमारे भविष्य पर होता है | साथ ही शिक्षकों के साथ में पारस्परिक आदान-प्रदान का अभाव एवं शिक्षकों की लापरवाही भी हमारे अन्तःमन में अवतरित अभियांत्रिकी के राजशाही को मिथ्या करार देते हैं | सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की अभियांत्रिकी शिक्षण को व्यवसाय बना कर परोसा जा रहा है | जिसको अगर हम अनैतिक कहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी | अपने संस्थान को उच्च श्रेणी में लाने के लिए , शिक्षण संस्थानों द्वरा विभिन्न भौतिक सुविधाओं का लालच देकर शिक्षा व्यवस्था को कमजोर किया जा रहा है | शिक्षण के तौर-तरीको में दवाब उत्पन्न कर विद्यार्थी को अनुचित राह पर अग्रसर कर गुमराह किया जा रहा है | इनसब के अलावा कुछ कार्यालयों के अवैध कार्य भी शिक्षण के स्तर को अँधेरे में धकेलने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं |
बात चाहे जो कुछ भी हो, हमारी धारणा और अभियांत्रिकी के असलियत के बीच एक खाई उत्पन्न हो रहा है | मूलतः इस शिक्षा को हम एक सुरक्षित जीवकोपार्जन का आधार मानते हैं , लेकिन राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इस शिक्षा की कीमत घट रही है | लाखों अभियंता आज बेरोजगार हैं .....................| अब बात आती है की जो बेरोजगार बैठे हैं क्या सही में वो पूर्ण अभियंता हैं ?
उत्तर अगर उस बेरोजगार शख्सियत से सुने तो शायद वो उत्तर “नहीं” होगा | पुनः दूसरा प्रश्न उठता हैं कि जिन्हें रोजगार मिल गया है वो सब के सब क्या एक पूर्ण अभियंता हैं?
यहाँ भी उत्तर शायद “ना” ही होना चाहिए | अब एक पूर्ण अभियंता की परिभाषा क्या होती है इस पर गौर करने की आवश्यकता है |
“ मेरी दृष्टि में एक पूर्ण अभियंता वो है जिसे अपने विशेष विषय में कुछ विशेष ज्ञान का प्रायोगिक अनुभव है साथ ही उस विषय से सम्बंधित कुछ नए विचार को समक्ष रखने का सामर्थ्य है ” |
अतः जरूरत है की कुछ विशेष कदम उठाये जाये ताकि जो परिणाम घातक सिद्ध होने लगे हैं वो कुछ फायदेमंद साबित हो सकें | इसलिए सर्वप्रथम अभिभावकों द्वारा अपनी अहम् की पुष्टि को परे रखकर , प्रतिभा का सही पहचान अत्यावश्यक हैं और उचित दिशा में छात्र / छात्रा को उचित मार्गदर्शन देने की भी बेहद जरूरत है | साथ ही जो इस क्षेत्र से जुड़े हुए हैं उन्हें अपने कार्य को ईमानदारी से सौ प्रतिशत तक निभाने की आवश्यकता हैं | इसके अतिरिक्त शिक्षण प्रणाली के स्तर को नया एवं आधुनिक बनाने की भी जरूरत है |
इन सब बातों को जब भी मैं सोचता हूँ तो आज भी एक बड़ा सा प्रश्नवाचक मुझे झकझोर कर पूछता है – क्या तुम एक अभियंता हो ?
उत्तर में मैं अपना सर झुका कर दायें-बायें घुमा देता हूँ | शायद इसका खामियाजा मुझे जैसो को भविष्य में भुगतना पड़ेगा | इन बातों से अवगत होने के बाद मैं सहसा बोल पड़ता हूँ -----
“काश ! मैं एक पूर्ण अभियंता हो पाता | ”
स्वप्निल कुमार झा